ग्वालियर। आज दोपहर से पहले तक भाजपा के बड़े नेता रहे बालेन्द्र शुक्ल अब फिर कांग्रेसी हो गए हैं। वह हाथी की सवारी भी कर चुके हैं और कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता रहे स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के बाल सखा भी रहे हैं। पर जब श्री दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने तो धीरे से निष्ठा का विचलन वह रोक नहीं पाए। भाजपा ने उन्हें एक निगम का अध्यक्ष भी बनाया था, अब अपनी कथित उपेक्षा से वह वापस कांग्रेस में हैं। जाहिर है कि बालेंद शुक्ल विश्वास के धरातल पर जमीन खो ही चुके हैं और राजनीतिक जमीन उनकी बची नहीं यह उनकी लगातार हुई पराजय से स्पष्ट है।
प्रदेश और ग्वालियर चंबल अंचल की राजनीति में बालेंदु शुक्ला कभी बड़ा नाम थे, किंतु उनके बालसखा स्व. माधवराव सिंधिया पर जब संकट आया था, तब यही बालसखा पूरी तरह से निष्ठुर होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से जा मिले थे। उस समय मंत्री सुख भोगने के लिए वे स्व सिंधिया द्वारा बनाई गई मप्र विकास कांग्रेस में शामिल नहीं हुए थे। इसी तरह जिस भाजपा ने इनकी वरिष्ठता और मान सम्मान रखते हुए कैबिनेट स्तर का पद दिया, फिर भी यह भाजपा के कोई काम नहीं आए, उल्टे मान सम्मान न मिलने का बहाना बनाकर कांग्रेस की दहलीज पर पहुंच गए। अब जब इनकी राजनीति उत्तरार्ध में है, ऐसे में नगण्य समर्थकों के बल पर यह कांग्रेस को कितनी मजबूती दे पाएंगे यह आने वाला समय बताएगा। माना जा रहा है कि कांग्रेस को एक बड़े नाम के ब्राह्मण नेता की तलाश थी, ऐसे में उन्हें ग्वालियर पूर्व से टिकट देकर चुनाव लड़ाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो ग्वालियर और ग्वालियर पूर्व से चुनाव की दावेदारी कर रहे ब्राह्मण नेताओं के पेट का पानी हिल गया है। क्योंकि फिर उनकी दावेदारी का क्या होगा।
यहां बतां दें कि 20 वर्ष पूर्व कांग्रेस में उनकी तूती बोला करती थी और स्व माधवराव सिंधिया के बालसखा होने के कारण किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय में उनकी भूमिका रहती थी। किंतु सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया से पटरी नहीं बैठ पाने के कारण पहले वे बसपा और फिर भाजपा में चले गए। भाजपा ने उन्हें चुनाव तो कभी नहीं लड़ाया,किंतु पूरा मान सम्मान देते हुए सामान्य निर्धन वर्ग कल्याण आयोग का अध्यक्ष जरूर बनाया। किंतु इस दौरान न तो वे इस विभाग में कुछ कर सके और न ही भाजपा के काम आ सके। उनकी उम्र 74 वर्ष होने के कारण वे सक्रिय भी नहीं हैं। वैसे भी इस बीच कई अन्य नेता कांग्रेस में ताकतवर बनकर उभरे हैं, ऐसे में यह कहना बड़ा मुश्किल है कि पहले जैसा विशेष स्थान उन्हें कांग्रेस में अब मिल पाएगा।
स्व. माधवराव सिंधिया ही उन्हें वर्ष 1980 में राजनीति में लेकर आए थे और बैंक की नौकरी छुड़वाकर गिर्द विधानसभा से चुनाव लड़वा दिया था। श्री शुक्ला यहां से तीन बार विधायक रहकर 13 वर्षों तक मंत्री रहे। उन्होंने अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा एवं दिग्विजय सिंह की कैबिनेट में मंत्री रहकर काम किया।
लोकसभा का चुनाव लड़ना हुआ घातक
स्व सिंधिया 1998 में स्वयं ग्वालियर से और बालेंद्र शुक्ला को भिंड से लोकसभा का चुनाव लड़ाया ग। जिसमें श्री सिंधिया के सामने भाजपा से जयभान सिंह पवैया थे, इस चुनाव में श्री सिंधिया मात्र 26 हजार मतों से विजयी हुए। जिसपर शुक्ल के विरोधियों ने सिंधिया राजपरिवार तक यह खबर पहुंचवा दी कि ग्वालियर के कांग्रेस नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को भिंड में लगा दिया गया था। इसके बाद वर्ष 2001 में माधवराव सिंधिया के आकस्मिक निधन के बाद एक तरह से उनकी राजनीति का अवसान हो गया। क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति में आने के बाद शुक्ल को तबज्जो नहीं दी, जहां तक कि गुना से पहला चुनाव लड़ने पर शुक्ल को नहीं बुलाया गया।
रश्मि की हार का बने कारण
वर्ष 2003 के विधानसभा
चुनाव में बालेंदु शुक्ल को ग्वालियर विधानसभा से टिकट मिला, किंतु भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र सिंह तोमर ने उन्हें 34 हजार से भी अधिक मतों से पराजित कर दिया। इसके बाद वह कांग्रेस में हाशिए पर आ गए। वर्ष 2008 में जब उन्हें कहीं से टिकट नहीं दिया गया,तब वह बसपा में चले गए और ग्वालियर दक्षिण विधानसभा से चुनाव लड़ा। जिसमें उन्हें लगभग 12 हजार मत मिले, वह कांग्रेस प्रत्याशी रश्मि पवार शर्मा की हार का कारण बने, क्योंकि रश्मि मात्र 7 हजार मतों से चुनाव हार गई। बात यहीं नहीं ठहरी,दो साल बाद श्री शुक्ला भाजपा में पहुंच गए। यहां उन्हें सामान्य निर्धन वर्ग कल्याण आयोग का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट स्तर का दर्जा मिला।किंतु इसे श्री शुक्ला ने नाकाफी माना और मान सम्मान की बात कहते हुए अब वह कांग्रेस में चले गए हैं।
झांसी रोड पर लगता था मेला
वर्ष 1980 से 2001 तक श्री शुक्ला का प्रदेश की राजनीति में अच्छा खासा दबदबा था। झांसी रोड स्थित उनकी कोठी को महल के समतुल्य ही माना जाता था। उनके दखल से ही टिकट और नियुक्तियां होती थीं। यद्यपि इस बीच कांग्रेस में ही उनके प्रतिद्वंदी महेंद्र सिंह कालूखेड़ा भी महल के नजदीक थे, इसलिए यहां दो गुट हो गए थे।
दिग्गी ने बना दिया था नया विभाग
दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते जब स्व.सिंधिया की ओर से बालेंद्र शुक्ला को मंत्री बनाने का दबाव आया तो श्री सिंह इसे लगातार टालते रहे, फिर जब मंत्री पद दिया तो नया विभाग सृजित कर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी दिया गया। यहां कोई काम ही नहीं था। बाद में उन्हें स्वास्थ्य विभाग को दो हिस्सों में बांटकर चिकित्सा शिक्षा मंत्री बनाया गया।
ब्राह्मण नेताओं में हलचल
कहीं बालेन्दु शुक्ल को ग्वालियर पूर्व से टिकट न मिल जाए, इसे लेकर कांग्रेस के ब्राह्मण नेताओं में हलचल है। यदि ऐसा होता है तो पूर्व से दावेदारी कर रहे डॉ देवेंद्र शर्मा, रश्मि पवार शर्मा, आनंद शर्मा के अलावा ग्वालियर से सुनील शर्मा एवं अशोक शर्मा के टिकट भी खटाई में पड़ सकते हैं।