एनमेटा गांव में झोपड़ी वाले स्कूल की सुबह अब होती है बेहद खास
कभी यह गांव नक्सली कमांडर डोसेल के आतंक का गढ़ था, पहली बार अपने ही गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ रहे एनमेटा के बच्चे
नारायणपुर। बदलाव की शुरुआत किसी बड़ी इमारत से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे प्रयासों से होती है। हालात चाहे कितने भी कठिन हों, संकल्प नाबाद हो तो झोपड़ी भी शिक्षा का मंदिर बन सकती है। नक्सल कमांडर के गांव में झोपड़ी का स्कूल अब आजादी के 77 साल बाद बदलाव की मिसाल बनकर खड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि तत्काल स्कूल की इमारत उपलब्ध न होने के कारण गाँव के बीचो बीच एक झोपड़ी को ही स्कूल का रूप दे दिया गया। अब गाँव के बच्चे लाल सलाम के नारे भूलकर, ककहरा और गिनती सीख रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ का एनमेटा गांव, जो कभी नक्सली कमांडर डोसेल के आतंक के लिए जाना जाता था, परंतु अब उसके आतंक से मुक्त प्रशासन ने भी बिना देर किए झोपड़ी में ही स्कूल गाँव वालों की मदद से शुरू कर दिया है। नक्सल गतिविधियों के चलते, कोई भी स्थायी स्कूल खोलने का प्रयास विफल हो जाता था, लेकिन इस बार प्रशासन ने ठान लिया। उन्होंने नक्सली कमांडर डोसेल के गांव में झोपड़ी को ही स्कूल में बदलने का नायाब तरीका अपनाया। एनमेटा गांव में झोपड़ी वाले स्कूल की सुबह अब बेहद खास होती है। सुबह होते ही एनमेटा गांव के बच्चे अपनी किताबें और स्लेट लेकर झोपड़ी वाले स्कूल की ओर दौड़ पड़ते हैं।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा सरकार का प्रयास है कि छत्तीसगढ़ के हर कोने में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाएं पहुंचें। एनमेटा जैसे दुर्गम और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्कूल की स्थापना हमारे संकल्प का प्रमाण है कि हम शिक्षा के माध्यम से बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा लक्ष्य है कि नक्सल प्रभावित इलाकों के युवाओं को शिक्षा और रोजगार के अवसर देकर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाए। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए यह प्रयास मील का पत्थर साबित होगा।
कलेक्टर विपिन मांझी ने बताया कि एनमेटा क्षेत्र पहले नक्सल गतिविधियों का केंद्र था। पिछले 77 सालों से यह गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित था। नक्सली गतिविधियों की वजह से स्कूल, सड़क, और अन्य विकास कार्य रुक गए थे। लेकिन प्रशासन की पहल से अब स्थिति बदल रही है।
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