भगवान श्रीराम के आगमन का अभूतपूर्व उत्सव और बालक-राम के अप्रतिम सौंदर्य में डूबा भारत एक नवीन युग में प्रवेश कर रहा है। इस ऐतिहासिक क्षण की साक्षी भारत की जनता एक ऐसे राज्य की परिकल्पना को संजो रही है जो कि राम राज्य के समान है। सरकार का क्या रुख रहेगा यह तो भविष्य के गर्त में है। परन्तु भारत की जनता क्या राम के मर्यादित जीवन का अनुसरण कर अपने वैभवशाली अतीत का पुर्नस्थापन कर सकेगी?
भारत के समाज में राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर उत्साह एवं भक्ति का संचार हुआ। इस अवसर पर भारतीय समाज में बैठी जातिव्यवस्था के लिए कोई स्थान न था। हर कोई राममय था। न कोई छोटा था न बड़ा, न ऊंचा न नीचा, न गोरा न काला, न अगड़ा न पिछड़ा। हर किसी के मुख पर माता शबरी के समान राम के आगमन के गीत और मन में राम की प्रतीक्षा थी। इस अवसर पर विश्व ने भारत की उदात्त संस्कृति एवं एकता के दर्शन किए। परन्तु इस उत्सव के उपरांत रामराज्य की संकल्पना को पूर्ण करने का दायित्व न केवल सरकार का है बल्कि आम जनता का भी है। हमें राम के जीवन चरित को अपने जीवन में उतारना होगा। राम के समान स्त्री का अपमान होने पर शस्त्र उठाने होंगे, शबरी के झूठे बेर खा कर वर्ग भेद मिटाने होंगे, विपत्ति में फंसे मित्र सुग्रीव की सहायता हेतु बाली का वध करना होगा, राजा होते हुए भी केवट को उसके श्रम का मूल्य चुकाना होगा, हनुमान के समान अपने स्वामी की भक्ति करनी होगी, राम की तरह सेवक हनुमान को प्रेम करना होगा, निषादराज को सीने से लगाना होगा, शरणागत विभीषण को अभयदान देना होगा, सुतीक्ष्ण के समान राम की भक्ति करनी होगी, राम के समान मर्यादा का पालन करना होगा, माता-पिता की आज्ञा के लिए वनवास गृहण करना होगा, विश्वामित्र के धर्म की रक्षा हेतु असुरों का वध करना होगा, शूपर्नखा के आगृह को ठुकराना होगा, स्वर्ण मृग की लालसा को त्यागना होगा, लक्ष्मण रेखा को पार करने से स्वयं को रोकना होगा, अंतिम क्षण तक युद्ध टालने का प्रयास करना होगा, अस्मिता की रक्षा हेतु लाभ-हानि से परे जाकर युद्धघोष करना होगा, नैतिकता को अपनाना होगा, विजेता होकर भी सोने की लंका का त्याग करना होगा, विषम परिस्थितियों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के समान धैर्य धारण करना होगा। तब कहीं जाकर हम सरकार से रामराज्य की अपेक्षा कर सकते हैं। क्योंकि जैसी जनता होती है वैसी सरकार होती है, जैसी सरकार होती है वैसा कानून होता है, और जैसा कानून होता है वैसा समाज होता है। इसलिए बालक राम की छवि हृदय में धारण कर स्वयं को नैतिकता के पथ पर ले जाना ही रामराज्य की स्थापना में पहला कदम साबित हो सकता है ।
(लेखक आबकारी निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं)