ग्वालियर विशेष प्रतिनिधि। बारह साल तक कांग्रेस से दूर रहने के बाद पूर्व मंत्री बालेन्दु शुक्ल रविवार को कांग्रेस कार्यालय की सीढ़ी चढ़े। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए आने वाले उप-चुनाव में एकजुटता दिखाने की अपील की। इसमें उनके भाव को पुराने कांग्रेसियों ने किस अंदाज में लिया यह कहना मुश्किल है। क्योंकि अभी इन नेताओं को नहीं पता कि उनकी वापिसी किन शर्तों पर हुई है। इसलिए इन नेताओं का कितना समर्थन लेकर श्री शुक्ल सबके साथ सामंजस्य बैठा पाएंगे यह आसान नहीं है।
क्योंकि उनके आगमन से ग्वालियर पूर्व और ग्वालियर के कई दावेदारों के पेट में दर्द हो उठा है। इतना ही नहीं उनके ऊपर एक ठप्पा यह भी है कि वह सिर्फ एक वर्ग विशेष की नेतागिरी करते आए हैं, इसलिए कांग्रेस के सभी वर्ग उन्हें स्वीकार करेंगे या नहीं। श्री शुक्ल की राजनीति का अवसान वर्ष 2001 के आसपास हो चुका है। वर्ष 2003 में ग्वालियर विधानसभा से भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर से करारी हार और उसके बाद हाथी की सवारी करने पर वर्ष 2008 में ग्वालियर दक्षिण में नारायण सिंह कुशवाह के हाथों पराजय के बाद उनकी हि मत किसी चुनाव लडऩे की नहीं हो सकी। इस बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी उनकी कमजोर नस पकडक़र उन्हें अलग-थलग कर दिया। जिससे झांसी रोड की कोठी पर लगने वाला मेला समाप्त हो गया। अकेले दम कितनी राजनीति करते सो भाजपा में अकेले जा पहुंचे। यहां भाजपा ने कैबिनेट स्तर का पद देकर कार्यक्रमों में मंच भी प्रदान किए, किंतु शुक्ल को यह सब नाकाफी लगा, सो अब किसी बड़ी लालसा में कांग्रेस में आ गए।
कांग्रेस की यह मजबूरी है कि उसे ब्राह्मण वोट बैंक की खातिर एक चेहरे की तलाश थी, यह चेहरा उन्हें विधानसभा उपचुनाव में भुनाना है। किंतु जब इस चेहरे को ही किसी विधानसभा से टिकट देने की बारी आ गई तो उन्हीं के वर्ग से जुड़े अन्य ब्राह्मण दावेदारों की भृकुटी तन जाएगी, इस तरह का दर्द कई दावेदार नेताओं के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा है। इन दावेदारों ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि हमने इतने वर्ष संघर्ष किया, तब टिकट के नजदीक पहुंचे हैं। ऐसे में दलबदलू को इतनी जल्दी टिकट मिला तो वे किसी दीन के नहीं रहेंगे। फिर विरोध करने के सिवा कोई चारा भी नहीं होगा। इसलिए शुक्ल की पहली प्राथमिकता यह होगी कि वह अपने पुराने साथियों की खोज खबर लेकर एक बार फिर सब को एकजुट करें, तब टिकट के दावेदार बनें।
सोशल मीडिया पर कहा जा रहा फटा लिफाफा, मरा सांप
वहीं बिना किसी का नाम लिए सोशल मीडिया पर राजनीतिक एवं सामाजिक लोगों की तरह-तरह की टिप्पणियां सामने आ रही हैं। पूर्व मंत्री रमाशंकर सिंह लिखते हैं कि फटे लिफाफे, निचुड़े नींबू, चले कारतूस थके बूढ़े... क्या सोचकर इकठ्ठा कर रही है। सैनिक ही युद्ध लड़ते हैं, जीतते हैं, पर सैनिक इन्हें दिखते नहीं। जमीनी कार्यकर्ताओं को नेता बनाना इन्होंने सीखा ही नहीं। कांग्रेस के प्रदेश सचिव सुरेन्द्र यादव लिखते हैं- मरे सांप गले में मत डालो, न यह डराने के रहे न काटने के। इसी तरह एक नाट्य कलाकार अनिल शर्मा और शिक्षाविद प्रभात आर्य ने भी तल्ख टिप्पणियां की हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा है सिंधिया, बालेंदु और गुड्डुओं को जवाब देने की तैयारी में अपने कुछ और समर्थकों विधायक, पूर्व सांसद- विधायक भाजपा में लाने जा रहे हैं।