अयोध्या में प्रभू श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण का प्रथम चरण पूर्ण

मधुकर चतुर्वेदी

Update: 2023-07-12 02:45 GMT

- मकर संक्रांति के अवसर पर गर्भग्रह में होगी प्रभू के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा
- उत्तर भारत की नागर शैली में स्थापत्य का चरमोत्कर्ष है श्रीराम मंदिर
- तीन दिशाओं में मुख्य और 14 द्वारों से सुसज्जित
- गर्भ, ग्रह, कीर्तन, रंग, नृत्य मंडप और दीवारों पर देवताओं की 7 हजार मूर्तियां

अयोध्या। अयोध्या जी, जिसे अवध और साकेत भी कहते हैं, हमारे ध्यान में है कि यह हिन्दु संस्कृति का प्राचीन नगर है। हिन्दू संस्कृति पर कब्जा करने की दृष्टि से अयोध्या को बार-बार उजाड़ा गया लेकिन, हिन्दुओं ने भी बार-बार बलिदान देकर अयोध्या के वैभव को कम नहीं होने दिया। इतिहास एक बार पुनः अपने को दोहरा रहा है। एक बार फिर अयोध्या ‘अलकापुरी’ बनने जा रही है। त्रेता के प्रभू राम का आगमन अयोध्या में होने जा रहा है। संतों की पुकार पर एक बार पुनः प्रभू श्रीराम अपने निज मंदिर में विराजमान होेने जा रहे हैं। अयोध्या के प्राचीन रामकोट मौहल्ले में श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के निर्देशन में प्रभू श्रीराम का मंदिर बनकर तैयार हो चला और अगले वर्ष 2024 की फरवरी के महीने में मकर के सूर्य में ‘श्रीरामलला’ अपने गर्भग्रह में विराजमान होकर हम हिन्दुओं के मनोरथों को पूरा हुए हमकों अपने पूर्ण श्रीविग्रह में दर्शन देंगे। मंदिर निर्माण तय समय में पूरा हो, इसके लिए 1600 सौ मजदूर, कारीगर 24 घंटे काम कर रहे हैं।

प्रथम तल बनकर तैयार, दो तलों का निर्माण जारी

रविवार को श्रीराम जन्मूभूमि तीर्थ क्षेत्र के अधिकारियों ने निर्माणाधीन प्रभूश्रीराम के मंदिर का भ्रमण कराकर जानकारी गई कि मंदिर के बनाए जा रहे तीन तलों में से प्रथम तल का निर्माण पूरा हो गया है। प्रथम तल में ही गर्भग्रह है। गर्भग्रह में ही श्रीरामलला विराजमान होंगे।

राजस्थान के सफेद मार्बल से बना है गर्भग्रह


मंदिर में जहां श्रीरामलला विराजमान होंगे। उस गर्भग्रह को राजस्थान के सफेद मार्बल से तैयार किया है। गर्भग्रह में जमीन से 180 फुट नीचें से कांसे के एक मोट पाइप का लाया गया है। इस कांसे के पाइप के नीचें ही भूमि पूजन का कलश स्थापित है। गर्भ ग्रह में मार्बल पर पच्चीकार की कारीगरी से कमल के फूल और देवी-देवताओं की मूर्तियां बनायी गयी हैं। छत पर भी अष्टदश कमल की रेखाएं बनाकर महीन कारीगरी की गयी है। यहां पर एक बड़ा मंडप बनाकर श्रीरामलला को विराजमान कराया जाएगा।

नागर शैली में बनाया जा रहा है मंदिर


मंदिर निर्माण से जुडे़ टाटा कंसलटेंसी के प्रोजेक्ट मैनेजर राधेय जोशी ने बताया कि मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया जा रहा है। इसमें गर्भग्रह मंडप, ग्रह मंडप, कीर्तन मंडप, रंग मंडप और नृत्य मंडप का निर्माण किया जा रहा है। इन सभी मंडपों का निर्माण प्रथम तल पर पूरा किया जा चुका है। मंदिर का निर्माण एक विशाल चबूतरे (वेदी) पर किया जा रहा है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 24 सीढ़ियां है। अन्य तलों पर जाने के लिए 42 सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। मंदिर में कोई चहारदीवारी नहीं है। मंदिर के ऊपर घुमावदार शिखर बनाया जाएगा। शिखर नीचें ही गर्भग्रह स्थापित किया जाएगा। मंदिर का शिखर 161 फीट ऊंचाई लिए होगा। मंदिर की चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 350 फीट है।

भारतीय मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला शैली से सुसज्जित है मंदिर


प्रभू श्रीराम के मंदिर भारतीय मंदिर स्थापत्य की शैली की पराकाष्ठा है। मंदिर के स्थापत्य एवं मूर्तिकला में मध्य कालीन भारतीय मंदिर निर्माण के वे सभी लक्षण विद्यमान है, जिनके लिए मध्य भारत की स्थापत्य कला की श्रेष्ठता जानी जाती है। मंदिर निर्माण में राजस्थान के बलूआ लाल पत्थर के अलावा कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर, गुकनहल्ली और आदिगल्लु गांवों की खदानों, बंसी पहाड़पुर से आए पत्थरों का प्रयोग किया जा रहा है। यह सभी पत्थर भूकंप रोधी हैं। मंदिर निर्माण में 200 बीमों का प्रयोग किया गया है। मंदिर के तीनों तलों पर राजस्थान से आए कारीगरों ने पूरे मंदिर परिसर में ‘दशावतार, नवग्रह और शक्तिपीठों’ की सुंदर देवी-देवताओं की मूर्तियों को अपने हस्तशिल्प से उकेरा है। मंदिर में लगभग 7 हजार मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा। मंदिर में प्रवेश करते ही विशाल गुलाबी स्तंभ गोल और नीचे से ऊपर तक चढ़ाव-उतारदार है। मेखलाओं पर उभरी हई नृत्य करती हुई देवताओं की मूर्तियां अपने अलंकरणों के साथ समानता लिए हुई हैं। छोटे शिखर, खंभों पर पुष्पों की आकृति हैं। मंदिर की दीवारों पर चार कलियों के पुष्प, छतों पर आठ और सोलह कमलपुष्पों की पच्चीकारी, बाहरी स्तंभों पर छोटे मंदिरों के शिखरों को स्थापित किया गया है। शिखर पर फल खाते वानर, तोता, मयूर उकेरे गए हैं। मंदिर के प्रथम तल पर 160 खंबे व शेष दोनों तलों पर 400 खंबे हैं। मंदिर के दरवाजे लकड़ी से तैयार होंगे। मंदिर में मूर्तिकला का निर्माण आइकोनोग्राफी के विशेषज्ञ सोमपुरा के निर्देशन में चल रहा है।

प्रवेश के लिए परिसर में तीन द्वार, मंदिर में 14 द्वार


प्रभू श्रीराम के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा होने के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में तीन द्वारों से प्रवेश करेंगे। इसके लिए पूर्व में सिंह द्वार, उत्तर और दक्षिण में द्वार बनाए गए हैं। वहीं मंदिर में प्रवेश और निकास के लिए 14 द्वार बनाए गए हैं। सिंह द्वार से प्रवेश करने के बाद श्रद्धालु नृत्य मंडप, रंग मंडप, कीर्तन मंडप, ग्रह मंडप से होते हुए गर्भ ग्रह में दर्शन करेंगे। मंदिर में प्रवेश के बाद गर्भग्रह से 25 फीट की दूरी से श्रद्धालु श्रीरामलला का दर्शन कर सकेंगे।

एक हजार वर्ष तक अक्षुण्ण रहेगा मंदिर

श्रीरामजन्मभूमि परिसर में निर्माणाधीन राममंदिर न केवल भव्यता बल्कि, तकनीक के मामले में शिल्पकला का अनोखा उदाहरण होगा। राममंदिर निर्माण से जुड़े इंजीनियरों ने बताया कि राममंदिर 8.0 रिक्टर की तीव्रता वाले भूकंप और प्राकृतिक आपदाओं से भी सुरक्षित रहेगा। इसके चलते राममंदिर कम से कम एक हजार साल तक अक्षुण्ण रहेगा। मंदिर निर्माण में कहीं भी लोहे का प्रयोग नहीं किया गया है। वहीं मंदिर में कहीं पर भी जलभराव नहीं होगा। मंदिर में वर्षा की जल निकासी के लिए चारों दिशाओं में गौ मुखों का निर्माण किया है।

शालिग्राम शिला से हो रहा श्रीराम विग्रह का निर्माण, द्वार की रक्षा करेंगे जय-विजय

मंदिर के प्रथम तल में स्थित गर्भ ग्रह में नेपाल की गंड़की नदी से आए काले शालिग्राम शिला से प्रभू के विग्रह का निर्माण होगा। गर्भग्रह में बालरूप में रामलला के साथ लक्ष्मण, जानकी, हनुमान जी स्थापित होंगे। इसके पीछे शालिग्राम शिला से निर्मित प्रभू श्रीराम की 8 फीट की एक अतिरिक्त मूर्ति स्थापित होगी। वहीं दूसरे तल पर श्रीराम परिवार और लव-कुश के विग्रह भी स्थापित होंगे। गर्भग्रह के बाहर एक भगवान के पार्षद जय और दूसरी ओर विजय की मूर्ति के अलावा भगवान गणेश जी के विग्रह की भी स्थापना की जाएगी।


रामनवमी पर सूर्य अपने प्रकाश से करेंगे श्रीरामलला का अभिषेक, स्थापित होगी मणि

प्रभू श्रीराम के मंदिर निर्माण में स्थापत्य के अलावा कुछ ऐसे प्राचीन प्रयोग भी किए जा रहे हैं, जो आने वाली सदियों को भारतीय मंदिर निर्माण कला के वैशिष्टय को जीवंत बना रखें। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि मंदिर में अंतरिक्ष वैज्ञानिक व खगोलशास्त्री इस तकनीक पर काम कर रहे हैं कि चैत्र रामनवमी पर जब सूर्य उदय हो तो उसकी पहली किरण श्रीराललला पर पड़े और उस सूर्य किरण से प्रभू का अभिषेक हो। प्रोजेक्ट मैनेजर राधेय जोशी ने बताया कि इसके लिए गर्भग्रह में एक पिलर स्थापित होगा, उस पिलर स्थापित मणि पर प्रकाश द्वारा सूर्य किरणों से गर्भग्रह प्रकाशित होगा।

कुबेर टीला पर जटायु की मूर्ति, संग्रहालय और अनुसंधान कक्ष

श्रीरामजन्मू तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के द्वारा जन्मभूमि के पास स्थित कुबेर नवरत्न टीला पर विराजमान भगवान शिव के मंदिर का जीर्णाद्धार और कुबेर टीला पर माता सीता की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले जटायु राज की कांस्य मूर्ति स्थापित की जाएगी। इसके अलावा राम मंदिर में संग्रहालय, अभिलेखकक्ष, अनुसंधान केंद्र, प्रशासनिक भवन, योगकेंद्र, सभागार, गौशाला का निर्माण भी किया जाएगा।

इन्होने कहा -

- मंदिर के प्रथम तक का निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया है। अगले वर्ष श्रद्धालु मंदिर में श्रीरामलला के दर्शन कर सकंेेगे। मंदिर निर्माण का कार्य तेज गति से चल रहा है। भगवान की मूर्ति निर्माण का कार्य भी तय समय में पूरा कर लिया जाएगा।

चंपत राय, महासचिव, श्रीराम जन्मूभूमि तीर्थ क्षेत्र।

- मंदिर परिसर में सप्त ऋषियों के रूप में वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, अगस्त्य, देवी अहिल्या, माता शबरी व निषाद राज की प्रतिमाएं स्थापित की जाएगी। चारों कोनों पर भगवान शिव, माता पार्वती, गणपति व सूर्य की मूर्तियां भी स्थापित होगी।

डाॅ. अनिल मिश्र, न्यासी, तीर्थक्षेत्र

- मंदिर में भगवान के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा अगले वर्ष 2024 में मकर संक्रांन्ति के अवसर पर की जाएगी। दिनांक अभी तय नहीं है। 14 से 25 फरवरी के मध्य में पूजन होगा। प्राण प्रतिष्ठा का पूजन व अनुष्ठान 11 दिन चलेगा।

गोपाल जी, केंद्रीय सहमंत्री, विहिप।

प्रथम तल का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। फर्श पर फिनशिंग व खंभों पर इिजाइनिंग का काम चल रहा है। कारीगर लगातार काम कर रहे हैं। हम तय समय में काम का पूरा कर लेंगे।

राघेय जोशी, प्रोजेक्ट मैनेजर, टाटा कन्सलटेंसी।

हमारा सौभाग्य है कि हमें प्रभू श्रीराम के मंदिर में काम करने का अवसर मिला। हमारा मानव जीवन सफल हो गया। मंदिर में काम करने से ना केवल हमारा बल्कि हमारा पूरा परिवार धन्य हो गया।

युवराज सिंह, कारीगर, राजस्थान।


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