लक्षद्वीप और मालदीव की घटना के बाद विपक्ष को यह तो समझ में आ गया होगा कि उनकी सोच कितनी छोटी है, और देश किस हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा है। मोदी दो और तीन जनवरी को लक्षद्वीप गए थे। चार जनवरी को उन्होंने समुद्र तट की कुछ तस्वीरें और वीडियो जारी किया। मोदी की इन तस्वीरों और वीडियो ने मालदीव को हिला कर रख दिया। वहां के तीन मंत्रियों को आने वाले खतरे का आभास हो गया। खतरा यह कि मोदी लक्षद्वीप को टूरिज्म के लिए डवलप कर देंगे, तो मालदीव कौन आएगा। मालदीव की सारी अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठ जाएगा। क्योंकि हर साल अमूमन तीन लाख भारतीय टूरिस्ट मालदीव जाते हैं। हड़बड़ी में वहां के दो मंत्रियों और एक सांसद ने भारत और मोदी के खिलाफ एक्स पर बदजुबानी कर दी। बदजुबानी का नतीजा यह निकला कि सोशल मीडिया पर बायकाट मालदीव ट्रेंड करने लगा। देश की फ़िल्मी हस्तियों, खिलाड़ियों, विद्वानों, युवाओं ने सोशल मीडिया पर 'बायकाट मालदीवÓ की मुहिम चला दी। 24 घंटे के भीतर भारत की 'ईज्जीमाई ट्रिपÓ कंपनी ने मालदीव की सारी बुकिंग कैंसिल कर के पर्यटकों का एक करोड़ 30 लाख रुपया वापस लौटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। चार हजार लोगों ने अपने होटलों की बुकिंग रद्द करा दी। तीन हजार हवाई टिकटें रद्द हो गईं। मालदीव के उच्चायुक्त को विदेश मंत्रालय ने तलब किया।
यह तो अभी शुरुआत है, इस खतरे को वहां के विपक्ष ने सब से पहले भांपा, पूर्व राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने तुरंत राष्ट्रपति से अपील की कि भारत के खिलाफ लिखने वालों पर कार्रवाई करें। भारत विरोधी नए राष्ट्रपति मोहम्मद मोईज्जू ने भी तुरंत भांप लिया कि इसके क्या नतीजे होंगे। मोईज्जू को चीन समर्थक और भारत विरोधी माना जाता है। उन्होंने राष्ट्रपति बनते ही भारत के साथ रिश्ते खराब करना शुरू कर दिया है। भारत के साथ रिश्तों का खराब होना, उतना खतरनाक नहीं है, जितना यह कि वह मालदीव को चीन की गोदी में बिठाने की कोशिश कर रहा है। चीन की सेना मालदीव में आ कर बैठेगी, तो भारत के लिए खतरा बढ़ेगा, क्योंकि मालदीव और लक्षद्वीप की दूरी सिर्फ। 54 किलोमीटर की है। चीन समर्थक मोईज्जू ने राष्ट्रपति की शपथ लेने से पहले ही मालदीव में तैनात 75 भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग रख दी थी, इन सैनिकों को वहां आपदा ग्रस्त लोगों को बचाने के लिए लगाया गया था। भारत ने पहले दो हेलिकाप्टर और बाद में एक विमान वहां के आपदाग्रस्त लोगों को सही वक्त पर मदद पहुँचाने के लिए गिफ्ट किया था। इन हेलिकाप्टरों को विमान के संचालन और रखरखाव के लिए 75 भारतीय सैनिक तैनात किए गए थे। अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी मोईज्जू ने भारतीय सैनिकों को वापस भेजने का मुद्दा बनाया था और राष्ट्रपति बनते ही भारत के साथ किए गए हईद्रोग्राफिक सर्वेक्षण के समझौते को भी रद्द कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी की तरह छुट्टियां मनाने लक्षद्वीप नहीं गए थे। वह बड़ा लक्ष्य साध कर लक्षद्वीप गए थे। बड़ा लक्ष्य यह कि चीन की गोदी में बैठने की तैयारी कर रहे मालदीव की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई जाए। मालदीव के विपक्ष और वहां के राष्ट्रपति को तो यह बात समझ में आ गई, इसलिए तीनों मंत्रियों को 48 घंटों के भीतर सस्पेंड कर दिया गया। हालांकि उन मंत्रियों की बदजुबानी भारत के विपक्षी दलों के नेताओं जितनी अज्ञानतापूर्ण और मूर्खतापूर्ण नहीं थी। भारत के विपक्षी नेताओं की अपने ही देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ बदजुबानी देश पिछले दस साल से झेल रहा है। मोदी विरोध में उनकी सोचने समझने की क्षमता बिलकुल खत्म हो गई है। उन्हें हर बात में विरोध करना है। जब 4-5 जनवरी को दुनिया भर में लक्षद्वीप ट्रेंड कर रहा था, देश जान समझ रहा था कि मोदी कितना दूर की सोच कर लक्षद्वीप गए, और वहां से दुनिया भर को संदेश दिया। मालदीव को भी संदेश दिया कि अगर वह भारत के दुश्मन की गोद में जा कर बैठेगा, तो उसे ही नुक्सान उठाना पड़ेगा। मोदी ने जबर्दस्त कूटनीति खेली, जिसे मालदीव के विपक्ष ने समझा, पूर्व राष्ट्रपति ने उन बदजुबान मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
लेकिन सिर्फ बदजुबानी से अपनी राजनीति चलाने वाले भारत के विपक्ष को कुछ समझ नहीं आया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे ने मोदी के लक्षद्वीप जाने पर जो भद्दी टिप्पणी की, वह मालदीव के मंत्रियों से भी खराब है। जब कूटनीति की समझ न हो तो जुबान बंद रखनी चाहिए। कूटनीति तो क्या मल्लिकार्जुन खड्गे को तो राजनीति की भी समझ नहीं है, वरना मोदी के लक्षद्वीप के दौरे पर ऐसी टिप्पणी नहीं करते। अब उन से कोई पूछे कि लक्षद्वीप के फोटो वीडियो की उन्हें समझ नहीं आई थी, तो किसी से पूछ लेते, उसकी मणिपुर की घटना से तुलना करने की क्या जरूरत थी। मोदी की लोकप्रियता पर उनकी प्राब्लम समझ में आती है। लेकिन यह प्राब्लम उस समय नफरत लगने लगती है, जब आप देश की गरिमा, स्वाभिमान, देश का हित अहित समझे बिना बदजुबानी करते हैं। आप को मोदी के मन्दिर जाने पर एतराज है, आपको उनके लक्षद्वीप जाने पर एतराज है, उनके फोटो और वीडियो पर एतराज है। यह सब नफरत है, मोहब्बत की दूकान नहीं है।
मोदी एक लंबी सोच के साथ लक्षद्वीप गए थे। अगर कोई पड़ोसी देश दुश्मन बन जाए, तो जरूरी नहीं कि उसके साथ सीमा पर युद्ध लड़ा जाए। युद्ध के दूसरे तरीके भी अपनाए जाते हैं। मालदीव के नए राष्ट्रपति ने जिस तरह भारत के साथ संबंध बिगाड़ने की शुरुआत की, वह भारत के लिए इसलिए चेतावनी है, क्योंकि मालदीव चीन की गोद में जा कर बैठ रहा है। अगर उसकी सेना मालदीव में आ कर बैठ गई, तो लद्दाख और अरुणाचल के बाद लक्षद्वीप में भी सैन्य अड्डा स्थापित करना पड़ेगा। वैसे 2008 में जब पाकिस्तानी आतंकवादियों ने अरब सागर के रास्ते भारत में घुसकर मुम्बई पर हमला किया था, तब यह बात ध्यान में आ गई थी कि हमारी समुद्री सीमाएं सुरक्षित नहीं है। सिर्फ 32 किलोमीटर क्षेत्रफल वाले लक्षद्वीप में 36 टापू हैं, सिर्फ 70 हजार की आबादी है, जिनमें 95 प्रतिशत मुस्लिम हैं। चीन मालदीव को अड्डा बनाकर बहुत आसानी से लक्षद्वीप पर कब्जा कर सकता है। 60 साल तक समुद्री सीमा के इन टापूओं की सुरक्षा के बारे में कुछ सोचा ही नहीं गया। 2008 के आतंकी हमले से सबक लेकर 2010 में पहली बार वहां कोस्ट गार्ड स्टेशन बनाया गया, 2012 में नेवी बेस बनाया गया। अब वहां ढाई किलोमीटर की हवाई पत्ती भी बन रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे या तो राजनीति और कूटनीति में जीरो हैं, या फिर वह राहुल गांधी के इशारे पर चीन की तरफदारी कर रहे हैं। उन्हें कांग्रेस का चीन के साथ किया गया समझौता देश को बताना चाहिए। चीन के जिस दस्तावेज पर राहुल गांधी ने दस्तखत किए थे, उस दस्तावेज की कापी उनके कब्जे में है, क्योंकि वह अब कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। उन्हें यह भी देश को बताना चाहिए कि गांधी परिवार ने वे कागज उन्हें सौंपे हैं या नहीं।
(लेखक देश के ख्यात समीक्षक एवं स्तंभकार हैं)