पश्चिम बंगाल में लाख प्रयास करने के बाद भी ममता बनर्जी भगवा की लहर को रोकने में कामयाब नहीं हो सकीं। भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों में जिस तरह से इस राज्य में दिनोंदिन अपनी पकड़ मजबूत करने का सिलसिला जारी रखा हुआ है, उसे देखते हुए अब ऐसा लगने लगा है कि ममता दीदी इसके विरोध में किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, शायद यही वजह है कि वे जयश्रीराम के नाम से चिड़ने लगी हैं।
एक बार को यह भुला भी दिया जाए कि वे जो भाजपा पर आरोप लगाती हैं और उन तमाम आरोपों को भी खारिज करती हैं जो भारतीय जनता पार्टी की ओर से उन पर अब तक लगते रहे हैं। मसलन, टीएमसी के नेताओं द्वारा राजनीतिक विद्वेष के चलते भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं करवाना। मतदान करने से रोकना, धमकी देना, आगजनी आदि कर डराने का कार्य करना । फिर भी यह समझ नहीं आता कि ममता अब क्यों उद्वेलित हो रही हैं।
क्या इस बात को नकारा जा सकता है कि लोकसभा चुनावों के दौरान न केवल भाजपा बल्कि वामदल एवं कांग्रेस, तीनों इस बात पर एकमत दिखे कि पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार की सरपरस्ती में लोकतंत्र खतरे में है। ममता की पार्टी से सहमत नहीं होनेवाले मतदाताओं के लिए निर्भीक होकर मतदान करना कठिन है। इतना ही नहीं तो चुनाव आयोग के विशेष पर्यवेक्षक भी यह कहते सुने गए थे कि पश्चिम बंगाल की स्थिति निष्पक्ष मतदान करने के पक्ष में नहीं दिख रही। पुलिस तृणमूल कार्यकर्ताओं की हिंसा पर आंखे मूंद लेती है। विपक्षी नेताओं-कार्यकर्ताओं-समर्थकों के घरों पर हमला, आगजनी, उनके साथ मारपीट और झूठे मुकदमों की असंख्य घटनाएं हो रहीं हैं। इसके बाद भी ममता का दावा यही है कि उनकी पार्टी के नेता या कार्यकर्ता राजनीति से प्रेरित किसी हिंसा में संलिप्त नहीं हैं।
शायद, ममता इसलिए भी भड़की हो सकती हैं कि प्रदेश में ज्यादातर 28 फीसदी मुसलमानों में अधिकतम का साथ मिलने के बाद भी वे भाजपा के रथ को आगे बढ़ने से रोकने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं। खुद उनका और उनकी पार्टी के अधिकांश लोगों का मानना यही है कि 2011 के चुनाव में मुसलमानों के समर्थन ने ही जीत में अहम भूमिका निभाई थी, इसकी बदौलत ही 33 साल बाद कम्यूनिस्टों को सत्ता से बेदखल करने में टीएमसी सफल हो सकी थीं।
वस्तुत: इसके साथ ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाराजगी का कारण यह भी हो सकता है कि एनआरसी को सफलता से राज्य में भाजपा लागू करने के पक्ष में है। भाजपा नेता कई बार यह कहते पाए जाते हैं कि 'हमारा एक-एक घुसपैठिए को बाहर निकालने के लिए देशभर में एनआरसी लागू करने का वादा है। पहले हम नागरिकता (संशोधन) विधेयक लाएंगे ताकि सभी शरणार्थियों को नागरिकता मिले और फिर हम घुसपैठियों को बाहर करने के लिए एनआरसी लाएंगे।' जबकि बनर्जी लगातार दावा करती रही हैं कि असम से अवैध शरणार्थियों को बाहर करने के लिए लाया गया एनआरसी असल में भारतीय नागरिकों को शरणार्थी बना देगा। लेकिन इसके बाद भी पश्चिम बंगाल का वर्तमान सच यही है कि आज यहां ''माफिया राज'' चल रहा है। गौ तस्करी में राज्य शीर्ष पर है और यह घुसपैठियों के लिए पनाहगाह बना हुआ है। पूरे कारोबार पर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोग बैठे नजर आ रहे हैं। जोकि प्रमोटरों और ठेकेदारों को अक्सर ऊंचे दामों पर खराब गुणवत्ता का सामान खरीदने के लिए विवश करते हैं। राज्य में नए उद्याग-धंधे आ नहीं रहे, ऐसे में लग रहा है जैसे पश्चिम बंगाल दिवालिया राज्य हो गया है।
वस्तुत: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को लेकर भी ममता यहां जिस तरह की राजनीति कर रही हैं वह समझ के परे हैं। देश यहां हुईं पिछले साल घटी घटनाओं को भूला नहीं है कि किस तरह से गत वर्ष 26 मार्च रामनवमी के एक दिन बाद यहां सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी। पहले रामनवमी के जुलूस पर आसनसोल में पत्थरबाजी हुई फिर एक गाड़ी में आग लगा दी गई और उसके बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा राज्यव्यापी हो गई थी। जिसके बाद इस संपूर्ण घटना का सच यही है कि इसमें सबसे अधिक मार हिन्दूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं को झेलनी पड़ी थी। ममता इतना सब होने के बाद भी रुकती नहीं दिखाई दी, उन्होंने इस साल भी राम नवमी के अवसर पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकर्ताओं को श्रीराम का नाम लेने संबंधी आयोजन करने एवं रैली निकालने से रोका था।
वास्तव में आश्चर्य तो यह है कि ममता पश्चिम बंगाल में लगातार अपना जनाधार सिमटता देखकर भी सुधरने को तैयार नहीं हैं। हाल ही में यहां उत्तर 24 परगना जिले के भाटपाड़ा में जो हुआ और जिस तरह से ममता के सामने कुछ लोगों ने 'जयश्री राम' के जय घोष किया तथा जिसे सुनकर ममता बनर्जी अपना आपा खो बैठीं और अपने वाहन को रुकवाकर, नारेबाजी करने वालों को रोककर बोलती हैं कि चमड़ी खींच लेंगे। गिरफ्तार करा देंगे। यहां नाटकीय रूप से ममता बनर्जी अपनी गाड़ी से बाहर आती हैं और अपने सुरक्षा अधिकारियों से सभी लोगों का नाम लिखने को कहती हैं और सामने खड़े लोगों को धमकाती भी हैं कि आपकी हिम्मत कैसे हुई ? आप अन्य राज्यों से आएंगे, यहां रहेंगे और दुर्व्यवहार करें। मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूंगी। उसके बाद उन्हें गिरफ्तार भी करवाती हैं।
अब यहां प्रश्न सीधा सा यही है कि बहुसंख्यक हिन्दुओं के देश में श्रीराम का नाम लेना भी अब अपराध हो गया है क्या ? यदि नहीं, तो ममता बनर्जी को जनता से किए अपने इस दुरव्यवहार पर सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए। नहीं तो इस संपूर्ण घटना से साफ तौर पर यही झलकता है कि ममता बनर्जी अपनी हार पर आपे से बाहर हो चुकी हैं। ऐसे में केंद्र सरकार और राष्ट्रपति उन्हें जितनी जल्दी समझाएं उतना अच्छा रहेगा। हर हाल में लोकतंत्र की मर्यादा यहां बनी रहे । देश में किसी भी राजनीतिक पार्टी को इससे समझौता करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है।