विश्व पर्यावरण संरक्षण के संकल्प बोध का अनूठा भारतीय पर्व "हरियाली अमावस्या"
राज किशोर वाजपेयी "अभय"
सुविख्यात विश्व की महान गौरवशाली धरोहर सनातनी-संस्कृति का महान पर्व हरियाली-अमावस्या पर्यावरण-संरक्षण को समर्पित है। यह श्रावण-मास की अमावस्या को संपूर्ण उत्तर भारत में मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में वृक्षों का सर्वयुगीन महत्व है। भारतीय चार आश्रम व्यवस्था में गृहस्थ-आश्रम के अतिरिक्त शेष तीनों आश्रम (ब्रह्मचर्य,वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम) की वनों के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये आश्रम वनों से ही संबंधित है, जहाँ क्रमशः गुरु-कुल में विद्या-अध्ययन, समाज के पर्यावरण (दैहिक, दैविक, भौतिक) हेतु वन-संरक्षण,और सर्व-सामाजिक मुक्ति का सांस्कृतिक यज्ञ-विधान है।
वन और जंगल का भेद : भारतीय संस्कृति वन-आधारित है,वन वह है जहाँ मनुष्य प्रकृति से सहचर्य रख प्राणी मात्र से ममत्व और समत्व के आचरण की साधना करता है और धरा पर ही स्वर्ग रचता है। ऋषि मुनि गण इस सनातनी चेतना के पावन संवाहक है। फलस्वरूप आश्रमों में सिंह और मृग साथ साथ दिखते हैं।यहां मानवीय चेतना उदात्त-भावों की सर्जना करती है।दूसरी ओर जंगल में वलशाली ही जीतता है और जीवित रहने का अधिकारी होता है। इसीलिए वहां दया, करूणा, साधना जैसे शब्दों का कोई अर्थ नहीं है।
जग-प्रसिद्ध है कि वनवासी रामही भारतीय जन-मानस में संस्कृति रक्षक के रूप में मान्य है, तो बृन्दावन में रास रचाते कान्हा भी वन संस्कृति के रस से लोक- जीवन को रस-सिक्त करते रहे हैं।
हरियाली-अमावस्या का मोहक दर्शन : सनातन-धर्म में देव-शयनी एकादशी से देव-उँठनी एकादशी तक चार माह सृष्टि का प्रभार बैद्यनाथ, पशुपति नाथ शिवजी पर बताया गया है,साथ ही भारतीय ग्रन्थों में पीपल, बरगद, आँवला जैसे बृक्षों को ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक बता उनकी प्राण-शक्ति दायिनी क्षमता को लोक-जीवन में इस पर्व से जोड़ दिया गया है।
इसी पर्व पर फलदार वृक्षों के साथ-साथ ब्राह्मी, अर्जुन, नीम, आंवला, जैसे वृक्षों की पूजा करने और उन्हें लगाने की परंपरा है। प्रकृति समन्वय के प्रतीक शिव-परिवार की पूजा करने के साथ गुड़ और गेहूँ की धानी का प्रसाद वितरित किया जाता है। अन्तरिक्ष, आकाश, जल, पृथ्वी, वनस्पति हेतु शांति मंत्र है। सनातन-संस्कृति उपयोग की पक्षधर हैं, उपभोग की नहीं। भारतीय परंपरा व शास्त्रों के वर्णन स्पष्ट बताते हैं कि वृक्षों के नीचे ही महावीर स्वामी, गौतम -बुद्ध प्रज्ञा सिद्ध हो जाते हैं,
साथ ही जानकारी देते हैं कि पिता के आश्रम से पति के घर जाते हुये विदा लेती शकुंतला के कारण लता-वृक्ष भी अश्रुमय हो जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण का पर्व हरियाली अमावस्या केवल बृक्षारोपण का पर्व न होकर यह परिवेश और पर्यावरण संरक्षण का पर्व है जो सभी तरह के प्रदूषणों से बचाने में समर्थ है, शर्त यही है कि हम उसके पावन संदेश को लोक-आन्दोलन कै रूप में अनवरत बनाये रखें।
वृक्ष तो नीलकंठ भोलेनाथ की तरह प्रदूषण को स्वयं ग्रहण कर सृष्टि की रक्षा करते हैं। भारतीय सनातन-संस्कृति के संदेश में अंधकार से प्रकाश की ओर चलने को ही विद्यावान और पुरूषार्थी माना गया है, इसीलिए जब गहन अन्धकार जिसमें चंद्र भी लुप्त हो जाता है, उसी अमावस्या तिथि में प्रेरक पर्वों को मोहक झाँकी है, जैसे महा शिव रात्रि, वर-अमावस्या, हरियाली अमावस्या, कार्तिक -अमावस्या (दीपावली)।
यह सभी अमावस्या पर्व लोक-कल्याण मूलक भारतीय विचार कि पूरा विश्व एक कुटुंब ही है का सार्थक उद्धोष करते हैं। हरियाली-अमावस्या पर्व को पृथ्वी बचाओ, मनुष्यता लाओ आंदोलन के रूप में विश्व-पटल पर वैसी ही स्वीकृति दिलाने की महती आवश्यकता है जैसी विश्व-योग दिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ से स्वीकृत कराया गया था। भारतीय नेतृत्व ऐसा करने में सक्षम भी है।