प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताकत है ग्वालियर के ‘अनादिश्री’

लोकेन्द्र सिंह

Update: 2023-04-22 10:44 GMT

वेबडेस्क।  यदि आपको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभाव, उनकी लोकप्रियता, उनके प्रति जन-विश्वास और निश्छल श्रद्धा की अनुभूति करनी है, तब आपको ग्वालियर के ‘अनादिश्री’ से मिलना चाहिए। अनादि से मिलकर आप अभिभूत हो जाएंगे। सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी चिंता स्तुत्य एवं अनुकरणीय है। अनादि स्वयं सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं लेकिन देश-समाज के प्रति उतने ही या कहें उससे अधिक चिंतित और जागरूक रहते हैं, जितना की कोई शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति रहता है। सामाजिक परिवर्तन के लिए जो भी आह्वान प्रधानमंत्री मोदी ने किया है, उसे अनादि ने मूक होकर भी बुलंद आवाज दी है। कोविड-19 के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी ने घर पर रहने और कोरोना रोधी दिशा-निर्देशों का पालन करने का आग्रह किया तब अनादि ने उन सभी को व्यक्तिगत रूप से संदेश भेजे, जो उनके व्हाट्सएप की सूची में थे। जल संरक्षण और स्वच्छता के प्रति भी प्रधानमंत्री मोदी के आग्रह को अनादि आगे बढ़ाते रहते हैं। स्वच्छता का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इस पर उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर भी महत्वपूर्ण संदेश साझा किया है।

अनादि जिस सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) नामक बीमारी से पीड़ित हैं, उसके कारण वह न तो बोल पाते हैं और न ही चल पाते हैं। इशारों में अपनी बात कहते हैं। अनादि जो संकेत करते हैं, उन्हें उनके माता-पिता ही बखूबी समझ पाते हैं। जब उन्हें कुछ कहना होता है, तब अपने माता-पिता के माध्यम से ही संवाद करते हैं। उन्हें पता है कि मैं पत्रकार हूँ और समाचारपत्रों के लिए लिखता हूँ। इसलिए जब भी हम मिलते हैं, तब अनादि अपने यात्रा वृत्तांत एवं अन्य गतिविधियों की जानकारी देते हैं। अभी हाल ही में जब वे सोमनाथ मंदिर की यात्रा करके लौटे तब उन्होंने बताया कि वहाँ व्यवस्थाएं बहुत अच्छी हैं। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर बहुत अच्छा बन गया है। पुलिसवाले भी सहयोगी हैं। दिव्यांगों को दर्शन कराने के लिए व्हीलचेयर भी थी। उनकी इच्छा वृंदावन जाने की है लेकिन वहाँ की भीड़ से उन्हें डर लगता है। इस संबंध में उन्होंने अपने फेसबुक पर लिखा भी है कि “मंदिरों में वीआईपी कल्चर खत्म करना चाहिए और भीड़ के प्रबंधन की अच्छी व्यवस्था की जानी चाहिए”। ग्वालियर में रामकृष्ण मिशन के अंतर्गत दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए संचालित संस्था ‘रोशनी’ में जाकर अनादि ने लिखना-पढ़ना और अपने मन के भावों को व्यक्त करना सीखा है। उनके हाथ सीधे नहीं हैं। अंगुलियां भी हमारी तरह तेजी से काम नहीं करती हैं। इसके बावजूद अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अनादि मोबाइल फोन और लैपटॉप पर धीमे-धीमे टाइप करके अपने विचार लिख लेते हैं। अनादि, अपने विचार व्यक्त करने और समाचार प्राप्त करने के लिए डिजिटल मीडिया का बखूबी उपयोग करते हैं।

लोकेन्द्र सिंह 

अनादिश्री की खूब इच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किसी प्रकार एक बार भेंट हो जाए। वह प्रधानमंत्री को अपने विद्यालय ‘रोशनी’ भी ले जाना चाहते हैं और अपने मित्रों से मिलना चाहते हैं। अनादि खुद होकर बताना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश की दिशा बदल दी है। उनके नेतृत्व में अच्छे काम हो रहे हैं। विश्व पटल पर भारत का नाम चमक रहा है। कई बार अनादि मुझे व्हाट्सएप पर संदेश भेजकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का मोबाइल नंबर माँगते हैं। अब उस भोले मन को कैसे कहूँ कि अपन इतने बड़े पत्रकार या लेखक नहीं हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का संपर्क सूत्र अपने पास होगा।

इस लेख के माध्यम से मैं प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह करता हूँ कि अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में अनादिश्री के प्रयासों का उल्लेख करें और संभव हो तो एक बार अनादि को मिलने के लिए बुलाएं। आपके व्यक्तित्व ने एक ऐसे बच्चे को ऊर्जा, आत्मविश्वास और उत्साह से भरा दिया है, जो संघर्ष की भूमि पर जीवन जी रहा है। वह आपसे प्रेरणा लेकर सामाजिक बदलाव में अपनी ओर से बढ़-चढ़कर ‘गिलहरी योगदान’ दे रहा है। जैसे प्रभु श्रीराम ने गिलहरी की पीठ पर दुलार से हाथ फेरकर उसे यशस्वी बना दिया, आप भी अनादिश्री से मिलकर उनके आनंद और उत्साह को बढ़ा दीजिए।

अभी हाल ही में जब अनादि और उनके पिताजी श्री राजेश पुरोहित जी के निमंत्रण पर चंदेरी जाना हुआ, तब वहाँ स्वच्छता के प्रति अनादि का आग्रह देखकर दंग रह गया। अनादि का परिवार (पुरोहित परिवार) मूलत: चंदेरी का है परंतु वर्तमान में उनके पिताजी राजेश पुरोहित और उनके चाचाजी एवं ताऊजी का संयुक्त परिवार ग्वालियर में निवासरत है। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों से चंदेरी में श्रीमद् भागवत या फिर श्री रामायणजी के अखंड पाठ का आयोजन प्रारंभ किया है। इसके पीछे उनकी दृष्टि ‘एक पंथ-दो काज’ की है। एक, भगवतभक्ति हो जाती है और दूसरा समूचा कुटुम्ब, रिश्तेदार एवं मित्र वर्ष में एक बार एक स्थान पर आकर मिल-जुल लेते हैं। उनके कुटुम्ब के अन्य सदस्य चंदेरी, गुना, शिवपुरी और इंदौर सहित अन्य स्थानों पर रहते हैं। चंदेरी में किले की तलहटी में पहाड़ पर फुआरी के हनुमानजी का प्राचीन मंदिर है। यहाँ पुरोहित जी की ओर से श्री रामायणजी के अखण्ड पाठ का आयोजन था। यहीं समीप ही किले की तलहटी में सकलकुड़ी नाम से आश्रम भी है, जहाँ हम सब ठहरे हुए थे। दोनों ही स्थानों पर साफ-सफाई रहे, इसलिए अनादि ने पिताजी से कहकर कूड़ेदान रखवाये। मैं यह देखकर बहुत प्रेरित हुआ कि अनादि को कहीं भी कचरा दिखायी देता, तो संकेत करके अपने पिता को बुलाते और उस कचरे को उठवाकर कूड़ेदान में डलवाते। अमरवती से आए अपने एक रिश्तेदार को भी उन्होंने कहा कि वे उसे अपना व्हाट्सएप नंबर दें, ताकि स्वच्छता के महत्व को बतानेवाला जो संदेश उन्होंने तैयार किया है, उसे भेज सकेंगे। मुझे बहुत अच्छा लगा जब अनादि चहकते हुए मेरा परिचय अपने रिश्तेदारों से कराते। उनका मन इतना निर्दोष है कि जैसे गंगोत्री में गंगाजी की जलधार। घर के किसी जिम्मेदार व्यक्ति की तरह आयोजन में आनेवाले एक-एक व्यक्ति की चिंता करते हुए अनादि को देखकर, मन द्रवित था। अनादि का प्रबंधन कौशल गजब का था- मेहमानों ने पानी पिया कि नहीं, उन्हें चाय मिली या नहीं, वे प्रसाद लेकर ही जाएं, इस पर उनकी नजर रहती थी।

अनादि का स्वभाव धार्मिक है। जब हवन इत्यादि हो गया, तब उन्होंने पंडितजी को अपने हाथों से दान-दक्षिणा दी। रात को जब मंदिर परिसर में 200 से अधिक दिए जलाए जा रहे थे, तब उन्होंने संकेत में मुझे कहा कि रोशनी से जगमगाते मंदिर का फोटो निकालिएगा। दरअसल, शाम को मैं दुर्ग दर्शन करने चला गया था। चंदेरी का किला दर्शनीय है और शौर्य की गाथाओं को समेटे हुए है। जब मैं लौटकर आया और अनादि ने पूछा कहा गए थे, तब मैंने उन्हें दुर्ग दर्शन के फोटो दिखाए। उन्हें वे फोटो पसंद आए इसलिए उन्होंने मंदिर की फोटो लेने का आग्रह किया। जब तक मैंने फोटो खींचकर उन्हें दिखा नहीं दिया, तब तक उनकी नजर मुझ पर ही बनी हुई थी। अपनी निगाहों से वे बार-बार आग्रह कर रहे थे कि जलते हुए दियों का फोटो खींचिए। बहरहाल, चंदेरी से विदा लेते समय मेरे पास केवल श्रीरामकथा का अमृत और प्रसाद ही नहीं था अपितु अनादिश्री से प्राप्त हुई कई सीख थीं। इनमें से सामाजिक संकल्प के प्रति प्रतिबद्धता, प्रबंधन के सूत्र, अपनत्व का भाव, आत्मविश्वास और जिंदादिली जैसी सीख/गुण तो मैंने गाँठ बांध लिए हैं।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।)

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