इस साल विश्व पुस्तक मेले में सनातन संस्कृति की बहुभाषी जीवंतधारा बहती दिखाई दे रही है। अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद बड़ी संख्या में पुस्तकें भी राममय या सनातन संस्कृति को अभिव्यक्त कर रही हैं। चूंकि मेला राम मंदिर के उद्घाटन के बाद भरना था, इसलिए इसका विषय भी 'बहुभाषी भारत: एक जीवंत परंपरा रखा गया है। सनातन संस्कृति और भारत के साथ विश्व वैभव के प्रमाण पहली बार संस्कृत में लिखे ऋग्वेद में मिलते हैं। ऋग्वेद ही भारत के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक वैभव और सभ्यता का मूल स्रोत है। इसे दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक होने का दर्जा प्राप्त है। इसकी अगली कड़ियों में वाल्मीकि रामायण, उपनिषद्, महाभारत और पुराण आते हैं। पंचतंत्र और जातक कथाएं लोक की प्राचीन प्रस्तुतियां हैं। भारतीय सांस्कृति इतिहास, भूगोल कथाओं एवं महाकाव्यों का एक अकर्षक बहुरूप दर्शक है, जिसमें प्रत्येक भारतीय भाषा के लोक-रंग जुड़े हुए है। मेले में बहुभाषी भारत की इसी जीवंत परंपरा का प्रदर्शन पांच मंडपों में किया गया है। जिसमें देश-विदेश के बड़ी संख्या में प्रकाशन संस्थानों ने भागीदारी की हुई है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, दिल्ली के प्रगाति मैदान में इस मेले का आयोजन प्रतिवर्ष करता है। 1972 में मेले की शुरुआत हुई थी। तब से लेकर अब तक यह मेला दर्शक संख्या की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। 2023 में यह मेला 40,000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में लगा था, जिसमें 35 से अधिक देशों की 18,000 दुकानें लगी थीं। 12 लाख पुस्तक प्रेमियों ने शिरकत की थी। इस बार मेले का क्षेत्रफल 50,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में विस्तृत कर दिया है। इसमें 40 से ज्यादा देशों के 2000 प्रकाशकों ने अपनी दुकानें लगाई हैं। बावजूद हिंदी पुस्तकों को ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक कैसे पहुंचाया जाए, यह प्रश्न अपनी जगह मौजूद रहेगा। दरअसल बड़ी संख्या में हिंदी भाषी होने के बावजूद अधिकांश में पुस्तक पढ़ने की आदत नहीं है। इस दृष्टि से पुस्तक पाठक तक पहुंचाने और पढ़ने की संस्कृति विकसित करने की जरूरत है।
हालांकि बदलते परिवेश में जहां ऑनलाइन माध्यम पुस्तक को पाठक के संज्ञान में लाने में सफल हुए हैं, वहीं ऑनलाइन बिक्री भी बढ़ी है। इसके इतर गीता प्रेस गोरखपुर ने दावा किया है कि उनकी प्रत्येक दिन करीब 1 लाख पुस्तकें बिकती हैं। इससे यह पता चलता है कि हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के खरीददारों की कमी नहीं हैं, बशर्तें पुस्तकें धर्म और अध्यात्म से जुड़ी हों। यही वजह है कि इस समय देश में पौराणिक विषयों पर लिखी पुस्तकों की बिक्री में तेजी आई हुई है। इसीलिए मेले की थीम का विषय बहुभाषी भारत: एक जीवंत परंपरा उचित है। सभी भाषाओं में ऋग्वेद, रामायण और महाभारत के पात्र और कथानकों पर हजारों साल से निरंतर लिखा जा रहा है। सच पूछा जाए तो यही वह कालजयी साहित्य है, जो भारतवासियों के प्राणों में चेतना का संचार करते हुए जीवंत बना हुआ है। भारत में जितने भी नैतिक मूल्य और रिश्तों में भरोसा कायम है, उसका आधार इन्हीं ग्रंथों की मूल भावना है।
हाल ही में एक समाचार एजेंसी की सुखद खबर आई है कि हिंदी पुस्तकों की मांग ऑनलाइन भी खूब बढ़ रही है। अभी तक इस संदर्भ में अंग्रेजी पुस्तकों का ही बोलबाला था। यह शायद पहला अवसर है जब हिंदी पुस्तकों की ई-खरीद में बढ़त दर्ज की गई है। पिछले छह माह में यह वृद्धि 60 प्रतिशत दर्ज की गई है। इससे ज्ञात होता है कि अंग्रेजी के वर्चस्व और प्रौद्योगिकी के बीच भी हिंदी खूब फल-फूल रही है। कहना नहीं होगा कि हिंदी के वास्तविक हित चिंतकों के लिए यह खबर सुखद आश्चर्य के साथ गौरवान्वित करने वाली है। ऑनलाइन अमेजन, हिंदी बुक सेंटर और फ्लिप कार्ड के जरिए खूब हिंदी पुस्तकें खरीदी जा रही हैं। दरअसल भारतीय संस्कृति इसलिए अनूठी व अद्वितीय है क्योंकि इसमें धर्म और भाषा के साथ खान-पान, रहन-सहन और पर्यावरण संबंधी विविधताएं भी मौजूद हैं। पुरातन भारतीय साहित्य की एक विलक्षणता यह भी है कि उसमें अनेकता के रूप विद्यमान है। ऐसा दुनिया के अन्य किसी देश और भाषा के साहित्य में नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं)