क्यों होना चाहिए विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ

दीपक उपाध्याय

Update: 2024-02-07 20:48 GMT

मध्यप्रदेश के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली सरिता अभी कुछ महीनों पहले तक स्थानीय निकाय चुनावों में वोटर लिस्ट अपडेट कर रही थी। फिर चुनावों में उसने चुनाव में वोटिंग और वोटों की गिनती का काम किया। जनवरी में हुए चुनावों की वजह से परीक्षा से ठीक पहले बच्चों पढ़ाई के समय टीचर्स चुनावों की ड्यूटी पर लगे रहे। इसके बाद अब राज्य विधानसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई है और राज्य के शिक्षक एक बार फिर घर घर जाकर वोटर लिस्ट अपडेट करने में लग गए हैं। बात सिर्फ यहीं तक नहीं है, अगले साल मई में लोकसभा चुनाव भी होंगे यानि ये टीचर्स एक बार फिर पढ़ाई के अलावा वोटर लिस्ट अपडेट, फिर वोटिंग ड्यूटी और उसके बाद वोटों की गिनती। ये हालत सिर्फ सरिता की नहीं है, बल्कि देश में लगभग सभी राज्यों में बार बार होने वाले चुनावों की वजह से राज्य का पूरा सिस्टम पॉलिसी बनाने और उसे लागू करने की बजाय चुनाव संबंधी कार्यों में लग जाता है। बार बार होने वाले चुनावों की वजह से राज्य में बहुत सारे कार्यों को भी रोकना पड़ता है। मसलन दिल्ली में कुछ महीनों पहले नगर निगम के चुनाव हुए हैं, इन चुनावों में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिला है। इसके बाद अगले साल लोकसभा चुनाव है और उसके बाद विधानसभा चुनाव यानि जो पॉलिसी भारतीय जनता पार्टी ने नगर निगम में बनाई थी, वो नई पार्टी के सत्ता में आने के बाद बदल जाएंगी, निगम चुनावों के ठीक दो सालों के बाद विधानसभा चुनाव होंगे। यानि विधानसभा में सत्ता परिवर्तन हुआ तो नगर निगम की पॉलिसी पर एक बार फिर दबाव आ जाएगा। जो अधिकारी अभी तक नगर निगम और दिल्ली सरकार में सत्ताधारी पार्टी के हिसाब से चल रहे थे, वो अचानक एक बार फिर अपने को एडजस्ट करने की कोशिशों में लग जाएंगे, इससे दिल्ली की पॉलिसी पर दबाव आ जाएगा। असल में बार बार होने वाले चुनावों की वजह से किसी भी देश राज्य या निगम में पॉलिसी पर बहुत बुरा असर होता है, क्योंकि हर दूसरे और तीसरे साल में कम से कम एक चुनाव होता है। कई बार तो ये हर साल होता है। सोचिए, जिस राज्य में हर साल चुनाव होते हो, वहां राजनैतिक दल चुनावों के हिसाब किताब में ही लगे रहेंगे, तो वो जनता के लिए कब काम करेंगे। ये तो सिर्फ पॉलिसी की बात हुई। अगर खर्चे को देखा जाए हर बार चुनावों में नए सिरे से खर्चा होता है।

सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनावों में 55 हज़ार करोड़ रुपये का खर्चा हुआ था और इन चुनावों के छह महीने पहले से ही चुनावों की तैयारियां शुरूहो जाती है और चुनावों के बाद अगले तीन महीनों तक सरकार के गठन की प्रक्रिया चलती है यानि लगभग एक साल चुनावों में चला जाता है। ऐसा ही विधानसभा चुनावों में होता है। अगर ये दोनों चुनाव एक साथ होंगे तो राज्य और देश का पूरा एक साल तो बचेगा ही, साथ ही साथ दोनों चुनावों में होने वाला खर्चा भी लगभग आधा हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि देश में एक देश एक चुनाव का फार्मूला पहली बार दिया जा रहा है। देश में 1952 से लेकर 1967 तक चार चुनावों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। देश में एक साथ चुनाव कराए जाने का ये सिलसिला 1967 के बाद टूट गया था, जिसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई थी। जहां हुए विधानसभा चुनाव में त्रिशंकू विधानसभा बनी और किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, यहां गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन कुछ दिन बाद ही सरकार गिर गई. इसी वजह से फिर चुनाव की स्थिति बन गई, इसके अलावा 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव हो गए थे, यही वजह रही कि देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने का सिलसिला थम गया था।

अब मोदी सरकार ने एक बार फिर एक साथ चुनाव कराने की योजना बनाई है। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बना दी गई है। अगर ये कानून बन जाता है तो इससे देश का बड़ा भला होगा। देश का भी एक लाख करोड़ रुपये से ज्य़ादा का खर्चा कम होगा। सरकार को चाहिए कि इसपर जल्द से जल्द फैसला ले और अगले कुछ सालों में होने वाले चुनाव एक साथ कराएं। अगले एक साल में लोकसभा के साथ साथ 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनाव नवंबर 2023 तक होने है, जबकि 2024 लोकसभा चुनावों के साथ साथ सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा और आंध्रप्रदेश के चुनाव होने हैं। इसके बाद 2024 के अंत में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं और 2025 में बिहार और दिल्ली में चुनाव होने हैं। यानि 11 राज्यों में चुनाव अगले कुछ समय में होने वाले है। कम से कम ये चुनाव तो एक साथ हो ही सकते हैं। इससे 'वन नेशन वन इलेक्शनÓ का रास्ता खुल जाएगा। सरकार को चाहिए कि संसद के विशेष सत्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाने संबंधी कानून को पास करा लिया जाए। ताकि अगले साल बाकी राज्यों के चुनाव एक साथ कराकर इस पूरी प्रक्रिया को आसानी से पूरा किया जा सकता है। इससे देश की एनर्जी और पैसा दोनों बचेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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