महाशिवरात्रि : भोले नाथ को मनाने शिवरात्रि पर करें दर्शन

भक्तों से मिलने के शिवालय हुए सज कर तैयार

Update: 2020-02-20 06:37 GMT

ग्वालियर। देवो के देव आदिदेव कहे जाने वाले भगवान शिव को परमप्रिय शिवरात्रि 21 फरवरी को है। हिन्दू वेद-पुराणों में शिवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है, इस दिन शिव भक्त व्रत रख शिव की आराधना करते है। कहा जाता है की जो भी भक्त इस दिन व्रत रख शिव के दर्शन कर उन पर वेलपत्र, भांग, धतूरा चढ़ाता है एवं दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। 

शहर में स्थित विभिन्न शिवालयों में भी शिवरात्रि को लेकर तैयारियां चल रहीं है।शिव मंदिरों में शिवरात्रि पर हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुँचते है, कई शिव मंदिरों में इस दिन मेला भी लगता है। शहर में अचलेेशवर, कोटेश्वर, मारकंडेश्वर भूतेश्वर, गुप्तेश्वर आदि शिव मंदिर है जहाँ भक्त शिवरात्रि एवं सावन के महीने में भारी संख्या में दर्शन के लिए आते है। शहर में स्थित विभिन्न शिव मंदिरों से हम आपको रुबरु करा रहें है।  

कोटेश्वर महादेव -


 



शहर में स्थित शिवालयों में कोटेश्वर मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर हैं। यह मंदिर मानसिक आरोग्यशाला से घासमंडी वाली रोड पर स्थित है। इस मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित है वह कई सदियों पुराना है। कोटेश्वर महादेव मंदिर के विषय में जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार यहाँ स्थित शिवलिंग एक समय किले पर स्थित शिव मदिर में स्थापित था। तोमर वंश के शासक इस शिव मंदिर में पूजा- अर्चना करते थे। लेकिन कालांतर में 17वीं शताब्दी में हिन्दू मंदिरो को नष्ट करने के लिए प्रसिद्ध मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने जब ग्वालियर किले पर कब्ज़ा किया तो उसने मदिर को ध्वस्त कर शिवलिंग को किले से नीचे फिकवा दिया था। इतिहासकारों के अनुसार करीब 150 साल तक किला तलहटी में मलबे में दबे रहें इस शिवलिंग को सिंधिया राजवंश के तत्कालीन महाराज जीवाजीराव सिंधिया ने निकलवाया एवं मंदिर का निर्माण कराकर पुनः स्थापित कराया। 

मारकंडेश्वर महादेव -


 



फूलबाग के समीप स्थित मारकंडेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करीब 300 साल पहले सिंधिया शासकों ने कराया था। इस मंदिर में भगवान् शिव के साथ ऋषि मार्कण्डेय एवं यमराज की भी पूजा होती है।  यहाँ स्थित शिवलिंग से मारकंडे की लिपटी हुई प्रतिमा है जिसके ठीक सामने यमराज की मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर ग्वालियर अंचल का इकलौता ऐसा मदिर है जहां शिव के साथ यमराज की भी पूजा होती है। इस मंदिर में दिवाली के दूसरे दिन नरक चौदस पर यमराज की विशेष पूजा-अर्चना होती है। यहाँ आने वाले भक्त यमराज से लम्बी उम्र एवं अकाल मृत्यु को टालने की कामना करते है। 

अचलेश्वर महादेव -


 



शहर के बीचों बीच कटोराताल सड़क पर स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर शहर में उपस्थित शिवालयों में से एक हैं। इस मंदिर की स्थापना कब हुई इसकी सहीं जानकारी नहीं है लेकिन इसकी स्थापना के सम्बन्ध में एक कहानी प्रचलित है। किवंदंतियों के अनुसार जब जयविलास पैलेस का निर्माण हुआ उस समय महल तक पहुचंने के लिए यहाँ राजमार्ग का निर्माण कराया गया। इस मार्ग के बीच में शिव मंदिर आने पर तत्कालीन महाराज ने इसे हटवाने का आदेश दिया।  लेकिन अनेक प्रकार के प्रयासों के बाद भी जब सैनिक शिवलिंग को नहीं हटा पाने में असफल हुए तब महाराज माधौ राव सिंधिया प्रथम ने यहाँ एक चबूतरा बनाकर शिव मंदिर की स्थापना की। 

 गुप्तेश्वर महादेव - 


 



तिघरा रोड पर स्थित गुप्तेश्वर पहाड़ी पर भगवान भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर है। शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर  गोल पहाड़िया से मंदिर के लिए मार्ग जाता है।  यह मंदिर 500 फीट ऊंचाई पर बना है, दर्शन करने के लिए भक्तों को मंदिर में लगीं 84 सीढ़ियां चढ़ना पड़ती हैं। इस मंदिर के विषय में मान्यता है की शिवरात्रि के दिन इस मंदिर में भक्त जो भी मन्नत मांगते है, वह एक वर्ष में अगली शिवरात्रि तक पूर्ण हो जाती है ।

मोटेश्वर महादेव -


 



गेंडे वाली सड़क पर रामकुई के पास स्थित भोलेनाथ का मंदिर मोटेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को हजारेश्वर महादेव भी कहा जाता है कारण यहाँ स्थित शिवलिंग पर बने 1155 शिवलिंग। एक हजार से अधिक छोटे-छोटे शिवलिंग इस बड़े शिवलिंग पर बनें हुए है। जिसके कारण इसे हजारेश्वर महादेव कहा जाता हैं। कहा जाट है की शिवरात्रि के दिन जो भी भक्त इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की पूजा करता हैं, उसे एक हजार बार शिव को पूजने का फल मिलता है। एक हजार छोटे शिवलिंग वाली यह प्रतिमा करीब 6 फिट ऊँची एवं अत्यंत  मोटी है जिस कारण इसका एक नाम मोटेश्वर महादेव है।     

Tags:    

Similar News