ऋषि जमदग्नि व मां रेणुका को तपोस्थली जमदारा गांव, भगवान परशुराम की जन्मस्थली
- भगवान परशुराम जयंती अक्षया तृतीया पर विशेष
- अनिल शर्मा, भिंड
वेबडेस्क। मौ कस्बे से करीब 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित जमदारा गाव का माँ रेणुका देवी का मंदिर भगवान परशुराम की प्राचीन यादों को सहेजे हुये है प्राचीन एतिहासिक प्रामाणिक यह धार्मिक स्थान कभी उपेक्षा का शिकार था, लेकिन अब विकास की ओर अग्रसर है महज पाच हजार वर्ग फीट क्षेत्र का यह स्थान अब लगभग ढाई लाख बर्ग फीट क्षेत्र मे फेल चुका है जो निश्चित रूप से भिंड जिले का मौ क्षेत्र का प्राकृतिक सुषमा से आच्छादित ऋषि मुनियों देवी-देवताओं की पावन तपोवन स्थली है जिसका ताल्लुक भगवान परशुराम के पिता ऋर्षि जमदग्नि से है उन्ही के नाम से इस गाव का नाम जमदारा पड़ा होगा ,पुरातत्व खुदाई मे कई एसे अवशेष भी मिले है जिससे सावित होता है यह स्थान ऋषि जमदाग्नि व माँ रेणुका का तपोस्थल है , वर्तमान मे यहा माँ रेणुका देवी व भगवान परशुराम जी का भी भव्य मंदिर बना हुआ है
जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूरी पर मौ कस्वे के समीप स्थित तपोस्थल क्षेत्र जमदारा गांव अपने भीतर भगवान परशुराम व उनकी माता रेणुका देवी के इतिहास की प्राचीनता को भी समेटे हुए है।यहा पहले एक बहुत बड़ी गुफा हुआ करती थी जिसके अंदर रक्तरंजित रंग की पत्थर की गोलाकार लंबी शिला देखी जाती थी जिसकी लंबाई असीमित बताई जाती थी लेकिन कुछ लोगो का मानना था यह जमदारा से स्योंढ़ा तक जाती थी। जिसकी लंबाई 9 किलोमीटर थी। वर्तमान में इस स्थान पर भगवान परशुराम का भव्य मंदिर बना हुआ हैं।एसी मान्यता है कि यहीं पर परशुराम के पिता ऋर्षि जमदग्नि का आश्रम था। जो यहा अपनी पत्नी रेणुका और पांच पुत्रों के साथ निवास करते थे।
पिता के आदेश पर काटा था शीश, वरदान में मांग लिया मां का पुनर्जीवन
भगवान परशुराम ने इसी जमदारा गांव की धरती पर अपनी माता रेणुका का सिर अपने पिता के आदेश पर फरसे से काटकर गर्दन से अलग कर दिया था। प्राचीन पौराणिक लेखो के अनुसार एक कथा प्रचलित है। रेणुका माता प्रतिदिन नदी से पानी भरकर लाया करती थी।तत्पश्चात जमदग्नि ऋषि स्नान के बाद शिवजी की पूजा अर्चना किया करते थे। एक दिन माता रेणुका को पानी लाते समय देर हो गई। तभी जमदग्नि ऋषि को यह आभास हुआ कि उनका ब्राह्मणत्व समाप्त हो गया है। आभास होने पर उन्होंने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि अपनी माता का सिर तत्काल काट दो। किन्तु उनके चार पुत्रो ने अपने पिता के इस आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया । लेकिन सबसे छोटे पुत्र परशुरामजी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। उनकी पितृ भक्ति आज्ञा पालन करने से खुश पिता ऋषि जमदाग्नि ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो परशुराम जी ने बड़ी चतुराई से सभी के पुनर्जीवित व पूरे घटनाक्रम की स्मृति नष्ट हो जाने का ही वर मांग लिया
ढाई लाख बर्ग फीट क्षेत्र मे फेला है प्राचीनता से जुड़ा माँ रेणुका का मंदिर
यह मंदिर परिसर महज पाच हजार वर्ग फीट क्षेत्र मे था, जो अब लगभग ढाई लाख बर्ग फीट क्षेत्र मे आसपास की जमीन मंदिर के ट्रस्ट को मिल जाने से फेला हुआ है, अब यहा माँ रेणुका जी व भगवान परशुराम का मंदिर बन गया है जबकि पहले यह सीमित स्थान मे था उसके भीतर ही एतिहासिक महत्व की नीचे गुफा मे एक लंबी लगभग दो फुट के व्यास की रक्त रंजित रंग की रेखा थी ,जमदारा गाव का धार्मिक व पौराणिक दृष्टि से महत्व इस अंचल के प्रमुख समाजसेवी अशोक भारद्वाज ने अहम भूमिका निर्वहन की, अब यहा माँ रेणुका जी व भगवान परशुराम का मंदिर बन गया है जबकि पहले यह सीमित स्थान मे था उसके भीतर ही एतिहासिक महत्व की नीचे गुफा मे एक लंबी लगभग दो फुट के व्यास की रक्त रंजित रंग की रेखा थी
एसे पहुचा जा सकता है जमदारा के माँ रेणुका मंदिर
यहा पहुचने के लिए भिंड , मुरेना , ग्वालियर व दतिया से सड़क मार्ग के जरिये पहुचा जा सकता है बाहर से आने वालो के लिए ग्वालियर मे एयर पोर्ट है तथा ग्वालियर भिंड , मुरेना ,दतिया तक रेल सुविधा है जहा से सड़क मार्ग के जरिये बस ,टेकसी व निजी बाहन से आसानी से पहुचा जा सकता है भिंड व ग्वालियर से लगभग 55 किलोमीटर सड़क मार्ग से दूरी है जबकि दतिया व मुरेना से 110 के लगभग सड़क मार्ग से दूरी है गाव तक पहुचने के लिए पक्का सड़क मार्ग भी बना है, दंदरौआ धाम डॉ हनुमान मंदिर से महज 16 किलोमीटर है तथा रत्नगड की माता मंदिर , सनकुआ भी यहा से नजदीक ही है।