नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले करीब डेढ़ माह से चल रहा प्रदर्शन सत्याग्रह है या षड्यंत्र? यह सवाल इसलिए उपजा है क्योंकि शाहीन बाग से रह-रहकर देश विरोधी नारे सुनाई दे रहे हैं। देश के मुस्लिम समाज की बात करें तो यह ध्यान रखना चाहिए कि जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को समाप्त किया गया, तब कुछेक राजनीतिक दलों के उकसावे वाली भाषा के बावजूद मुस्लिम समाज ने इसे सहर्ष स्वीकार किया। इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या में राममंदिर बनाए जाने के निर्णय का भारत के ज्यादातर मुसलमानों ने समर्थन किया।
शाहीन बाग के आंदोलन को मुस्लिम समाज का प्रदर्शन इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि मुस्लिम समाज यह भली-भांति जानता है कि नागरिकता संशोधन कानून किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है। इसे पूरी तरह से राजनीतिक आंदोलन कहा जाए तो सर्वथा उचित ही होगा। हम जानते हैं कि शाहीन बाग के धरने को जहां कांग्रेस का व्यापक समर्थन मिल रहा है, वहीं आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल मुसलमानों के वोट प्राप्त करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे हैं। सवाल यह है कि हमारे देश की राजनीति किस ओर जा रही है? क्या इस प्रकार की राजनीति देश के भविष्य को अंधेरे की ओर ले जाने का प्रयास नहीं है?
यह सही है कि लोकतंत्र में रचनात्मक विरोध होना ही चाहिए लेकिन विरोध के नाम पर देश का विरोध कतई नहीं होना चाहिए। शाहीन बाग में जो प्रदर्शन हो रहा है, उसमें शामिल होने वाले यह नहीं जानते कि वास्तव में नागरिकता संशोधन कानून में क्या है? विपक्षी राजनीतिक दलों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें सत्य से अवगत कराया जाए लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। हाल ही में यहां जेएनयू के छात्र शरजील इमाम के भाषण का वीडियो सामने आया, जिसमें उसने पूर्वोत्तर को भारत से अलग करने की बात कही। इससे यह काफी हद तक स्पष्ट हो गया कि शाहीन बाग के प्रदर्शन के पीछे विभाजनकारी मानसिकता है। शरजील इमाम ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि हमें भारत को इस्लामिक देश बनाना है। इससे यह लगता है कि सीएए के विरोध के नाम पर हिंसा एक सोची-समझी साजिश है। सीएए विरोध के नाम पर भ्रम फैलाकर देश के मुस्लिम वर्ग को सरकार के खिलाफ खड़ा करने का षड्यंत्र है। भारत विरोधी ताकतें सीएए, एनपीआर, एनआरसी जैसे मुद्दों को हथियार बनाकर पहले समाज और फिर देश तोड़ने का मंसूबा पाले हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सीएए को लेकर देशभर में हुई हिंसा के लिए पीएफआई की ओर से 120 करोड़ रुपए की फंडिंग की बात सामने आई। इसमें से 77 लाख रुपए कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल को दिए गए। कपिल सिब्बल का कहना है कि उन्हें यह राशि फीस के रूप में मिली है। देश की सबसे पुरानी पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर इन षड्यंत्रकारियों के साथ इसलिए खड़े हैं क्योंकि किसी भी कीमत पर उन्हें वोट और सत्ता चाहिए। सत्ता प्राप्त करने के लिए कांग्रेस को दुश्मन देश पाकिस्तान की भी मदद लेना पड़े तो पीछे नहीं हटेगी। मणिशंकर अय्यर इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जिन्होंने पाकिस्तान में जाकर नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए मदद मांगी थी।
धर्मनिरपेक्षता की डींगे हांकने वालों से सवाल है कि पाकिस्तान में आए दिन हिन्दू लड़कियों को अगवा किए जाने की घटनाओं पर उनका गला जाम क्यों है? कश्मीरी पंडितों के सामूहिक नरसंहार व घाटी से पलायन पर धर्मनिरपेक्ष लोगों की आत्मा क्यों नहीं जागी थी? पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब देशभर में सिखों का कत्लेआम हुआ, तब धर्मनिरपेक्षता वादियों की रूह क्यों नहीं कांपी? पूर्वोत्तर भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों ने जनसांख्यिकीय का स्वरूप बदल दिया, तब धर्मनिरपेक्ष लोग खामोश क्यों रहे? पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर आए सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देने के लिए कानून पास किया गया तो कथित धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर लोगों को भारतीय संविधान खतरे में क्यों नजर आ रहा है? इनके कुचक्र को समझने की जरूरत है।