रामजी की नगरी है न्यारी न्यारी

तूणीर - नवल गर्ग

Update: 2020-08-02 01:45 GMT

पांच अगस्त , बुधवार को भारत ही नहीं पूरे विश्व में रामजी के प्रेमी, अयोध्या में जन्मभूमि पर बनने वाले भव्य और दिव्य मंदिर के शिलान्यास समारोह की अत्यंत उत्साह व उल्लास के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं। कोरोना काल में सभी सावधानियों और उसके प्रोटोकॉल के कड़ाई से पालन के लिए कटिबद्ध रहते हुए अयोध्यावासियों का उत्साह भी चरमोत्कर्ष पर है । अयोध्या में साज सज्जा और अन्य तैयारियों को देखकर लग रहा है कि लाखों साल पहले रामजी के जन्म के समय जो ऐश्र्वर्य और वैभव इस तीर्थनगरी का था उसकी झलक सभी आधुनिक प्रतिमानों के साथ अवश्य देखने को मिलेगी।

मंगल मूल अमंगल हारी, सब शुभ विलसे हो तन धारी।

जन पद जन गण मन मुदकारी, पावन पुरुष हुए अवतारी।।

सबसे बड़ी बात यह है कि मंदिर निर्माण के होने वाले व्यय के लिए धनराशि जन-जन के उत्साहपूर्ण सहयोग से ही एकत्रित हो रही है। इसके लिए शासकीय कोष से कोई धन ग्रहण नहीं किया जा रहा है। और जनमानस का उल्लास और उमंग इतना अधिक है कि लगता है सभी जन सब कुछ समर्पित करने के लिए तत्पर हैं। यही महिमा है पावन राम नाम धारी मर्यादा पुरुषोत्तम , दशरथनन्दन , कौशल्यासुत भगवान् राम की। दशरथ जी के ज्येष्ठ पुत्र का नाम गुरु वशिष्ठ जी द्वारा *राम* ही क्यों रखा गया , इस रहस्य को महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण में बालकाण्ड के छठे सर्ग में उद्घाटित किया गया है।

दशत्रय दिवस पर गुरु ने, धरे शुभ नाम गुणकारी।

रमते सर्व जपी योगी, जिसमें ध्यान व्रतधारी।

उपासक सन्त साधक सब, मुनि ऋ षि साधु जन जो ही।

पदार्थ रम रहे जिसमें, कहा श्री राम है सो ही ।।

उसी का चांद जो चमका, कहा श्री रामचन्द्र है ।

सर्व गुण सहित नर उत्तम, जन आर्य का इन्द्र है ।।

समय पर दैव लीला से, उन्हीं में दिव्य गुण आये।

कर्म से लोक भाषा में, गये श्री राम वे गाये ।।

( श्री वाल्मीकीय रामायणसार से उद्धृत )

केन्द्र सरकार और राज्य सरकार भी इस मंदिर निर्माण के लिए हर तरह का सहयोग करते हुए पूरे अयोध्या क्षेत्र और इसकी प्राणसंचरी सरयू के इठलाते जल भंडार को और अधिक स्वच्छ और निर्मल बनाने , घाटों को विस्तारित करके अधिक क्षमतावान् बनाने में जुटे हैं । यह धार्मिक नगरी भारत के श्रेष्ठतम स्मार्ट शहरों में भी अव्वल रहे ये प्रयास भी हो रहे हैं। फिर अयोध्या की सुंदरता भी इसी अनुरूप निखरेगी इसके लिए हम सब तैयार हो रहे हैं। आपसी सद्भाव, सौहार्द्र और भाईचारे की मिसाल भी बनेगी हमारी पावन धाम -- अयोध्या नगरी। आईए, हम सब मंगलगीत गाएं -- पावन अयोध्या नगरी के भाग्य और अपने सौभाग्य को सराहें कि हम इस देवनगरी के वैभव , ऐश्वर्य और आध्यात्मिक चेतनाओं को पुनर्स्थापित होते हुए देखेंगे और पूरे देश में इस शुभारंभ का स्वागत दीपावली मना कर करेंगे।

इधर ऐसी भव्य तैयारी इन अभूतपूर्व ऐतिहासिक क्षणों को जीवंत करने की और उधर बाल बबुआ - पपुआ जी और उनके सखावृंद बाल नोचने में जुटे हैं अपने और दलीय छुटभईयों के। समर्थन और विरोध की असमंजस के बीच नाथ सनाथ जी ने हनुमान जी को हाजिर नाजिर मानकर ( सिर के ऊपर उनका चित्र बिठाकर ) राम मंदिर के लिए समर्थन करते हुए कहा कि यह केवल भारत में ही सम्भव है, श्रीमान बंटाढार उसी तरह बोले जैसे उनके शिष्य बाल बबुआ जी बोलते हैं । पता ही नहीं लगता कि आखिर कहना क्या चाहते हैं तो दूसरी ओर म प्र में एक छुटभईये सज्जन जी फरमाते हैं कि राम जी के मंदिर के लिए शिलान्यास कार्यक्रम में मोदी जी का महिमा मंडन , उपचुनावों की तैयारी के मद्देनजर किया जा रहा है। धन्य है ऐसे विचारक -- जो असमंजस में डूबे हुए बेतुके बयान देने में माहिर हों ये तो बालबुद्धि पपुआ जी के दल को ही मुबारक हों ।

इधर राजस्थान का प्रहसन तो लंबा ही खिंचता जा रहा है। 14 अगस्त को विधानसभा सत्र की तैयारी, बाड़ेबंदी में विधायकों को बांधकर जयपुर से जैसलमेर भेजकर नये बाड़े में ठूंस

कर भी मन की बैचेनी जस की तस है। गहलोती चाचा की ईद और राखी में कोई स्वाद नहीं बचा। रह रह कर अंगुलियों पर संख्या का गणित ही दौड़ता रहता है सोते जागते एक ही दर्द, तीखी टीस -- अरे सचिना, बड़ा दु:ख दीना रे तूने। मुझे इस बुढ़ापे में कहीं का नहीं छोड़ा।

और यों बबाल सुलझे न सवाल ।फिर भी नित फेंके जा रहे हैं नो बाल पर बाल । कुछ नये कुछ बासी ख्याल। मानो गोदाम से निकला हो एक्सपायरी डेट का माल ।ऐसे गहलोती चाचा का हो गया है बुरा हाल। रोज नये मुद्दे पकड़ा रहे हैं दूसरे खेमे के हाथ में मजबूत ढ़ाल। पायलट भैया अपने एकांतवास में हैं खुश, बिना बजाए गाल। जो उनको हिलाना चाहते थे वे खुद अपनी ही धुन पर कर रहे हैं कदमताल।

लोकतंत्र के खतरे में होने और हम ही उसके रक्षक हैं बाकी सब दुश्मन, यह दुहाई देकर सबको बनाने का जो लोग खुला खेल खेल रहे हैं वे ही परेशान होकर खम्बा नोचने में लग गये हैं कभी इहां तो कभी हुंआं। इधर बबुआ जी उड़ा रहे हैं ख्याली बफाल।

पर आ गया है अब हमारा रक्षक, हिंद गौरव रफाल। सो भले ही होते रहें उनके हाल बेहाल, हम सब तो मिलकर अपने घरों पर ही मनायें सारे त्यौहार- भर भर कर पकवानों के थाल।

(लेखक पूर्व जिला न्यायाधीश हैं।)

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