भारतीय स्वाधीनता संग्राम में करोड़ो प्राणों के बलिदान हुये। ये बलिदान साधारण नहीं थे। पर इन बलिदानों के लिये अव्हान करने वाले शब्द साधकों की भी एक धारा रही है जिन्होंने अपने शब्दों की शैली और गीतों के माध्यम से राष्ट्र जागरण का अभियान छेड़ा। यह अभियान स्वतंत्रता के पहले भी चला और स्वतंत्रता के बाद भी। अपनी रचनाओं से राष्ट्र जागरण करने वाल: ऐसे ही कालजयी रचनाकार हैं कवि प्रदीप। जिन्होंने जीवन भर अपने ओजस्वी गीतों से पूरे राष्ट्र चेतना की अलख जगाई। स्वतंत्रता के पूर्व यदि उनके गीतों में संघर्ष के लिये आव्हान था तो स्वाधीनता के बाद राष्ट्र निर्माण की उत्प्रेरणा ।
स्वाधीनता के पूर्व -दूर हटो ये दुनियाँ वालो ये हिन्दुस्तान हमारा है। और स्वतंत्रता के बाद- 'ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आँख में भर लो पानीÓ जैसे अमर गीत के रचयिता कवि प्रदीप ही हैं। वे दुनियाँ के उन विरले गीतकारों में से हैं जिनका हर गीत लोकप्रिय हुआ। उन्होंने दो हजार से अधिक गीत लिखे। राष्ट्र भक्ति के ही सौ से अधिक गीत हर देशवासी की जुबान पर चढ़ गये। ऐसे अमर गीतों के गीतकार कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी1915 को मध्यप्रदेश में उज्जैन जिले के अंतर्गत बड़नगर में हुआ। उनके पिता रामचंद्र द्विवेदी आर्य समाज से जुड़े थे। घर में राष्ट्रसेवा सांस्कृतिक गरिमा का वातावरण था। इसलिये प्रदीपजी मन और विचार बचपन से राष्ट्र और संस्कृति चेतना से भरे थे। उनकी प्रारंम्भिक शिक्षा बड़नगर में ही और उच्चशिक्षा लखनऊ में हुई।
कविताएं लिखने का शौक उन्हें बचपन से था। वे एक दृश्य देखकर अथवा कोई प्रसंग सुनकर बहुत प्रभावी गीत या कविता रच देते थे। उनकी इसी विद्या ने पढ़ाई के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय में लोकप्रिय हो गये। पढ़ाई के दौरान ही उनकी भेंट उस समय के एक प्रखर और प्रभाव शाली कवि गिरिजा शंकर दीक्षित से हुई। दीक्षित जी अपने समय में कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय कवि और उनके शिक्षक भी थे। उनके मार्गदर्शन गीत जीवन की यात्रा आरंभ हुई। प्रदीपजी ने 1939 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और शिक्षक बनने की तैयारी भी। पर गीत रचना निरन्तर रही। उनके शिक्षक दीक्षित जी के पिता बलभद्र प्रसाद जी भी अपने समय के लोकप्रिय गीतकार थे। और उनके कुछ गीत फिल्मों में आये। वे प्रदीप जी के गीतों से बहुत प्रभावित थे। उन्हीं दिनों प्रदीपजी ने 'चल चल रे नौजवानÓ एक गीत लिखा। दीक्षित ने यह गीत मुम्बई भेज दिया। यह गीत एक फिल्म 'नौजवानÓ में आ गया। फिल्म लोकप्रिय हुई और गीत भी। इस गीत के साथ प्रदीप जी रातों रात पूरे देश में लोकप्रिय हो गये। 1942 में उनका दूसरा गीत मानों 'भारत छोड़ो आंदोलनÓ का एक मंत्र बन गया। यह गीत था 'आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा हैÓ। यह गीत समाज को आव्हान करने वाला था आँदोलन के दौरान उस समय हर गली चौराहे पर गाया गया। 1944 में उनके एक और गीत 'दूर हटो ऐ दुनिया वालो, यह हिन्दुस्तान हमारा हैÓ ने फिर पूरे देश में तहलका मचा दिया। अंग्रेजी सरकार ने उनके गीतों को भड़काने वाला माना और गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया। कवि प्रदीप गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गये। बाद में फिल्म निर्माताओं ने मध्यस्थता की और प्रशासन को फिल्म स्क्रिप्ट के लिये इन गीतों की आवश्यकता बताई तब जाकर वारंट निरस्त हुआ।
प्रदीप जी ने स्वतंत्रता के बाद जागृति जैसी फिल्मों के लिये नये अंदाज से गीत लिखे। 'हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकल केÓ आज भी लोकप्रिय है। उन्होंने 1954 में बच्चों को समझाया कि 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झाँकी हिन्दुस्तान कीÓ। इस गीत में भारत के गौरवमयी अतीत की मानों एक झाँकी थी। स्वतंत्रता की इस यात्रा के बीच ही 1962 में भारत चीन युद्ध आ गया। उस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने कितनी विषम परिस्थिति में भारत राष्ट्र की रक्षा की। वे कहानियाँ दिल को दहलाने वाली है। सैनिकों के बलिदान पर उनका गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानीÓ की रचना की। जिस भाव से प्रदीप ने इस गीत की रचना की उसी भावना से लता जी ने गाया। इस गीत के बोल आज भी हृदय को छू जाते हैं। यह गीत देश भक्ति के गीतों में अग्रणी माना गया। भारत सरकार ने उन्हे 'राष्ट्र कविÓ के सम्मान से सम्मानित किया। सतत शब्द साधना और अपने गीतों से राष्ट्र साधना में रत प्रदीप जी ने अंतत: 11 दिसम्बर 1998 को 83 वर्ष की आयु में इस संसार से विदा ली । शत शत नमन।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)