अल्पसंख्यकवाद-सेकुलरवाद पर मंडराते खतरे से बेचैनी!
विदेशी अखबारों के झरोसे से-डॉ. सुब्रतो गुहा
समानता से नाराजगी
भारत के उत्तराखंड राज्य की सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू कर दी है जिससे राज्य के मुसलमान अब मुस्लिम पर्सनल कानून के माध्यम से इस्लामी शरिया नियमों का पालन नहीं कर पाएंगे। अब उत्तराखंड राज्य में सभी धर्मों के नागरिक विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, तलाक पश्चात मरण पोषण राशि इत्यादि समस्त विषयों में समान नियमों को मानने हेतु आध्य होंगे। राज्य के मुस्लिमों ने समान नागरिक संहिता का इस आधार पर विरोध किया है कि राज्य की हिंदूवादी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने यह कानून मुसलमानों को शरिया कानूनों के अनुपालन से वंचित करवाने के कुत्सित इरादे से किया है। इस नए कानून से मुस्लिमोंके बहुविवाह, हलाला, अठारह से कम आय की बालिकाओं के विवाह इत्यादि परम्पराओं पर भी रोक लग गई है। भारत के अनेक उदारवादी बुद्धिजीवियों ने समान नागरिक संहिता का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ताधारी हिन्दूवादी दल का मुस्लिमों को निशाना बनाकर भारत के बीस करोड़ अल्पसंख्यक मुस्लिमों को प्रताड़ित करने का जघन्य प्रयास बताया है।
- द टाइम्स लंदन, ब्रिटेन
(टिप्पणी-भारतीय संविधान के डायरेक्टिव प्रिन्सिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी के अनुच्छेद 44 में भारत सरकार को भारत के समस्त नागरिकों हेतु समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्देश दिया गया है। इसलिए आज उत्तराखंड सरकार और कल भारत सरकार समान नागरिक संहिता लागू करेगी, तो भारत का कोई भी न्यायालय उसे असंवैधानिक अथवा गैर कानूनी घोषित कर निरस्त नहीं कर सकती। इसी कारण भारत के इस्लामपंथी वामपंथी, उदारपंथी, प्रगति पंथी हताशा और निराशा में अपनी खीझ और आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। आक्रोश भी क्यों न हो? कितने सुंदर सेकुलर कार्य अब नहीं हो पाएंगे-बहु विवाह द्वारा जनसंख्या वृद्धि में अविस्मरणीय योगदान, निकाह हलाला द्वारा इस्लामी धर्म गुरूओं की सुख प्राप्ति, पैतृक सम्पत्ति से पुत्रियों को वंचित कर परिवार के पुरूष सदस्यों को लाभान्वित करना, कागजी तौर पर ही भारत को सेकुलर देश बताकर इस्लामी शरिया कानून लागू कर इस्लामी राष्ट्र का स्वप्न साकार करवा अब सारे सपने अधूरे रह गए-दिल के अरमान आंसुओं में बह गए।)
सनातन जाग्रति एवं उत्कर्ष
भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में सत्रहवीं शताब्दी में निर्मित ज्ञानवापी मस्जिद में हिन्दुओं द्वारा पूजा की अनुमति वाराणसी जिला न्यायालय ने दे दी। इसके कुछ ही घंटों बाद से ही ज्ञानवापी मस्जिद के एक हिस्से में हिन्दू पुजारियों द्वारा पूजा के मंत्र सुने जा रहे हैं और भारी संख्या में हिन्दू भक्त अपने देवता के दर्शन हेतु पहुंच रहे हैं। ज्ञानवापी परिसर में पूजा संपन्न करने वाले मुख्य पुजारी आशुतोष व्यास ने मीडिया से कहा-ज्ञानवापी परिसर में हम पुजारीगण प्रतिदिन पांच बार पूजा कर रहे हैं तथा प्रतिदिन दस हजार से अधिक भक्त अपने आराध्य देव के दर्शन हेतु पहुंचते हैं-जिनकी इच्छा है कि वे अपने भगवान शिव को इसी स्थान पर एक भव्य मंदिर में देखें। उधर ज्ञानवापी परिसर के निकट रहने वाले मुस्लिमों तथा मुस्लिम वकीलों ने कहा कि यहां आने वाले हिन्दू भक्त आपत्तिजनक नारे लगाते हैं और वर्तमान भारत में अल्पसंख्यक अधिकार एवं सेकुलरवाद पर खतरा मंडरा रहा है।Ó
- द डॉन, कराची, पाकिस्तान
(टिप्पणी-अल्तनतकालीन एवं मुगलकालीन कट्टरपंथी शासकों ने इतिहासकारों के अनुसार समूचे भारत में लगभग चालीस हजार मंदिरों का विध्वंस कर वहां मस्जिदों का निर्माण तो करवाया परंतु एक बड़ी गलती यह कर दी कि उन्हीं मंदिरों के खम्बों एवं अन्य हिस्सों का उपयोग नव निर्मित मस्जिदों में कर दिया जिससे उन मस्जिदों के अंदर हिंदू देवी देवताओं की आकृतियां एवं मूर्तियां मौजूद है-जबकि इस्लाम में मूर्तिपूजा का निषेध है। ऐसे अकाट्य प्रमाणों के फलस्वरूप कहीं न्यायालय द्वारा उन मस्जिदों को फिर से मंदिर न घोषित किया जाए-इस उद्देश्य से उन्नीस सौ इक्यानवे में तत्कालीन चैम्पियन सेकुलर सरकार द्वारा प्लेटसेस ऑफ वरशिप कानून द्वारा 15 अगस्त 1947 के बाद धर्मस्थलों के स्वरूप परिवर्तन पर रोक लगा दी गई। पर अब देवीय लीला कृत्रिम कानून पर भारी पड़ रही है।)
कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना
भारत के उत्तराखंड राज्य के हल्दवानी शहर में नगर निगम तथा पुलिस द्वारा एक मदरसे और मस्जिदों को ध्वस्त करने के विरोध में भड़के दंगों में तीन लोग मारे गए तथा एक सौ पचास घायल हुए जिनमें सौ पुलिसकर्मी है। हिंसा नियंत्रित करने हेतु राज्य सरकार ने शहर मेें कर्फ्यू लगवाकर पुलिस को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए हैं।
- साउथ चायना मार्निंग पोस्ट हांगकांग
(भारतीय एवं विदेशी सेकुलर मीडिया हल्दवानी की घटना को हिन्दूवादी राज्य सरकार द्वारा इस्लाम से नफरत के फलस्वरूप एक मस्जिद और एक मदरसे को ध्वस्त करने के कारण उपजे वाजिब आक्रोश की परिणति निरूपित कर रहे हैं। परंतु यह सेकुलर मीडिया इस तथ्य को छुपा रही है कि वह मस्जिद, मदरसा और निकट के कई घर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर बनाए गए थे। इस संदर्भ में सुनवाई के बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार पुलिस व नगर निगम को अवैध निर्माणों को तोड़ने का आदेश दिया। इस आदेश के विरूद्ध मुस्लिम पक्ष के माफिया मलिक ने अपील दायर की परंतु पिछले दिनों उत्तराखंड उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने राहत की अपील खारिज करते हुए अवैध निर्माण ध्वस्त करने का आदेश यथावत रखा। पर क्यां करें-सेकुलर मीडिया मुस्लिम विक्टिम कार्ड खेलना ही जानती है)
(लेखक अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक हैं)