साफ़ सुथरी स्लेट पर कोई चीज बड़ी आसानी से अंकित हो जाती है। बच्चे के मन बड़े कोमल, सरल और साफ सुथरे होते हैं। विद्यालयो का दायित्व है कि बच्चो में संस्कार डालें। विद्यालय वस्तुत: मानव बनाने की फैक्टरियां है। पेट भरने के लिए योग्यता हासिल करने के लिए बच्चे विद्यालय जाते हंै। लेकिन आज यह ठीक उतनी ही सत्यता के नजदीक है। जितना लोग कल्पना करते हैं। विद्यालय तो सच्चे अर्थों में मानव को मानव बनाने के लिए होते हंै। धर्म और नैतिक शिक्षा के लिए कुछ नहीं होता। पुस्तकों का भार ढोना भर पढ़ाई है। आजकल देखने मे आता है कि छोटे-छोटे बच्चों के बस्ते पुस्तकों से इतना भारी हो जाता है कि अपना बस्ता नहीं संभाल पाते हैं। बच्चों को सलीका सिखाया जाता है। उसको एटीकेट बताया जाता है, पर धर्म और मानवता के संस्कार कुछ और है। शिक्षा संस्कारों की जननी है। अच्छे संस्कारों के जो बीज माँ बचपन में डालती है। उनका विकास पल्लवन और फलन शिक्षा के माध्यम से हो सकता है। आज के विद्यालय बच्चों को सुसंस्कृत नहीं बनाते। लेकिन आज के शिक्षक कुलक्षण वाले होते जा रहे हैं। शिक्षक पर अंगुली उठाना हमारा संस्कार नहीं है और उनके करतूतों पर पर्दा रख दिया तो विद्यालय में शिक्षक अपनी करतूतों को कम करने की जगह बढ़ाने का ही कार्य करेगा। वैसे तो समय-समय पर शिक्षकों की करनी मीडिया के माध्यम से हमें सुनने पढ़ने को मिलती है। कोई ऐसा राज्य नहीं है कि वहां पर किशोरी के साथ अश्लील हरकतें की शिकायत नहीं मिली हो। शिक्षक सरस्वती के पवित्र धाम में बैठकर घिनोने कृत्य करते हंै यह सभ्य समाज पर कलंक समान है। राजस्थान के जयपुर में शराबी प्रिंसिपल ने स्कूल को ही शर्मसार किया। शराब के नशे में स्कूल पहुंचने वाला शिक्षक कई बार स्टाफ के साथ मारपीट भी कर चुका है। नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ के मामले में सस्पेंड हो चुका था। स्कूल स्टाफ को धमकाने के वीडियो भी वायरल हो चुके हैं। परबतसर थाना की पुलिस शराबी शिक्षक को पकड़कर थाने ले गई थी। इस तरह की कई घटनाएं हमारे आंखों से ओझल नहीं होती हंै। आज तो स्कूल टीचर और विद्यार्थी दोनों ही भटक चुके हैं। अध्यापक अपने नौकरी करते है और विद्यार्थी डिग्रियां लेते हंै। राष्ट्रभक्ति और नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका है। ज्ञान के मंदिर में शिक्षक ही अश्लील हरकतें करता है तो वहां पर पढ़ने वाले बच्चे कैसे होंगे। विद्यालय छात्रों को शिक्षा और जगह धर्म के संस्कार भी दे। परोपकार नैतिकता और राष्ट्रभक्ति का संस्कार दें। लेकिन शिक्षक ही कुमार्ग पर चलते हंै तो बच्चों के संस्कार पर क्या असर होगा,उसकी हम कल्पना कर सकते हैं। ऐसी की घटना थोड़े दिन पहले बिहार में घटित हुई थी। शिक्षा के इस पवित्र मन्दिर की पवित्रता बरकरार रखनी ही चाहिए।