प्रलाप में तब्दील हुए राफेल पर राहुल के प्रश्न

Update: 2019-01-09 14:47 GMT

राफेल पर राहुल के प्रश्न अब प्रलाप में बदल चुके हैं। राफेल मुद्दे पर राहुल गांधी में कितना आत्मविश्वास है, इसका खुलासा लोकसभा में हुआ। राहुल ने आरोप लगाया कि गोवा के एक मंत्री के ऑडियो में राफेल की सच्चाई है। इर पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि क्या वह इस बात की गारंटी लेते हैं कि ऑडियो सही है। फिर क्या था, राहुल पलट गए, ऑडियो सुनने की जिद छोड़ दी। इसके पहले वह ऐसे गरज रहे थे, जैसे राफेल डील पर उनके आरोप सही साबित हो गए। मतलब साफ है राहुल के पास कोई तथ्य ही नहीं है, वह आरोप लगाओ, कीचड़ फेंको और भाग जाओ की नीति पर चल रहे हैं। ऐसा दूसरा उदाहरण तब मिला जब राहुल जेपीसी बनाने की मांग से पीछे हट गए। उसके पहले इतना गरज रहे थे, जैसे वह सरकार के खिलाफ दस्तावेज लेकर बैठे हैं। तीसरा उदाहरण भी दिलचस्प है। जेपीसी की मांग छोड़ने के बाद राहुल संसद में चर्चा की मांग करने लगे। राहुल को लगा होगा कि सरकार चर्चा से भाग जाएगी। लेकिन राहुल चर्चा के दौरान न कोई तथ्य दे सके ,न उनके पास कहने के लिए कोई नयी बात थी।

यह ठीक है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके सवालों को गम्भीरता से नहीं लेते है। अरुण जेटली और निर्मला सीतारमण ने राहुल के आरोपों को हद तक नकार दिया। इस पर राहुल पत्रकार वार्ता में वही सवाल लेकर पहुंच गए , जिनका कई संबंधित लोग अनेक बार जबाब दे चुके हैं। ऐसे में लगता है कि राफेल पर जितने उत्तर दिए जाएं, वह घुमा फिरा कर वही सवाल दोहराते रहेंगे। उस पर भी हंगामा यह कि जबाब नहीं मिला। राहुल को आपत्ति है कि मात्र छत्तीस विमान क्यों खरीदे। राहुल यह भी तो बताते कि कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार में 10 वर्दष के दौरान कितने खरीदे गये थे। अब कांग्रेस अध्यक्ष इसके बाद कहते हैं कि देश के सभी लोग राफेल पर सवाल पूछें। मतलब देश के सभी लोगों को राहुल अपने जैसा बनाना चाहते हैं, जो जबाब मिलने के बाद भी प्रश्न दोहराता रहें। क्या वह अपनी तरह देश के सभी लोगों को भ्रामित करना चाहते हैं।

राहुल गांधी अनिल अंबानी और एचएएल को लेकर कई बार सवाल उठा चुके है। अंबानी , भारत और फ्रांस की सरकार, दौसा कमानी सभी इसका जबाब दे चुकी है। एचएएल को उबारने के लिए केन्द्र सरकार ने 52बार सहायता दी है। राफेल डील में दसॉ ने एचएएल से निर्मित होने वाले लड़ाकू विमान की गारंटी लेने से मना कर दिया था। उसका कहना था कि एचएएल के साथ मिलकर भारत में एक लड़ाकू विमान बनाने में उसे ढाई गुना अधिक समय लगता। उसने किसी और पार्टनर को चुनने के लिए देश की ऑफसेट नीति का सहारा लिया। इस ऑफसेट पार्टनर नीति को पूर्व की यूपीए सरकार ने 2013 में बनाया था। राहुल अपनी सरकार के निष्फल दाम बता कर बहुत खुश होते हैं। लेकिन खरीदने में नाकाम क्यों रहे, इस सवाल का कोई जबाब नहीं देते। कांग्रेस सरकार पहले ही 10 वर्ष की देर कर चुकी थी, इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार को इन पर तेजी से कार्य करना पड़ा।

वर्ष 2016 में जो सौदा हुआ, उसके आधार पर बेयर एयरक्राफ्ट अर्थात युद्धक प्रणालियों से विहीन विमान का दाम यूपीए की कीमत से नौ प्रतिशत कम था और हथियारों से युक्त विमान यूपीए की तुलना में भी 20 प्रतिशत सस्ता था। अरुण जेटली ने कहा कि कांग्रेस पार्टी को आफसेट के बारे में भी पता नहीं है। आफसेट का मतलब है कि किसी विदेशी से सौदा करते हैं तो कुछ सामान अपने देश में खरीदना होता है। राफेल में 30 से 50 प्रतिशत सामान भारत में खरीदने की बात है। कुल आफसेट 29 हजार करोड़ रुपये का है जबकि, राहुल एक लाख,30 करोड़ होने का आरोप लगा रहे है। आफसेट तय करने का काम विमान तैयार करने वाली कंपनी का है। राहुल गांधी राफेल खरीद प्रक्रिया जानने को बेताब थे। उसका भी जबाब मिल चुका है। राफेल की खरीद के दौरान पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया। अनुबंधन वार्ता समिति, कीमत वार्ता समिति आदि की 74 बैठकें हुई। सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी दी गई। इसके बाद यह रक्षा खरीद परिषद में गया और फिर सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडल समिति की मंजूरी ली गई।

यूपीए के रक्षा मंत्री ने पूरी प्रक्रिया के बाद कहा था कि इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। इसका जबाब राहुल को देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय के बाद राहुल के सभी सवाल बेमानी हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सरकार ने उसे विमानों के दाम सीलबंद लिफाफे में दिए थे। उसने इन्हें देखा और हम संतुष्ट हुआ। कोर्ट ने फैसला दिया इस मामले में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। जाहिर है कि राहुल गांधी ने राफेल पर जितने भी सवाल उठाए थे, उनका अनेक बार जबाब आ चुका है। फ्रांस सरकार ने उनकी बात को झूठा बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राफेल डील में कुछ भी गलत नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद राहुल गांधी से सच्चाई स्वीकार करने की अपेक्षा थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद तो कोई संशय या सवाल बचा ही नहीं था।

राहुल गांधी ने भाषा शैली का स्तर भी बहुत गिराया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राफेल सौदे का दाम और प्रक्रिया उचित है, राहुल चिल्ला रहे हैं कि चौकीदार चोर है। लेकिन वह यह नहीं बताते की नेशनल हेराल्ड , अगस्ता वेस्टलैंड से संबंधित लोगों को क्या कहा जाए। अब तो लगता है कि भाजपा को राहुल गांधी के सवालों का जबाब देने के लिए, उन्हीं के जोड़ का एक नेता तैनात करना चाहिए। राहुल बिना किसी प्रमाण के राफेल के जितना पीछे पड़े हैं, उससे तो अब आशंका भी पैदा होने लगी है, क्योकि चीन और पाकिस्तान दोनों की नजर इस पर लगी है। वैसे बार बार मुंह की खाने के बाद उन्हीं सवालों को दोहराना अपने ढंग का बेजोड़ उदाहरण है।

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