हरेक माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान बिना किसी तनाव और चिन्ता के सफलता के शिखरों को छूती रहे तथा किन्हीं भी स्थितियों में किसी परीक्षा, प्रतिस्पर्धा अथवा पढ़ाई के भय से न तो अवसाद में जाए और न ही आत्मघात करें। सभी माता-पिता ये भी प्रयास करते हैं कि उस अन्जान-अनदेखे-अपरिचित नगर में उनका कोई निकट अथवा दूर का सगा सम्बन्धी अथवा उनके मित्र का कोई सगा-संबंधी निकल आए जो कभी-कभार ही सही उनकी संतान को सम्बल दे सकें ताकि उसका मनोबल उच्च बना रहे। यदि किसी कारण से ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता है तो माता-पिता किसी शिक्षक से मिलकर अपनी चिन्ता के चलते उनके हाथ-पैर जोड़कर अपनी संतान का ध्यान रखने की अनुनय-विनय करते हैं। इसके अतिरिक्त वे फोन करके हर दिन अपनी संतान से बातचीत कर उसके मनोबल को बनाए रखते हैं और अकेलेपन की अनुभूति से उसे मुक्ति दिलाने का प्रयास करते रहते हैं।
परन्तु क्या कोई माता-पिता अपने बच्चे के बिलकुल पास रहकर उसका मनोबल निरन्तर बढ़ा पाते हैं, नहीं कदापि नहीं, कामकाज, नौकरी आदि के चलते यह असम्भव है। इन दिनों पिता और माता भी बच्चे के भविष्य निर्माण के लिए एक नए प्रकार के व्यामोह के चक्कर में अपनी संतानों के परोक्ष शत्रु-से बन गए हैं। हालांकि उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं होती है, वास्तव में संतान के प्रति अतिशय अनुराग और उसके भविष्य के प्रति गहन चिन्ता ही उन्हें ये सब करने के लिए विवश कर देती है और फिर उनका जो व्यवहार संतान के प्रति होता है, वह प्रत्यक्ष रूप से संतान के प्रति शत्रुवत होता चला जाता है।
कोटा या कोटा जैसे कोचिंग प्रधान नगरों अथवा छोटे-छोटे नगरों तथा कस्बों में लाड़ली संतानें पढ़ाई- परीक्षा के भय से, माता-पिता की महत्वाकांक्षा के चलते अवसाद या मृत्यु का हाथ थाम कर महायात्रा के लिए निकल पड़ती हैं। परीक्षा में कम अंक प्राप्त करने पर भी सातवीं, आठवीं और नवीं कक्षाओं के बच्चों की आत्मघात की ह्रदय विदारक घटनाओं को देश ने देखा है। बच्चों के आत्मघात से देश और समाज तथा शिक्षा जगत में अस्थायी रूप से थोड़ी-सी हलचल अवश्य होती है और फिर सब शान्त हो जाता है, मानो कुछ हुआ ही नहीं। देशभर की हजारों-लाखों समस्याओं से जूझते हुए और उनका सटीक समाधान करते हुए भी मोदीजी ने राजा सुरथ की तरह देशभर की किशोर और युवा पीढ़ी को अपना मानते हुए परीक्षा के महाभय से मुक्ति की दिशा में पर्याप्त चिन्तन किया और फिर अपनी सुचिन्तित योजना को धरातलीय स्वरूप प्रदान करते हुए, उस महाभय को परास्त करने के लिए स्वयं ही विद्यार्थियों से प्रत्यक्ष संवाद करने उतर पड़े और धीरे-धीरे उन्होंने देश के ढाई करोड़ परीक्षा चिन्तित (एग्जाम वारियर) विद्यार्थियों को परीक्षा वारियर्स के रूप में परिणत करने में सफलता अर्जित कर ली है ।और तो और उन्होंने अत्यन्त ही प्रभावी शैली में 'एग्जाम वारियर्सÓ अर्थात् परीक्षा योद्धा नामक पुस्तक रच डाली, इस पुस्तक की रचना मात्र से समझा जा सकता है कि विश्व के सर्वाधिक व्यस्त राजनेता के मन में अपने देश की भावी कर्णधार पीढ़ी की कितनी गहन चिन्ता है। इस पुस्तक की विषय-वस्तु इतनी प्रभावी और सहज-सरल है कि विद्यार्थी इसे पढ़कर पढ़ाई के भूत से स्वयं भी मुक्त हो सकता है। मेरे अभिमत में यह पुस्तक देश के हरेक स्कूल में अनिवार्य रूप से होना चाहिए। इसका अध्ययन अभिभावकों और शिक्षकों को भी करना चाहिए। यह पुस्तक एक संगी साथी की तरह हरेक बच्चे के पास रहेगी तो उसके अकेलेपन को कदाचित दूर करने में सफल होगी ही। यह पुस्तक 13 भारतीय भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है और इसकी कीमत मात्र 125 रुपए है। मोदीजी का यह अभियान लगभग पांच-छह वर्षों से निरन्तर चल रहा है और निरन्तर श्रेष्ठता और अधिक प्रभावशील होने की दिशा में अग्रसर होता जा रहा है।
अस्तु, 02.02.2024 को नई दिल्ली में शून्य से 18 वर्ष तक के बच्चों के हितार्थ गठित राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो की अध्यक्षता में देशभर के लगभग ढाई सौ शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञों को प्रबोधन-प्रशिक्षण दिया गया और इस प्रबोधन उत्सव में ब्लूक्राफ्ट डिजिटल ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी तथा मोदीजी के इस अभियान से जुड़े अखिलेशजी मिश्रा (शिक्षा से अभियंता) ने भी मोदीजी के परीक्षा पर्व 6.0 के विषय में प्रस्तुति के माध्यम से सम्बोधित और प्रेरित करते हुए सभी से आव्हान किया है कि आपको मोदीजी के संदेशवाहक के रूप में देश के 256 जिलों के सभी विद्यार्थियों को परीक्षा योद्धा के रूप में परिणत करना है। ऐसे अनूठे जनसेवक को शत-शत नमन करता हूं।
(लेखक शासकीय मेडिकल कॉलेज इंदौर के सेवानिवृत्त सह प्राध्यापक हैं)