भारतीय संसद पर सबसे ख़तरनाक हमले की 22वीं बरसी पर सुरक्षा में कुछ ऐसी सेंध लगी कि किसी को कुछ समझ नहीं आया कि ये सचमुच का हमला था, नाटक था या फिर आतंकवादी घटना थी। ध्यान देने लायक बात तो यह भी है कि भारत के तमाम विपक्षी दल भी तय नहीं कर पा रहे थे कि हुआ क्या। एक तरफ़ कहा जा रहा था कि संसद पर आतंकवादी हमला हुआ है और दूसरी तरफ़ इस घटना को यह कह कर वैध बताया जा रहा था कि यह कार्यवाही देश में बेरोज़गारी के कारण हुई है। ये तो सीधे-सादे विद्यार्थी हैं, इनका आतंक से क्या लेना-देना। वैसे ध्यान देने लायक बात यह भी है कि अमरीकी आतंकवादी पन्नू ने भी आतंकवादी हमले की चेतावनी दे रखी थी।
भारत के लिये कानून बनाने वालों ने कानून को किनारे पर रखा और दर्शक दीर्घा से छलागं लगा कर संसद में बंदरों सी उछल-कूद करने वाले और स्मोक-बम चलाने वाले दो युवाओं की जमकर पिटाई की। आप उनसे यह नहीं पूछ सकते कि आपने उनको सीधे-सादे तरीके से सुरक्षा-कर्मियों के हवाले क्यों नहीं कर दिया। अचानक इंडी गठबंधन के दिमाग़ में एक रोशनी प्रज्जवलित हुई। उन्होंने सोचा कि उनके गठबंधन का तो कोई भविष्य दिखाई दे नहीं रहा। तो क्यों न संसद की सुरक्षा के मामले को ही कैश किया जाए। उसके बाद शुरू हुआ संसद में हंगामा। नारेबाज़ी, पोस्टर, बैनर और लोकसभा अध्यक्ष व राज्य सभा के सभापति की गुहारों का खुला उल्लंघन। माँग केवल एक ही दोहराई जा रही थी कि गृहमंत्री और प्रधानमंत्री सुरक्षा में हुई चूक पर संसद में बयान दें।
पता चला कि बेभाव संसद सदस्यों का निलंबन शुरू हो गया। लोकसभा हो या राज्यसभा दोनों में कोई भेदभाव नहीं था। सांसद यहां भी खेत रहे और वहां भी। ज़ाहिर है कि सांसद ऐसी अपेक्षा नहीं रख रहे थे कि इतनी बड़ी संख्या में उनका निलंबन हो सकता है। एक सोच यह भी है कि वे जानते थे कि वे जैसा व्यवहार कर रहे हैं, उनका निलंबन निश्चित है और यही वो चाहते भी थे... क्योंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पराजय के बाद विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा था 2024 के चुनावों के लिये।
अब इंडी एलायंस ने जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया है और संसद के द्वार पर ही राज्यसभा के सभापति महामहिम जगदीप धनखड़ की मिमिक्री का कार्यक्रम आयोजित कर दिया जिसमें टी.एम.सी. के सांसद कल्याण बनर्जी ने जॉनी लीवर की कला का प्रदर्शन किया और राहुल गांधी साहब को कैमरामैन का कॉट्रेक्ट दिया गया। बीच-बीच में संवाद अदायगी भी हुई और राहुल गाँधी ने जवाब में कहा - 'मैं लोकसभा से हूं। भारतीय संसद में चुनाव लड़ने के लिये कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं की गई है। इसलिये हो सकता है कि सांसदों को पता ही न हो कि लोकसभा और राज्यसभा में कैसा व्यवहार अपेक्षित है। वे शायद न जानते हों कि किस तरह का आचरण उन्हें निलंबित कर सकता है।
मुझे एक संपादक के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास हुआ और मैं संविधान के वे नियम खोज कर लाया हूं जिनके तहत सदस्यों को संसद से निलंबित किया जा सकता है। आप सब यूट्यूब पर वीडियो देख कर तय कर सकते हैं कि क्या सांसदों का आचरण इतना ख़राब था कि उन्हें निलंबित किया जाए या फिर उनके साथ अन्याय हुआ है।
हमें एक बात याद रखनी होगी कि आचरण की यह नियमावली वर्तमान भारतीय जनता पार्टी ने नहीं बनाई है। यह नियमावली कांग्रेस पार्टी द्वारा ही बनाई गई है और उन्होंने ही उनमें बदलाव भी किया है। भारतीय सांसदों को समझना होगा कि नियम 373 के तहत लोकसभा अध्यक्ष किसी सदस्य के आचरण में गड़बड़ी पाए जाने पर उसे तुरंत सदन से हटने का निर्देश दे सकता है। और जिन सदस्यों को हटने का आदेश दिया गया है वे तुरंत ऐसा करेंगे और शेष दिन की बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे। नियम 374 के तहत अध्यक्ष उस सदस्य का नाम ले सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या सदन के नियमों का लगातार और जान-बूझकर उल्लंघन कर कार्य में बाधा डालता है।
इस प्रकार नामित सदस्य को शेष सत्र की अनधिक अवधि के लिये सदन से निलंबित कर दिया जाएगा। इस नियम के अधीन निलंबित कोई सदस्य सदन से तुरंत हट जाएगा।नियम 374ए को दिसंबर 2001 में नियम पुस्तिका में शामिल किया गया था। इसके अनुसार घोर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में अध्यक्ष द्वारा नामित किये जाने पर सदस्य लगातार पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये स्वत: निलंबित हो जाएगा। अब बात करते हैं राज्य सभा की... राज्यसभा की प्रक्रिया के सामान्य नियमों के नियम 255 (राज्यसभा) के तहत सदन का पीठासीन अधिकारी संसद सदस्य के निलंबन का आह्वान कर सकता है। सभापति इस नियम के अनुसार किसी भी सदस्य को जिसका आचरण उसकी राय में सही नहीं था या उच्छृंखल था निर्देश दे सकता है। नियम 256 (राज्यसभा): यह सदस्यों के निलंबन का प्रावधान करता है। सभापति किसी सदस्य को शेष सत्र से अनधिक अवधि के लिये परिषद की सेवा से निलम्बित कर सकता है।
याद रहे कि इस निलंबन की भी कुछ शर्तें होती हैं। निलंबन मनमाने ढंग से या फिर मनमानी अवधि के लिये नहीं किया जा सकता है।
निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिये हो सकती है।
निलंबित सदस्य कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते हैं या समितियों की बैठकों में शामिल नहीं हो सकते हैं।
वे चर्चा या प्रस्तुत करने के लिये नोटिस देने के पात्र नहीं होंगे।
वे अपने प्रश्नों का उत्तर पाने का अधिकार खो देते हैं।
एक महत्पूर्ण बात याद रखने वाली यह है कि संविधान का अनुच्छेद 122 कहता है कि संसदीय कार्यवाही पर अदालत के समक्ष सवाल नहीं उठाया जा सकता। मैं पाठकों के समक्ष यह स्वीकार करता हूं कि मैं कोई संविधान विशेषज्ञ नहीं हूं। मैंने केवल सरल भाषा में संसद की वो नियमावली अपने पाठकों के सामने रखी है जिसके तहत संसद सदस्यों का निलंबन किया जा सकता है।
आमतौर पर संसद की लाइव कार्यवाही देखने पर महसूस होता है कि भारतीय संसद सदस्यों को किसी प्रकार का प्रशिक्षण शायद नहीं दिया जाता। सत्ता का मद इतना नशीला होता है कि वे ये भी भूल जाते हैं कि उनका काम देश को सुचारू रूप से चलाना है। राष्ट्र हमेशा दल, चुनाव, और निजी सरोकारों से बड़ा होता है। राष्ट्रहित ही सांसदों के लिये सर्वोपरि होना चाहिये। यह ठीक है कि हर संसद सदस्य राजनीतिक दल का सदस्य होता है, मगर उसे राष्ट्र से जुड़े हर मुद्दे पर राजनीति करना ज़रूरी नहीं है। यह तो कतई आवश्यक नहीं है कि विपक्ष सत्ता पक्ष के हर निर्णय का विरोध करे और सत्ता पक्ष विपक्ष-मुक्त भारत की कल्पना को साकार करना अपना परम कर्तव्य समझने लगे।
कवि शैलेन्द्र ने लिखा था - 'जो जिस से मिला सीखा हमने / ग़ैरों को भी अपनाया हमने।Ó हमें देखना होगा कि जिस समय हमास ने इजराइल पर पांच हज़ार रॉकेट दागे थे, उस समय इजराइल के प्रधानमंत्री के विरोध में विपक्ष पूरी शिद्दत से जुटा हुआ था। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के त्यागपत्र की मांग की जा रही थी। मगर जैसे ही हमास का आक्रमण हुआ, पूरा देश एक मु_ी होकर नेतन्याहू के साथ खड़ा हो गया। कुछ इसी तरह यदि संसद पर हुए हमले के बाद भारतीय संसद भी एकजुट हो कर संसद की सुरक्षा के बारे में सोचते और इस मुद्दे पर राजनीति न करते तो इतने महत्वपूर्ण बिल विपक्ष की अनुपस्थिति में पास नहीं हो पाते।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं लंदन में रहते हैं)