शिरोमणि दुबे
नियति का ऐसा सच, जिसे हजारों वषों के बाद भी आज तक ढका नहीं जा सका, बदला भी नहीं जा सका। गीता कहती है-''जातस्य हि ध्रुवोमृत्युर्ध्रुवंजन्ममृतस्य चÓÓ लेकिन अथ से इति तक जीवन की अनंत यात्रा में जो औरो का जीवनपंथ वुहारते रहे, वही संस्मरणीय बनते हैं, वन्दनीय हो जाया करते हैं। जिन्दगी में हम कितने पल जीते हैं यह कभी महत्वपूर्ण नहीं होता। हम कैसे जिये हैं, इतिहास उसी का मूल्यांकन करता है। जो समय की धारा को, उसके प्रवाह को मोड़ने का सामर्थ्य रखते हैं, इतिहास उसी के साथ कदमताल करता हुआ दिखाई देता है। हमारे शास्त्रों में आचायों के दो कुलों का उल्लेख मिलता है। एक वे जो सत्ता-सरकारों के दरवारों में चन्द चांदी के सिक्कों के लिए अपने हुनर की नुमाइश करते हैं। दूसरे वे जो नितांत अभावों में भी आदर्शों, मूल्यों के लिए जीने वालों की इतनी लम्बी कतार खड़ी कर देते हैं कि उनके अवसान के बाद समाज उनकी समाधियों पर पूजा का थाल सजाए खड़ा मिलता है।
अपने शिष्यों एवं आचार्य परिवार में बड़ी दीदी के नाम से विख्यात श्रीमती सुमन मुक्तिबोध अपने पीछे कुलीन आचार्य परम्परा की अमिट निषान देही छोड़कर गईं हैं। श्रीमती मुक्तिबोध ने अपने कार्यकाल में जो हीरे तराशे हैं, उन्हें देखकर उनकी व्यक्तित्व की विराटता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। वर्तमान में ग्वालियर में पदस्थ वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक श्री राजेश चंदेल शिशुुमंदिर शिवाजी नगर भोपाल में बिताए गए दिनों को याद करते हुए कहते हैं- ''मैं आज जहाँ हूँ, जिस मुकाम पर हूँ उस सफलता में सबसे बड़ा योगदान बड़ी दीदी का ही है। शारदा प्रकाशन न्यास भोपाल के निदेशक एवं पूर्ण कालिक कार्यकर्ता योगेन्द्र कुलश्रेष्ठ श्रीमती मुक्तिबोध के विभाग निरीक्षक रहते हुए उनके वात्सल्य की छांव एवं मातृवत स्नेह को याद करते हुए भाव विह्वल हो जाते हैं।
श्रीमती सुमन मुक्तिबोध 1972 में सरस्वती शिशु मंदिर शिवाजी नगर भोपाल में प्रथम प्रधानाचार्य के रूप में नियुक्त हुईं थीं। वर्तमान में विद्याभारती के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री श्रीराम आरावकर जी तथा भारतीय किसान संघ के पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री स्व. प्रभाकर केलकर जी आपके सानिध्य में आचार्य पद पर कार्यरत रहे हैं। श्रीमती मुक्तिबोध ने 1996-97 में विभाग निरीक्षक जैसे गुरूतर दायित्व का भी निर्वहन किया था। पश्चात वे प्रांतीय कार्यालय, हर्षवर्धन नगर भोपाल में परीक्षा प्रमुख के नाते कार्य करती रहीं। 80 का दशक विद्याभारती मध्यभारत प्रांत के लिए कार्य की दृष्टि से शैषवकाल ही कहा जाएगा। तब श्रीमती मुक्तिबोध दीदी का 1972 में योजना में पदार्पण एवं प्राचार्य तथा विभाग निरीक्षक का लगभग तीन दशक का कार्यकाल उल्लेखनीय उपलब्धियों एवं प्रशासनिक क्षमताओं के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।
आज भैया/बहिनों की बड़ी दीदी के महाप्रयाण से ऐसा लगता है जैसे कोई अभिभावक हम सबको छोड़कर चला गया है। श्रीमती मुक्तिबोध का अपने भैया/बहिनों के साथ मातृत्वस्नेह, आत्मीय व्यवहार एवं आचार्य परिवार के साथ बेहद न्याय प्रिय एवं पारिवारिक रिश्तों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। श्रीमती मुक्तिबोध विद्याभारती में उस पीढ़ी की कार्यकार्ता रहीं हैं, जिनकी संगठन क्षमता के लिए तथा कार्य विस्तार एवं विकास में महत्पूर्ण भूमिका के लिए वे सदैव स्मृतियों में बनी रहेंगी।
वास्तव में श्रीमती सुमन मुक्तिबोध का स्वर्गारोहण बड़प्पन की विरादरी का तिरोहित हो जाना है। विद्याभारती मध्य भारत प्रांत के अध्यक्ष मोहनलाल जी गुप्त, प्रांतीय संगठनमंत्री निखिलेश महेश्वरी एवं प्रादेशिक सचिव शिरोमणि जी दुबे सहित सम्पूर्ण विद्याभारती परिवार अश्रुपूरित नेत्रों से आदरणीय हेमन्त मुक्तिबोध सहक्षेत्र कार्यवाह राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की पूज्य माताजी की पवित्र जीवात्मा शांति के लिए तथा मुक्तिबोध परिवार को असहनीय दुख: को सहन करने की सामर्थ्य प्राप्त हो,इस हेतु ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। पूजनीय माताजी के चरणों में भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। ओम शांति:, शांति:, शांति।
(लेखक विद्याभारती से सबद्ध शिक्षाविद् हैं)