हरदोई: कैसे चलिबो गुइयाँ कार्तिक मेला? ढाई माह बचा कार्तिक मेला को, राजघाट जाने वाली राह तबाह…

2 जूनियर इंजीनियर पीडब्ल्यूडी के झूठ परोसने में सस्पेंड, ढहे गहा पुल की सुध-बुध तब भी नहीं ली। राजघाट मेला के दौरान प्रशासन के रूट डायवर्जन में घाट जाने का है इकलौता रास्ता, 25 बरस से पुल है पीडब्ल्यूडी की लीज प्रॉपर्टी, पर मान नहीं रहा अपनी अथॉरिटी, 16 किलोमीटर का फेरा लगा काम धंधे पर जा पाती बड़ी बसावट।

Update: 2024-08-28 11:03 GMT

बृजेश कबीर। दरिया पुल पर चलता था पानी में रेलें चलती थीं, लंगूरों की दुम पर अंगूरों की बेलें पकती थीं। रपट का मर्म हैं, गुलज़ार की अदद लाइनें, जो बिलग्राम, रहुला गनीपुर, जफरपुर, छिबरामऊ से राजघाट के मध्य गंगा की सहायक नदी गहा के पांच दशक से अधिक पुराने पुल की करुण कथा है। ये रास्ता और पुल लोक मान्यताओं और आस्था में रचे बसे राजघाट (गंगा तट) ले जाने वाले प्रमुख दो रास्तों में एक है। इसका इतना ही महत्व नहीं है। प्रमुख स्नान पर्वों पर जब लाखों श्रद्धालुओं के कदम राजघाट की ओर होते हैं, तब इस रास्ते और पुल का प्रशासनिक व्यवस्था की दृष्टि से महत्व बढ़ जाता है। प्रशासन बिलग्राम से राजघाट का ट्रैफिक डायवर्ट करता है। बिलग्राम, रहुला गनीपुर, जफरपुर, छिबरामऊ से राजघाट पहुंचाया जाता है। वापसी जफरपुर से सीधे बिलग्राम की ओर रहती है।

अब कार्तिक पूर्णिमा मेला को खाली ढाई महीने (15 नवम्बर) बचे हैं और राजघाट का पहुंच मार्ग और पुल दोनों ध्वस्त हैं। दरअसल, 50 साल बूढ़ा ये पुल पिछले कार्तिक पूर्णिमा मेला खत्म होने के बाद ट्रैफिक का बोझ नहीं उठा पाया था। एक डम्पर के गुजरने के दौरान पुल ऐसा बैठा, कि साल भर होने को है, अखबारों के अलावा किसी की नजर में नहीं उठ सका। बताते हैं, पुल ढहने के बाद जिलाधीश मंगला प्रसाद सिंह गए थे नजर मारने और पीडब्ल्यूडी के दो जूनियर इंजीनियरों की नौकरी को नजर लग गई थी, दोनों सस्पेंड हुए थे झूठी रिपोर्ट देने में। लेकिन, गहा नदी के पुल पर फिर भी बे-नजरी ही है।


हालांकि, इलाके के लोग सरकार से उम्मीद रखे हैं। उन्हें लगता है, योगी सरकार में पतित पावनी गंगा किनारे लगने वाले कार्तिक मेला में जाने वाली राह में कंटक किस तरह हो सकते ? लेकिन, पीडब्ल्यूडी महकमा किस कदर पाजी है, शायद ही जानते होंगे। पिछले बरस कार्तिक पूर्णिमा मेला के बाद जब गहा पुल ढहा तब रखरखाव का जिम्मेदार लोक निर्माण विभाग ने अव्वल तो पुल अपना नहीं माना। हालांकि, जिलाधीश मंगला प्रसाद सिंह ने जांच कराई तो विभाग का झूठ पकड़ा गया। इसके बाद पीडब्ल्यूडी के दो जूनियर इंजीनियरों को निलंबित करने का आदेश कर ग्रामीणों को बहलाया गया था।

असल में, पीडब्ल्यूडी ने रिपोर्ट दी थी, गनीपुर गांव से आने जाने को एक कच्चे रास्ते संग वैकल्पिक सम्पर्क मार्ग हैं, जिनसे आवागमन है। यह भी कहा था, दूसरी छोर से निकलने के लिए एक कच्चा वैकल्पिक रास्ता ग्रामीणों बनाया था जो पानी में बह गया। मौके की सच्चाई ने पीडब्ल्यूडी की कलई उतार दी। गनीपुर वालों ने बालू भारी बोरियों और ईंटों आदि से कच्चा रास्ता तैयार किया हुआ है, जो आज भी उपयोग में ला रहे हैं और नदी पार जाकर खेती करते हैं।

किसान और दूसरे कामगार इस रास्ते को छोड़ दें तो उन्हें 16 किलोमीटर का फेरा लगा गांव आने जाने की मजबूरी है। गनीपुर से जफरपुर के लिए पहले बिलग्राम, फिर छिबरामऊ से गंतव्य पर पहुंचने की मुसीबत है। फत्तेपुर, पन्यौड़ा , महसोनामऊ सहित तमाम गांवों के लोगों को गनीपुर के लिए जफरपुर, म्योरा रोड से बिलग्राम, रहुला होते हुए पहुंचना पड़ रहा है। पुल के इस ओर गनीपुर के लोगों को गांव में पहुंचने के लिए ही लम्बा फेरा लगाना होता है।

बताते हैं, पुल के लिए बजट स्वीकृत है लेकिन पीडब्ल्यूडी बताता है, नदी में पानी ज्यादा है, कम होने पर निर्माण ही निर्माण होगा। इससे इलाके में खासी नाराजगी है। पहले भी पुल जर्जर होने की जानकारी विभाग को दी गई थी, पर क्षतिग्रस्त होने तक कोई मरम्मत नहीं हुई। ग्रामीण कहते हैं, अब पुल ढह चुका है तो नहर विभाग से पानी बंद करा निर्माण शुरू करना चाहिए। पर विभाग ने पुल के दोनों छोर पर क्षतिग्रस्त सड़क और पुल के बीच आवाजाही रोक रखी है। रपट को विराम देते हुए दो लाइनें फिर समीचीन लग रही हैं।

यूँ ख़ुद-फरेबियों में सफ़र हो रहा है तय,बैठे हैं पुल पे और नज़र है बहाव पर...

नमामि गंगे से राजघाट को मिलेगा पक्का घाट!

अध्यक्ष जिला पंचायत प्रेमावती पीके वर्मा एवं विधायक डॉ.आशीष कुमार सिंह 'आशू'

हरदोई। राजघाट पर पक्के घाट के निर्माण और राजकीय मेला घोषित कराने के लिए क्षेत्रीय विधायक आशीष सिंह आशू पहले कार्यकाल से ही जुटे हुए थे। उन्होंने विधानसभा की याचिका समिति में याचिका भी दाखिल की थी। आशू का कहना था, जिला पंचायत परिषद के फंड से राजघाट का निर्माण कराया जाए। इस सम्बन्ध में 23 जुलाई को हुई याचिका समिति की बैठक में जिला परिषद अध्यक्ष प्रेमावती पीके वर्मा ने जवाब दिया था, परिषद का पूरे कार्यकाल का बजट खर्च कर के भी राजघाट पर पक्का घाट निर्माण सम्भव नहीं है, क्योंकि ये बहुत खर्चीली परियोजना है। लिहाजा इस परियोजना को नमामि गंगे या संस्कृति विभाग से कराया जाना ही उपयुक्त होगा। विधायक डॉ.आशीष कुमार सिंह 'आशू' की सहमति के बाद राजघाट पर पक्के घाट निर्माण की फाइल नमामि गंगे विभाग में पहुंच चुकी है। इसकी पुष्टि जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी प्रदीप गुप्ता भी करते हैं।

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