यूपी: इस गांव में तालीबानी सोच से होती रहीं मौतें, विशेष मजहब के लोगों ने बिगाड़े हालात

स्थानीय स्तर पर पहले से ही कोविड टीका का विरोध कर रहे ग्रामीणों ने सरकार की एक नही चलने दी। यही कारण था कि स्वास्थ्य विभाग से चार बार वैक्सिनेशन कैंप आयोजित होने के बाद भी गांव के किसी भी व्यक्ति ने टीका नही लगवाया।

Update: 2021-05-23 04:27 GMT

फतेहपुर (आशीष सिंह): जिले के ललौली गांव में ग्रामीणों की तालिबानी सोच ने लोगों को मरने दिया। स्थानीय स्तर पर पहले से ही कोविड टीका का विरोध कर रहे ग्रामीणों ने सरकार की एक नही चलने दी। यही कारण था कि स्वास्थ्य विभाग से चार बार वैक्सिनेशन कैंप आयोजित होने के बाद भी गांव के किसी भी व्यक्ति ने टीका नही लगवाया।

ऐसे में जहां एक ओर गांव के लोगों में बुखार और सांस लेने में दिक्कत होने से मौत हो रहीं थी, तो वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों ने अपनी जिद के चलते सरकारी तंत्र और डॉक्टरों का सहयोग नही किया। इसका असर यह हुआ कि 45 हजार वाले इस गांव में 37 लोगों की कब्र खुद गयी। इन सबके बीच स्वास्थ्य टीम कैंप लगाकर ग्रामीणों को दवाएं देने का प्रयास करती रहीं। यदि समय से ग्रामीणों ने टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टरों से कदम मिलाया होता तो सभी लोगों की जान बचाई जा सकती थी।



ललौली में एक विशेष सम्प्रदाय की आबादी अधिक होने के कारण ग्रामीणों में कोविड जांच से लेकर टीकाकरण तक में घोर लापरवाही देखने को मिली। अप्रैल माह में डॉक्टरों की टीम कैंप लगाकर चली जाती लेकिन कोई भी व्यक्ति न जांच करवाता और न ही टीका लगवाता। इसी बीच लोगों को सांस लेने और तेज बुखार आने लगा तो घर में ही स्थानीय स्तर पर मेडिकल स्टोर से दवा लाकर उपचार किया जाने लगा। ग्राम प्रधान शमीम अहमद के अनुसार धीरे-धीरे समस्या और बढ़ी जिससे लोगों की मौत होने लगी। 23 अप्रैल को सर्वाधिक सात लोगों की मौत ने ग्रामीणों को दहशत में डाल दिया। गांव में सबसे ज्यादा लोगों की मौत सुफियान के यहां हुई उनके अनुसार 10 दिन में चार लोगों की मौत हुयीं। इन सबके बीच जब स्थिति अनियंत्रित होने लगी तो ग्रामीणों ने अपनी लापरवाही का ठीकरा स्वास्थ्य टीम, प्रशासन और जिला अस्पताल पर फोड़ना शुरू कर दिया।

चार बार टीकाकरण कैंप लगा लेकिन किसी ने नही लगवाया

मुख्य चिकित्साधिकारी गोपाल कुमार माहेश्वरी ने बताया कि ललौली गांव में चार बार टीकाकरण कैंप लगवाया गया लेकिन एक भी व्यक्ति ने टीका नही लगवाया। 25 अप्रैल, पांच मई, 17 मई और शुक्रवार को अलग-अलग स्थानों पर टीकाकरण कैंप का आयोजन किया गया। इसके पहले आशा और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने लोगों के घर घर जाकर उन्हें टीकाकरण के लिए जागरूक किया। लेकिन इसके बावजूद भी किसी ने सरकारी स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठाना उचित नही समझा।

टीकाकरण से नपुंसकता की अफवाह को सच मानते ग्रामीण

ऐसी बात भी नही है कि इस गांव में पढ़े-लिखे लोग नही हैं या जागरूक लोग नही हैं लेकिन टीका का विरोध करने के मामले पर यहां के ग्रामीणों में तरह-तरह की अफवाहें हैं। बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें सार्वजनिक तौर पर लिखा भी नही जा सकता। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि ग्रामीणों की जिद और लापरवाही ने लोगों को मरने के लिए झोंक दिया। जब बीमारी ज्यादा फैलने लगी तो लोगों ने सरकारी सिस्टम को दोष देना शुरू कर दिया।


जांच न हो जाए इसलिए जिला अस्पताल नहीं गए मरीज

ललौली में बीमार होने वाले मरीजों की कहीं कोरोना जांच न हो जाये इसलिए ये लोग जिला अस्पताल में दिखाना उचित नही समझे। यही कारण रहा कि एक भी मरीज उपचार के लिए जिला चिकित्सालय नही पहुंचा और घर में रहकर ही उपचार कराते रहे। मामले की जांच करने पहुंची टीम को किसी ने भी जिला अस्पताल का पर्चा नही दिखाया। इसी से यह बात पता चलती है कि सरकार और सरकारी तंत्र को बदनाम करने के लिए पूरा षणयंत्र रचा गया।

प्रशासनिक अधिकारी फिर पहुंचे गांव

बीते दिनों ललौली गांव में लोगों को दवाएं वितरण कराने के बाद शुक्रवार को फिर से उप जिलाधिकारी प्रमोद झा, नायब तहसीलदार विकास पाण्डेय गांव पहुंचे। यहां पर आशा, आंगनबाडी कार्यकत्रियों, स्वास्थ्य टीम और ग्रामीणों के साथ बैठक कर लोगों की समस्याएं सुनी और गांव का निरीक्षण कर अफवाहों की हकीकत जानी। जिस पर पता चला कि ग्रामीणों ने सरकारी कर्मचारियों का सहयोग नही किया। यही कारण था कि ललौली गांव में दिन-प्रति दिन लोगों के हालात बिगड़ते चले गए।

"ललौली गांव में लगातार चिकित्सकीय और प्रशासनिक व्यवस्था करायी जा रही है। यहां पर 100 लोगों की मृत्यु होने की बात पूरी तरह से गलत है। 45 हजार की आबादी वाले इस गांव में पिछले डेढ़ माह में 37 लोगों की मृत्यु हुई है। जिसमें एक भी मौत कोरोना के कारण नही हुई है।" - प्रमोद झा, उप जिलाधिकारी, सदर

जिला प्रशासन ने जारी की 37 मृतकों की सूची

1- इस्लाम आयु 51 वर्ष, बीमारी सीओपीडी (सांस में दिक्कत)।

2- अबीबुल रहमान आयु 59 वर्ष, बीमारी डायबिटीज।

3- बिस्मिला आयु 65 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

4- नफीस आयु 53 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

5- शमसुन आयु 62 वर्ष, बीमारी डाइबिटीज।

6- जहूर आयु 90 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

7- जहीर आयु 70 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

8- मुजीब आयु 56 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

9- बुआ आयु 58 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

10- अल्ताफ आयु 87 वर्ष, बीमारी पेट के मरीज।

11- कल्लू हफीज आयु 43 वर्ष, बीमारी बुखार।

12- सईदन आयु 65 वर्ष, बीमारी रक्तचाप।

13- अनीसन आयु 42 वर्ष, बीमारी हाइपरटेंशन।

14- नईम आयु 50 वर्ष, बीमारी टीबी-डाइबिटीज।

15- इम्तियाज आयु 86 वर्ष, बीमारी सांस लेने में दिक्कत।

16- इसरतुआ आयु 40 वर्ष, बीमारी डाइबिटीज।

17- इसरार आयु 57 वर्ष, बीमारी हार्ट अटैक।

18- पीर अहमद आयु 58 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

19- फात्मा आयु 41 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

20- सुमन देवी आयु 38 वर्ष, बीमारी लंबे समय से सांस से पीड़ित।

21- मुसीर आयु 51 वर्ष, बीमारी खासी-बुखार।

22- खालिक आयु 68 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

23- सितारा आयु 44 वर्ष, बीमारी बुखार और हाइपरटेंशन।

24- सफीकुन आयु 65 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

25- नजबुन आयु 89 वर्ष, बीमारी खून की कमी।

26- जन्नतुन आयु 76 वर्ष बीमारी सीओपीडी।

27- सखीना आयु 81 वर्ष, बीमारी खून की कमी।

28- पीरू आयु 69 वर्ष, कैंसर की बीमारी।

29- इलियास आयु 58 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

30- तुफैल खा आयु 61 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

31- मुअज्जन आयु, बीमारी 70 वर्ष पथरी।

32- बाकर अली आयु 49 वर्ष, आयु हाइपरटेंशन।

33- शहीदा आयु 46 वर्ष, अस्थमा मरीज।

34- इशाक आयु 52 वर्ष, बीमारी हार्ट अटैक।

35- रमजान आयु 82 वर्ष, पेट गैस की बीमारी।

36- तुफैल आयु 72, बीमारी सीओपीडी।

37- कमाजुल आयु 72 वर्ष, बीमारी सीओपीडी।

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