भारतीय क्रिकेट के रोमांच और गौरव का इतिहास

विश्वकप के चार दशक;

Update: 2023-06-23 19:50 GMT

निर्लेश तिवारी

भारत में एशियाई खेलों का आयोजन और दूरदर्शन और रंगीन प्रसारण को अधिकतम शहरों तक पहुंचाने का लक्ष्य तत्कालीन सरकार द्वारा तय किए गए । एशिया 82 बेहद सफल रहा और देश की जनता द्वारा दूरदर्शन पर इसे बेहतर प्रतिसाद भी मिला और अब तक दूरदर्शन देश की जनता की नियमित दिनचर्या में शामिल हो चुका था। इसी दरम्यान अवसर आया इंग्लैंड में आयोजित हों रहे 'प्रूडेंशियल विश्वकपÓ क्रिकेट का। विश्वकप 1983 के पूर्व भारतीय टीम का पाकिस्तान दौरा बेहद निराशाजनक रहा था। पाक ने छह मैचों की टेस्ट श्रृंखला 3-0 से और चार एकदिवसीय मैचों में 3-1 से विजय प्राप्त की थी । भारतीय टीम के कप्तान सुनील गावस्कर के स्थान पर युवा कपिल देव को विश्वकप के लिए भारतीय टीम की बागडोर थमाई गई। भारत का पूर्व के दो विश्वकप (1975 और 79) में प्रदर्शन बेहद निराशाजनक था। कपिल ब्रिगेड के सामने बड़ी चुनौती थी और सभी ने एकजुट होकर इतिहास रच दिया । तब ये मैच साठ-साठ ओवर्स के होते थे । उस दौर में देश में पश्चिम क्षेत्र और उत्तर क्षेत्र के खिलाड़ियों में आपसी प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा थी परन्तु पूरे विश्वकप में टीम एकजुट होकर खेली। टीम के साथ साथ दर्शकों का उत्साह भी चरम पर था । जब भारतीय टीम मात्र 183 पर धराशायी हो गई तब कप्तान कपिल देव ने टीम मीटिंग कहा 'अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिएÓ हमने 183 रन किए है और उन्हें अभी बनाना है। भारतीय दर्शकों को यह मैच गेंद दर गेंद याद है । दूरदर्शन पर उस वक्त मैच के मध्य हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा में समाचार का समय होने के कारण मैच का प्रसारण कुछ समय के लिए भारतीय दर्शक नहीं देख पाए। समाचार के बाद प्रसारण ने खुशनुमा माहौल बना दिया क्योंकि मैच बहुत हद तक भारत के पक्ष में आ चुका था। विव रिचर्ड्स का विकेट मदनलाल ने लिया कपिल के हाथों कैच करवाकर और मार्शल _डू जान की जोड़ी मोहिंदर ने तोड़ी जिसे सर्वाधिक प्रशंसा व घर घर से तालियां ,तारीफ मिली। रोचक किस्से के दास्तां में यह की विकेट गिरने पर के.श्रीकांत उत्साहित होकर विकेट कीपर के पास उछले की किरमानी के पैर में नेल्स की चोट लगी । टीम के अतिरिक्त खिलाड़ी सुनील वालसन को पूरे मैच में में भारतीय ड्रेसिंग रूम के पास के पविलियन में एक ही जगह खड़ा रहना पड़ा क्योंकि वेस्टइंडीज के विकेट लगातार गिरते जा रहे थे । मोहिंदर अमरनाथ ने भी हमेशा की भांति पिछली जेब में लाल रुमाल रखा हुआ था। आखरी विकेट माइकल होल्डिंग को आउट कर अमरनाथ ने दौड़ कर गिल्लियां हाथ में उठा ली जबकि अन्य खिलाड़ी स्टंप्स उखाड़ कर के ले आए । पूरा लॉर्ड्स का मैदान दर्शकों से भर गया और कपिल ने मुस्कराते हुए प्रूडेंशियल विश्वकप हाथों में लिया। उन्होंने कहा कि विव रिचर्ड्स शायद तीस ओवर्स में मैच समाप्त करना चाह रहे थे और वहीं वेस्ट इंडीज की हार का कारण बना। खिलाड़ियों सहित देश की जनता के लिए कपिल का विश्वकप हाथों में लेने का दृश्य अविस्मरणीय बन गया। इस विश्व विजेता टीम की अगली पीढ़ी भी मैदान में खेल चुकी है । सुनील गावस्कर के बेटे रोहन गावस्कर ,रोजर बिन्नी के स्टुअर्ट बिन्नी और कीर्ति आजाद के सुपुत्र सौम्यवर्धन व सूर्यवर्धन के श्रीकांत के बेटे अनिरुद्ध श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ के भतीजे दिग्विजय अमरनाथ क्रिकेट में सक्रिय रहे है । एक विचित्र सा संयोग रहा की विश्वकप के दौरान मात्र दो मैचों में दिलीप वेंगसरकर और रवि शास्त्री को टीम में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला और दोनों ही मैचों में भारत पराजित हुआ। पहला 13 जून को टेंटब्रिज में ऑस्ट्रेलिया 162 रनों से जीता और दूसरा ओवल में 15 जून को वेस्टइंडीज ने 66 रनों से जीता। विदित है कि इन दोनों मैचों में सुनील गावस्कर और कीर्ति आजाद बाहर बैठे। 1983 का विश्वकप जीतना कप्तान के आत्मविश्वास और टीम के जज्बे की बेहतरीन मिसाल है । टीम की एक खासियत यह भी थी की रवि शास्त्री और कीर्ति आजाद सहित कपिल,मदनलाल, रोजर बिन्नी और मोहिंदर अमरनाथ छह ऑलराउंडर्स मौजूद रहे और मौका आने पर वे उत्कृष्ट प्रदर्शन करते रहे । गौरतलब है की टीम के एकमात्र मैनेजर मानसिंह पूरा प्रबंधन देखते रहें। विश्व विजेता टीम के चौदह सदस्यों को मिलने वाली सारी भेंट ( गिफ्ट्स) उन्हें भी दी गई । यह बोर्ड और कप्तान का निर्णय था। उस दौरे पर अलग से कोई कोच ,ट्रेनर या फिजियो तक साथ नहीं थे । विश्वकप के साथ ही दूरदर्शन के आने का वो खुशगवार आलम था की शहरों के मोहल्लों, कॉलोनियों, बसाहटों में जिस घर में रंगीन टीवी होता सारे बच्चे , युवा , क्लब स्तर के क्रिकेट खिलाड़ी वहीं पूरा मैच देखते । हालांकि रेडियो कमेंट्री का क्रेज भी बरकरार रहा क्योंकि तब सभी घरों में टीवी भले ना हो रेडियो,ट्रांजिस्टर जरूर होता था। (लेखक स्तंभकार हैं)

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