गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह ने भी अयोध्या आकर रामलला के दर्शन किए थे
इन्दुशेखर
वेबडेस्क। नानक के वंशज बाबा सुखवासीराम वेदी "गुरुनानक वंशप्रकाश" में लिखते हैं –
"आये अवधपुरी विखे सरजू नदि जिह संगि।
सरजू जल मंजन कीआ दरसन राम निहार।।"
गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह ने भी अयोध्या आकर रामलला के दर्शन किए। यही नहीं गुरु गोविन्द सिंह ने तो जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु मुगलों से संघर्ष भी किया था। भारतीय वाङ्मय में ऐसे अनेक साक्ष्य भरे पड़े हैं।
वस्तुत: भारतीय जन–गण–मन इन औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त इतिहासकारों के ऐतिहासिक घोटालों को पहचान चुका था। वह उनके झाँसे में नहीं आने वाला था। वह समझ चुका था कि जब तक राम और रामराज्य में सच्ची आस्था रखने वाले लोग सत्ता के केन्द्र में नहीं आ जाते, न रामलला का निर्वासन समाप्त नहीं होने वाला, न औपनिवेशिक मनोवृत्ति का। अन्ततः जन–जन की कामनाएंँ फलीभूत हुई। प्रभु कृपा से रामराज्य के प्रति संकल्पबद्ध, अपने दृष्टि–पथ में राष्ट्र और रोटी, दोनों को समान महत्व देने वाले लोग सत्ता में आए। रामपथ के अवरोधक सारे किनारे होते गए। राह के रोड़े, झाड़–झंकाड़, कांटे–भाटे, सबको उखाड़ फेंका जाग्रत जनता जनार्दन ने। भारतीय जन–मन का सदियों का स्वप्न साकार हुआ।
आज सारा देश एक अभूतपूर्व उल्लास और भक्तिभाव के साथ बाईस जनवरी की प्रतीक्षा कर रहा है। जैसे नंदीग्राम में भरत एक–एक पल गिनते हुए राम के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हों। यह रामलला की प्राणप्रतिष्ठा ही नहीं, अपने खूँटे से उखड़े हुए भारत के प्राणों की भी पुनर्प्रतिष्ठा होगी।
इन्दुशेखर