नारी सशक्तिकरण की महान प्रणेता सावित्रीबाई फुले

जयंती पर विशेष

Update: 2024-01-02 20:31 GMT

डॉ. राम प्रसाद प्रजापति

लगभग 140 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले विश्व के सबसे बड़े लोक तांन्त्रिक देश के सर्वोच्च पद पर आज एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति पद को सुशोभित करती है तो या कहीं न कहीं सावित्रीबाई फुले जैसी समाज सुधारक और प्रथम महिला शिक्षिका के बलिदानों का परिणाम है। आज हम देश की पहली महिला शिक्षिका और महान समाज सेविका सावित्रीबाई फुले की 193वीं जयंती मना रहे हैं। गुलामी के उस दौर में जहाँ एक और औपनिवेशिक ताकतों ने हमारी आजादीऔर मूलभूत अधिकारों पर कब्ज़ा कर रखा था। वहीं सामाजिक कुरीतियों और जातिगत भेदभाव के चलते दलित, शोषित, पिछड़ी जातियों के लोग और विशेषकर महिलायें समाज में शिक्षा और अपना सम्मान प्राप्त करने के लिए वंचित थे। देश में आजादी से पहले समाज के अंदर छुआ-छूत, सती प्रथा, बाल-विवाह और विधवा-विवाह जैसी कुरीतियां चरम पर व्याप्त थीं। महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था और उनका स्कूल जाना भी पाप समझा जाता था। महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार में 3 जनवरी 1831को जन्मी सावित्रीबाई फुले का विवाह महज नौ साल की उम्र में वर्ष 1840 में महात्मा ज्योतिबाफुले से हो गया। उन्होंने ज्योतिबा के साथ मिलकर अस्पृश्यता, जातिवादी व्यवस्था और समाज की अन्य कुरीतियों के विरुद्ध लड़ाई लड़कर महिलाओं की शिक्षा के लिए क्रान्तिकारी अभियान शुरू किया।

यह महान सामाजिक कार्य करने के लिए सावित्रीबाई को अपने साथ हुई एक घटना ने प्रेरित किया। दरअसल वे एक दिन अंग्रेजी की एक किताब हाथ में लेकर पढ़ रहीं थीं तभी उनके पिता ने देख लिया और किताब को लेकर फेंक दिया। उनके पिता ने कहा कि शिक्षा सिर्फ उच्चजाति के पुरुष ही ग्रहण कर सकते हैं। दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने की इजजात नहीं है, क्योंकि उनका पढ़ना पाप है। इस घटना ने सावित्रीबाई की आत्मा को झंझकोर दिया और उन्होंने प्रण लिया कि वह स्वयं शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ समाज के हर वर्ग और विशेष कर महिलाओं की शिक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देगी। मात्र 17 वर्ष की आयु से ही उन्होंने बड़े संघर्षमय ढंग से लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल का संचालन किया। यह वह दौर था जब हमारा देश अंग्रेजों के शासन की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और महिलायें सामाजिक कुरीतियों और रुढ़िवादियों का शिकार होतीं थीं। ऐसे कठिन समय में सावित्रीबाई फुले के द्वारा महिलाओं और दलितों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए किये गए क्रांतिकारी कदमों का परिणाम आज हम सामाजिक परिवर्तन और नारी सशक्तिकरण के रूप में देख रहे हैं।

दलित महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने, छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें एक बड़े वर्ग द्वारा विरोध भी झेलना पड़ा। वह स्कूल जाती थीं, तो उनके विरोधी उन्हें पत्थर मारते और उन पर गंदगी फेंकते थे पंरतु वह अपने लक्ष्यों से तनिक भ ीविचलित नहीं हुईं। सावित्रीबाई फुले शिक्षक होने के साथ भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री भी थी। आज भारत की महिलाएं टेक्नोलॉजी से लेकर स्पेस तक में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है जो सावित्रीबाई के बलिदान का परिणाम है। उन्होंने साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में भारत के पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी। इसके बाद उन्होंने लड़कियों के लिए 18 स्कूलों का निर्माण कराया। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों की लड़कियों, विशेष रूप से पिछड़े, अनुसूचित जातियों और जनजातियों की लड़कियों को शिक्षा देने का महान कार्य किया। वाास्तव में यह भारतीय समाज में महिलाओं के समग्र सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। सावित्रीबाई फुले, जो नारी शक्ति की प्रतीक हैं और नारी सशक्तिकरण की महान क्रांति की अग्रदूत बनी। नारी सशक्तिकरण का विषय अब केंद्र और राज्य सरकारों का मुख्य केंद्र बन गया है। आज बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनायें सावित्रीबाई फुले के नारी सशक्तिकरण हेत ुकिये गए प्रयासों का परिणाम है। देश की बेटियां आज खेल, विज्ञान, प्रशासन, सांस्कृतिक, आदि क्षेत्रों में अपना परचम विश्व स्तर पर लहरा रहीं हैं।

सावित्रीबाई फुले द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण कर देश में आज महिला शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए कई महत्व पूर्ण कार्य हो रहे है। परन्तु आंकड़े हमें इन लक्ष्यों के प्रति और गंभीर होने की और इशारा करते है। आजादी के 75 वर्ष पूर्ण करने के बाद भी देश में आज महिला साक्षरता की दर लगभग 77 प्रतिशत है जो की विश्व के औसत से लगभग 20 प्रतिशत कम है। सकल घरेलु उत्पाद में महिलाओं का वर्तमान में योगदान लगभग 18 प्रतिशत है जिसे और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।

मेकिंसेग्लोबल इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार भारत महिलाओं को समान अवसर प्रदान कर वर्ष 2025 तक अपने सकल घरेलु उत्पाद में 770 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ सकता है। आज भारत दुनिया में स्टार्टअप्स के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है परन्तु इसमें केवल 10 प्रतिशत का नेतृत्व महिला संस्थापकों ने किया है। समय की मांग है कि महिला उद्यमियों के लिए मानसिक और आर्थिक रूप से और अधिक समर्थन जुटाया जाए और उनके सशक्तिकरण में योगदान दिया जाये। बेटियों की शिक्षा और सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में उनके योगदान को बढ़ाये जाने के लिए सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है। महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यक्ति, समाज, सरकारों और लोकतान्त्रिक संस्थाओं को जमीनी स्तर पर और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।

यह सर्व विदित है कि सामाजिक उत्थान और राष्ट्र निर्माण में शिक्षित नारी की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। सावित्रीबाई फुले के कुछ अनमोल विचारों में एक सशक्त शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है आज बहुत प्रासन्गिक है। आज जब हम सावित्रीबाई फुले को उनकी जयंती पर महिला शिक्षा और उत्थान की प्रणेता के रूप में याद कर रहे है, वहीं हमारी भी इस महान कार्य में सक्रीय भूमिका अपेक्षित है। समाज के हर वर्ग को महिलाओं के लिये ऐसा सकारात्मक वातावरण बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ेगी। जिस प्रकार ज्योतिबाफुले ने सावित्रीबाई फुले जी को अवसर दिया और सावित्रीबाई फुले न ेउस अवसर का प्रयोग महिलाओं को शिक्षित करने का माहौल तैयार करने के लिए किया। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम महिलाओं को राष्ट्र निर्माण हेतु आगे बढ़ने के लिए समान अवसर प्रदान करें यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

(लेखक जेनयू में सह प्राध्यापक हैं)

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