योगी रचेंगे पांच-पांच इतिहास

रामेन्द्र सिन्हा

Update: 2022-01-22 20:05 GMT

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लखनऊ। एक  तो कड़ाके की ठंड, उस पर सियासी पारा हाई। छोटी बहू अपर्णा यादव ने परिवार की राजनीति को टाटा-बॉय-बॉय किया तो अब सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के साढ़ू और औरैया के विधूना से विधायक रहे प्रमोद कुमार गुप्ता ने धमाका कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि मुलायम को उनके घर में ही बंधक बना करके रखा गया है। गुप्ता ने यह भी कहा कि पार्टी में न मुलायम सिंह यादव का समान बचा है, न अखिलेश के चाचा शिवपाल का। अगले ही दिन वे भाजपा में शामिल भी हो गए। वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  और गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ पांच-पांच इतिहास रचने की दहलीज पर खड़े हैं। तो, अखिलेश यादव ने भी पहली बार सपा की पारंपरिक सीट मैनपुरी की करहल विधानसभा से चुनाव लडऩे का एलान किया है।

स्वामी प्रसाद मौर्य सहित तीन मंत्रियों और अनेक विधायकों के इस्तीफे तथा साइकिल की सवारी से सपा ने जो जातिगत सियासी बढ़त लेने की कोशिश की थी, उसकी हवा फिलहाल निकल चुकी है। सीएम योगी के गोरखपुर से ताल ठोकने की घोषणा, फिर मुलायम परिवार-परिजनों में ही भाजपा की सेंधमारी। मुलायम सिंह यादव के रिश्ते में समधी हरिओम यादव पहले ही कमल थाम चुके थे। योगी आदित्यनाथ के लिए फिलहाल चुनाव लडऩा जरूरी नहीं था। वह सितंबर, 2017 में विधान परिषद सदस्य के रूप में निर्विरोध चुने गए थे और उनका कार्यकाल 6 जुलाई 2022 तक है।

योगी आदित्यनाथ जिस गोरक्षपीठ का नेतृत्व करते हैं उसका राजनीति से बहुत पुराना संबंध रहा है। सन् 1967 में इस पीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ हिन्दू महासभा के टिकट पर सांसद बने थे। उनके उत्तराधिकारी  और श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेता महंत अवेद्यनाथ वर्ष 1962, 1967, 1974 और 1977 में मानीराम विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। उन्होंने वर्ष 1970,1989,1991 और 1996 में लोकसभा में गोरखपुर का प्रतिनिधित्व किया। 1998 में महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी थी। उनके बाद योगी आदित्यनाथ विरासत में मिली परंपरा को निभाते हुए सिर्फ 26 साल की उम्र में 12वीं लोकसभा के लिए सांसद चुने गए। इस तरह मार्च 2017 में मुख्यमंत्री बनने तक 28 साल गोरखपुर के सांसद का पता गोरखनाथ मंदिर रहा। जहां तक गोरखपुर सदर विधानसभा सीट का सवाल है, 55 साल से यहां भगवा रंग चढ़ कर बोलता रहा है।

1967 से यहां जनसंघ और उसके बाद अब भाजपा का कब्ज़ा है। इस सीट पर भी गोरखनाथ मंदिर का निर्विवाद प्रभाव है। वर्तमान में राधामोहन दास अग्रवाल यहां से विधायक हैं। 2002 में योगी ने ही अपने चुनाव प्रबंधक डॉ. अग्रवाल को हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा था। राधामोहन ने तब भाजपा के कद्दावर नेता शिवप्रताप शुक्ल  को शिकस्त दे दी थी। बाद में राधामोहन भी भाजपा में शामिल हो गए और लगातार चार बार विधायक चुने गए। गोरखपुर से योगी के चुनाव लडऩे से भाजपा को सिर्फ गोरखपुर ही नहीं बल्कि संतकबीर नगर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, अंबेडकर नगर और सिद्धार्थनगर जैसे जिलों में और मजबूती मिली है। 2017 चुनाव के पहले सपा और बसपा का भी यहां खासा जनाधार था लेकिन उनका तिलिस्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ के बूते भाजपा ने तोड़ दिया था। जाति, संप्रदाय और धर्म के सारे समीकरण अमूमन ध्वस्त हो गए थे।

पूर्वांचल की 165 विधानसभा सीटों से होकर ही प्रदेश की सत्ता  का रास्ता खुलता है। वर्ष 2007 में बसपा ने इन 165 सीटों में से 97 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी, जबकि 2012 में सपा 99 सीटें अपनी मुट्ठी  में करके सत्ता  का ताज पा सकी थी। 2017 में तो भाजपा ने 115 सीटों पर जीत का परचम लहरा दिया था और प्रचंड बहुमत से साा की बागडोर छीन ली थी। दरअसल, मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ कर जो संदेश यूपी वालों दिया था, वैसा ही संदेश पूर्वी उार प्रदेश की जनता को योगी ने दिया है। जहां तक अयोध्या, मथुरा और काशी से उमीदवारी की बात है, ये तो वह नाम हैं जिनका सिक्का सब जगह चलता है। माना जाता है कि योगी कहीं से लड़ते जीत ही जाते लेकिन उार प्रदेश की बाकी लड़ाई के लिए शायद उतनी स्वतंत्रता उन्हें नहीं मिलती। जबकि, गोरखपुर से उमीदवारी के चलते योगी को समूचे उत्तर  प्रदेश और अन्य चुनावी राज्यों के लिए भी समय देना सहज और आसान होगा।

योगी आदित्यनाथ गोरखपुर (शहर) सीट से विधानसभा चुनाव जीतने पर पांच इतिहास रचेंगे। नंबर एक, योगी बीते 15 वर्षों में एमएलए का चुनाव जीतने वाले उार प्रदेश के पहले सीएम होंगे। उनके अतिरिक्त अखिलेश और मायावती भी अपने पिछले कार्यकाल में एमएलसी ही रहे थे और दोनों ने सीएम रहते हुए विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। नंबर दो, उत्तरप्रदेश में 1985 के विधानसभा चुनाव के बाद कोई भी मुख्यमंत्री  चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में नहीं लौटा है। 37 साल पहले यह कामयाबी अविभाजित यूपी में कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी को मिली थी। अगर योगी गोरखपुर से चुनाव जीते और भाजपा दोबारा सत्तामें लौटती है तो यह एक रिकॉर्ड होगा जो 37 वर्ष बाद दोहराया जाएगा।

नंबर तीन, उत्तर  प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से पहले भाजपा के तीन नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला है। कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। इनमें से किसी भी सीएम के नाम पार्टी को चुनाव में जिताकर दोबारा सत्ता में लाने का सेहरा नहीं बंधा है। योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ रही भाजपा यदि यूपी का ताज फिर पा जाती है तो योगी भाजपा के पहले मुख्यमंत्री होंगे जिन्हें चुनाव जीतने के बाद दोबारा सरकार बनाने का मौका मिलेगा।

नंबर चार, असल में साल 1971 में त्रिभुवन नारायण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वे चुनाव हार गए। हालांकि, वीर बहादुर सिंह गोरखपुर से चुनाव जीतकर सीएम बनने वाले रहे। उन्होंने पनियरा (अब महाराज गंज में) से विधानसभा चुनाव जीता था। यह अलग बात है कि उन्होंने सीएम रहते यह चुनाव नहीं लड़ा था, बल्कि यहां से जीतने के बाद सीएम बने थे। तो, योगी सीएम रहते गोरखपुर से चुनाव जीतने वाले पहले व्यक्ति होंगे।

नंबर पांच, सीएम योगी आदित्यनाथ से पहले के मुख्यमंत्री नोएडा आने से कतराते थे। ऐसी धारणा थी कि जो भी सीएम नोएडा जाता है उसकी कुर्सी खतरे में पड़ जाती है या फिर उसकी दोबारा ताजपोशी अटक जाती है। पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह जून 1988 में यहां आए और कुछ दिन बाद ही उनकी कुर्सी चली गई। इसी डर से मुलायम, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव ने भी मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा आने से परहेज किया। अक्टूबर  2011 में मुख्यमंत्री रहते मायावती दलित स्मारक स्थल का उद्घाटन करने नोएडा आई थीं, लेकिन 2012 के चुनाव में उन्हें साा गंवानी पड़ी। पूर्व सीएम अखिलेश यादव तो सार्वजनिक तौर पर अपना यह डर स्वीकार कर चुके हैं। लेकिन, सीएम योगी ने न सिर्फ इन दकियानूसी दलीलों को सार्जनिक तौर पर खारिज किया, बल्कि वह कई बार आधिकारिक कार्यक्रमों के लिए नोएडा गए। जहां तक अखिलेश की बात है, यादव बहुल सबसे सुरक्षित पारंपरिक सीट करहल से लडऩे का फैसला लेकर उन्होंने जता दिया है कि वे आजमगढ़ से दोबारा चुनाव लडऩे का रिस्क नहीं लेना चाहते। साथ ही प्रदेश की बाकी सीटों की लड़ाई के लिए भी खुद को फ्री रखना चाहते हैं। (लेख

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