लक्ष्मी जी के पग

Update: 2020-11-22 14:04 GMT

दीपावली का पावन त्यौहार भले ही बीत गया हो पर कार्तिक माह पूर्ण होने अर्थात् कार्तिकी पूर्णिमा तक इसकी सकारात्मक ऊर्जा और तरंगें विभिन्न सांस्कृतिक त्यौहारों, परम्पराओं को समाहित करते हुए हम उत्सवधर्मी भारतीय नागरिकों को उत्सव के नये रंगों से रंगती रहेगी। छठ मैया, गोपाष्टमी, आंवला नवमी, तुलसी विवाह ( देवउठनी एकादशी ), वैकुंठ चतुर्दशी, और गुरू नानकदेव जी की प्राकट्य दिवस - प्रकाश पर्व - सभी बड़े ही महत्त्वपूर्ण और पारम्परिक उत्सव के अवसर होते हैं। इसलिए दीपावली के पूर्व से शुरू हुए पर्वों की यह श्रृंखला लगभग एक पखवाड़े तक मन और आत्मा को प्रफुल्लित किए रहती है।

ऐसे ही पावन मन और संस्कारों में आस्था का संचार करने वाली यह कहानी पढ़ी तो लगा कि इसका लाभ अन्य सब को भी लेना चाहिए। वह कहानी सबके लाभार्थ यहां प्रस्तुत है-

'अपनी लक्ष्मी'

एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है। वह गांव का रहने वाला था, पर तेज था।

उसका बोलने का लहजा गांव वालों की तरह का था, परन्तु बहुत ठहराव लिए हुए था। उसकी उम्र लगभग 22 वर्ष का रही होगी।

दुकानदार की पहली नजर उसके पैरों पर ही जाती है। उसके पैरों में लेदर के शूज थे और ठीक से पॉलिश किये हुये थे।

दुकानदार - क्या सेवा करूं?

लड़का- मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये, किंतु टिकाऊ होनी चाहिये!

दुकानदार - वे आई हैं क्या? उनके पैर का नाप?

लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, चार बार फोल्ड किया हुआ एक कागज जिस पर पेन से आऊटलाईन बनाई हुई थी दोनों पैर की!

वह लड़का बोला...

क्या नाप बताऊं साहब?

मेरी माँ की जिन्दगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पल नहीं पहनी। माँ मेरी मजदूर है, मेहनत कर-करके मुझे पढ़ाया, पढ़ कर, अब नौकरी लगी।

आज़ पहली तनख्वाह मिली है।

दिवाली पर घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊँ?

तो मन में आया कि अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर आऊँ!

दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई, जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी।

चलेगी क्या?

आगन्तुक लड़का उस कीमत के लिये तैयार था ।

दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया - कितनी तनख्वाह है तुम्हारी?

अभी तो बारह हजार, रहना-खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाएंगे है यहाँ, और तीन हजार माँ के लिये!.

अरे!, फिर आठ सौ रूपये... कहीं ज्यादा तो नहीं...।

तो बात को बीच में ही काटते हुए लड़का बोला- नहीं, कुछ नहीं होता!

दुकानदार ने चप्पल बॉक्स पैक कर दिया। लड़के ने पैसे दिये और

ख़ुशी-ख़ुशी दुकान से बाहर निकला ।

तभी दुकानदार ने उसे कहा -

थोड़ा रुको!

साथ ही दुकानदार ने एक और बॉक्स उस लड़के के हाथ में दिया

यह चप्पल माँ को, तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट। माँ से कहना पहली खराब हो जायें तो दूसरी पहन लेना, नँगे पैर नहीं घूमना और इसे लेने से मना मत करना!

दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा--

उन्हें मेरा प्रणाम कहना! और क्या मुझे एक चीज़ दोगे?

बोलिये।

वह पेपर, जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी, वही पेपर मुझे चाहिये!

वह कागज, दुकानदार के हाथ में देकर वह लड़का खुशी-खुशी चला गया!

वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में रख़ा,

दुकान के पूजाघर में कागज़ को रखते हुये दुकानदार के बच्चों ने देख लिया था और उन्होंने पूछ लिया कि - ये क्या है पापा?

दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला -

लक्ष्मीजी के 'पगÓ लिये हैं बेटा !!

एक सच्चे भक्त ने उसे बनाया है, इससे धंधे में बरकत आती है!

यह हैं हमारे संस्कार , संस्कृति,

और हमारे सद्गुणों की विरासत।

प्रस्तुति : अकिंचन

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