कुअर्तुल ऐन हैदर का भारत

अशोक मधुप

Update: 2024-01-19 20:37 GMT

कुअर्तुल ऐन हैदर उर्फ एनी आपा पूरी दुनिया घूमीं पर मन भारत में ही रमा। 'आग का दरियाÓ उनका सबसे चर्चित उपन्यास है। इसे आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था। आग का दरिया एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर 1947 के बंटवारे तक भारत और पाकिस्तान की कहानी सुनाता है। उपन्यास के तीनों युग के पात्र गौतम और चंपा की एक ही इच्छा है काशी पंहुचना। उनकी एक ही तमन्ना है कि काशी उनके सपनों का नगर बने। आनन्द नगर बने। काश कुअर्तुल ऐन हैदर या उनके उपन्यास के पात्र गौतम और चंपा आज जिंदा होते, वे आज काशी जाते तो देखते प्रदेश और केंद्र सरकार ने इस नगर को आज उनके सपनों का नगर बना दिया।

आज 20 जनवरी कुअर्तुल ऐन हैदर (एनी आपा) का जन्मदिन है। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में लिखा। किंतु इससे पहले उन्होंने वेद, भाष्य, भारतीय दर्शन को पढ़ा ही नहीं गुना भी। उसे ही उन्होंने अपनी रचनाओं में जगह दी। उनके विश्व प्रसिद्ध उपन्यास आग के दरिया में तो पूरा भारत का जीवन दर्शन है। इसमें उन्होंने भारत की तीन हजार साल की तहजीब, रहन-सहन, कला, संस्कृति और दर्शन को उतारा। पुस्तक के अनुवादक नंद किशोर विक्रम कहते हैं कि आग का दरिया की कहानी बौद्ध धर्म के उत्थान और ब्राह्मणत्व पतन से शुरू होती है। ये तीन काल में विभाजित है, किंतु इसके पात्र गौतम, चंपा, हरिशंकर और निर्मला तीनों काल में मौजूद रहते हैं कहानी बौद्धमत और ब्राह्मणत्व के टकराव से शुरू, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के टकराव तक पंहुचती है। उपन्यास देश के विभाजन की त्रासदी पर समाप्त होता है। तीनों युग के पात्र गौतम और चंपा की एक ही इच्छा है काशी पंहुचना। इस उपन्यास की खास बात यह है कि पांच सौ से ज्यादा पेज होने पर भी आदमी एक पढ़ना शुरू करता है, तो पूरा करके ही उठता है। और फिर वह भारतीय वेद, दर्शन, कला संस्क़ृति के बारे में सोचता रहता है।

कुअर्तुल ऐन हैदर का जन्म 20 जनवरी 1927 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। नहटौर के रहने वाले उनके पिता सज्जाद हैदर यलदरम कुअर्तुल ऐन हैदर के जन्म के समय अलीगढ़ विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार थे। पिता सज्जाद हैदर यलदरम खुद उर्दू के अच्छे लेखक थे। कुअर्तुल ऐन की मां नज़र ज़हरा भी उर्दू की लेखिका थी। कुअर्तुल ऐन हैदर को लिखने का शौक और कला अपने परिवार से ही मिली। उन्होंने छह साल की उम्र से से लिखना शुरू किया। कुअर्तुल ऐन की प्रारंभिक शिक्षा लालबाग, लखनऊ से हुई। दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से भी अपनी शिक्षा हासिल की। पिता की मौत और देश के बंटवारे के बाद कुछ समय के लिए वह अपने भाई मुस्तफा के साथ पाकिस्तान चली गई। पाकिस्तान से आगे की पढ़ाई के लिए वे लंदन चली गईं। साहित्य लिखने के अलावा वहां उन्होंने अंग्रेजी में पत्रकारिता भी की। उन्होंने बीबीसी लंदन में काम किया।

1956 में जब वे भारत भ्रमण पर आईं तो उनके वालिद के गहरे दोस्त, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उनसे पूछा कि क्या वे भारत आना चाहतीं हैं? कुर्रतुल ऐन हैदर के हामी भरने पर उन्होंने कोशिश की और उसमें वे कामयाब हो गए। वे हिंदुस्तान आ गईं। विज़िटिंग प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्निया, शिकागो और एरीज़ोना विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं। काम के सिलसिले में उन्होंने खूब घूमना-फिरना किया। कुअर्तुल ऐन हैदर उर्दू में लिखती और अंग्रेज़ी में पत्रकारिता करती। उन्होंने लगभग बारह उपन्यास और ढेरों कहानियां लिखीं। उनकी प्रमुख कहानियां में 'पतझड़ की आवाज, स्ट्रीट सिंगर ऑफ लखनऊ एंड अदर स्टोरीज, रोशनी की रफ्तार जैसी कहानियां शामिल हैं। उन्होंने हाउसिंग सोसायटी, आग का दरिया (1959), सफ़ीने- ग़मे दिल, आख़िरे- शब के हमसफर, कारे जहां दराज है जैसे उपन्यास भी लिखें। आख़िरे- शब के हमसफर के लिए इन्हें 1967 में साहित्य अकादमी और 1989 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें 1984 में पद्मश्री और 1989 में उन्हें पद्मभूषण से पुरस्कृत किया गया। कारे जहां दराज है, के तीन भाग में उनके अपने परिवार का एक हजार साल का इतिहास है। उन्होंने ता-उम्र विवाह नहीं किया. 21 अगस्त 2007 को, 80 वर्ष की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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