वेबडेस्क। स्वरकोकिला लता मंगेशकर को लेकर एक पुराना किस्सा है कि 33 साल की उम्र में उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी। लता की करीबी मित्र पद्मा सचदेव की किताब 'ऐसा कहां से लाऊं' में भी इस बात का जिक्र है। यह घटना 1963 की है जब लताजी को लगातार उल्टियां हो रही थीं। डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि उन्हें धीमा जहर दिया गया है। हालांकि अब खुद लता मंगेशकर ने इस कहानी के पीछे से पर्दा हटाया है। लताजी ने एक बातचीत में कहा- हम मंगेशकर्स इस बारे में बात नहीं करते। क्योंकि यह हमारी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था। साल था 1963। मुझे इतनी कमजोरी महसूस होने लगी थी कि मैं बेड से बड़ी मुश्किल से उठ पाती थी।
लता मंगेशकर ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि ये बात सच है कि मुझे धीमा जहर दिया गया था। लेकिन डॉ. कपूर के इलाज और मेरे दृढ़ विश्वास ने मुझे वापस खड़ा कर दिया। करीब तीन महीने तक बेड पर रहने के बाद मैं फिर से गाने रिकॉर्ड करने लायक हो गई थी।पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद लताजी का पहला गाना 'कहीं दीप जले कहीं दिल' हेमंत कुमार ने कंपोज किया था। लताजी के मुताबिक, हेमंत दा मेरे घर आए और मेरी मां से अनुमति लेकर मुझे रिकॉर्डिंग के लिए ले गए। उन्होंने मां से वादा किया कि किसी भी तरह की कोई परेशानी हुई तो वे फौरन मुझे घर वापस ले आएंगे। किस्मत से रिकॉर्डिंग अच्छे से हो गई। मैंने अपनी आवाज नहीं खोई थी। फिल्म 'बीस साल बाद' के इस गाने ने फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था।
लता मंगेशकर के मुताबिक, उनके ठीक होने में मजरूह सुल्तानपुरी का अहम रोल है। लताजी ने बताया- मजरूह साहब हर शाम को मेरे घर पर आते और मुझे कविताएं और पुराने किस्से सुनाकर मेरा दिल बहलाते थे। मेरी बीमारी के दौरान वो हर रोज आते थे। यहां तक कि मेरे लिए डिनर में बना सिंपल खाना खाते थे और मुझे कंपनी देते थे। मुझे लगता है कि अगर मजरूह साहब न होते तो मैं उस मुश्किल दौर से कभी न उबर पाती।