अटल बिहारी वाजपेई: राजनीतिज्ञ के अजातशत्रु
डॉ प्रेरणा चतुर्वेदी, वाराणसी
पांच दशकों से भी अधिक संसदीय अनुभव का विस्तार लिए अटल बिहारी बाजपेई 'राजनीति के अजातशत्रु' कहे जाते रहे हैं. 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में कृष्ण बिहारी वाजपेई एवं कृष्णा देवी के घर भारतीय राजनीति के महान व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेई का जन्म हुआ था. अटल जी ने 'राजनीति को संघर्ष नहीं संवाद का संबल' माना। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने भाजपा को न केवल खड़ा किया बल्कि उसको दक्षिणपंथी
विचारधारा से मुक्त कराकर उदारवादी व सार्वभौमिक बनाया। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जिस छद्म सेकुलर राजनीति को परिभाषित किया. उसके मूल में यह सार था कि--- भारत को हिंदू राष्ट्र की कल्पना से नहीं चलाया जा सकता . भारत हिंदू राष्ट्र नहीं है.
इसी कारण हिन्दी, हिंदू- हिंदुत्व की धारणा को सर्वोपरि मानने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी नेहरू और कांग्रेस ने अपना राजनीतिक शत्रु चित्रित करने की कोशिश की. इन सब कारणों से मतभेदों के चलते देश के प्रथम उद्योग मंत्रीडॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने मंत्री पद से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस को छोड़ा और अपने राष्ट्रवादी विचारों के अनुरूप एक राजनीतिक विकल्प खड़ा करने का संकल्प लिया.
21 अक्टूबर, 1951 को "भारतीय जनसंघ" नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन हुआ. अटल बिहारी वाजपेई जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे . जनसंघ का काम बढ़ने पर जनसंघ के महामंत्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अटल बिहारी बाजपेई को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सहायक के रूप में उनके साथ कर दिया और इस तरह कवि से पत्रकार होते हुए अटल बिहारी वाजपेयी सक्रिय राजनीति में आ गये।
सन 1957 में भारतीय जनसंघ के चार सांसद चुने गए। उनमें से एक अटल बिहारी वाजपेई जी भी थे। अटल जी की राजनीतिक यात्रा का प्रारंभ 'भारत छोड़ो आंदोलन 'के साथ हुआ था. जनसंघ के शुरुआती दौर में वह 'कश्मीर सत्याग्रह' से जुड़े. जिसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों पर लगे तमाम प्रतिबंधों को हटाना था. जनसंघ के प्रारंभ में ही वह अपने प्रभावशाली भाषणों ( जिसमें सन 1957 का 'तिब्बत संकट' तथा 1962 में चीन से मिली पराजय पर भाषण प्रमुख था) से युवा सांसद के रूप में उभऱते राजनीतिक नायक बन चुके थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के संरक्षण में राजनीति में आदर्श प्रस्तुत करने वाले अटल जी पर दीनदयाल जी की मृत्यु पश्चात अचानक जनसंघ की जिम्मेदारी आ पड़ी.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अटल जी में 'भारत का भविष्य' देखा था. स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा था कि, -"अटल जी एक दिन भारत का नेतृत्व करेंगे" । न्यूक्लियर डील के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें 'राजनीति का भीष्म पितामह' कहा. जनसभा से लेकर लोकसभा तक में सर्वाधिक प्रभावशाली वक्ता, कवि हृदय ,लोकप्रिय राजनेता अटल जी एकमात्र से सांसद थे जिन्होंने देश के अलग-अलग छ: सीटों से चुनाव जीता था. डॉ . श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आदर्श को विरासत रूप में संजोकर राजनीति में अटल जी ने नए सोपान स्थापित किए।
उनके नेतृत्व में ही सन 1974 में जेपी आंदोलन को बल मिला. सन 1980 में जनसंघ का "भाजपा" के रूप में पुनर्जन्म हुआ. इसके पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बनें। पराजय को स्वीकार कर आगे उत्साह से कदम बढ़ाने वाले अटल जी को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सन 1984 के लोकसभा चुनावाें में मात्र 2 सीटें मिलीं। भारतीय राजनीति में भाजपा सदैव अस्पृश्य समान मानी जाती रही। किंतु अटल जी के दृढ़ संकल्प एवं उत्साह के कारण भाजपा को सन 1989 के लोक -सभा चुनाव में 89 सीटें मिलीं ।
सन 1991 में भाजपा को 121 सीटें,उसके बाद 1996 में 166 लोकसभा सीटें और सन 1998 में अटल जी के नेतृत्व में भाजपा को 183 सीटें मिली. विपक्ष की कमजोरियों को बड़े ही सहज ढंग से उदाहरण देकर वह जनता के सामने प्रस्तुत करते थे .सन 1989 में इलाहाबाद में उपचुनाव हो रहा था. यहां रास्ते में विलंब के कारण अटल जी 3-4 घंटे देरी से आयोजन स्थल पर पहुंचे. अपनी देरी में आने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि-- "मैं सड़क मार्ग द्वारा कानपुर से इलाहाबाद के लिए आ रहा था। एक जगह बहुत जाम लगा था । जब मैंने पूछा कि -'यह कैसा जाम है'.
तो लोगों ने बताया कि --आगे एक पुल है ।उस पर धीरे- धीरे चलना होता है । धीरे होने के कारण यहां हर समय जाम लगा रहता है ।गाड़ी से उतरकर पैदल जाने पर मैंने एक बोर्ड देखा। जिसमें लिखा था--- "कृपया धीरे चलें ,पुल कमजोर है। " इसके साथ ही उन्होंने कहा-- 'जो कांग्रेस पार्टी देश को एक मजबूत पुल नहीं दे सकती .वह देश को एक मजबूत और कुशल सरकार कैसे दे सकती है....'.
प्राय: राजनीतिक पार्टियां अपने दोषों को छिपाने का प्रयास करती हैं। ऐसा कभी नहीं हुआ कि, पार्टी का शीर्षस्थ व्यक्ति अपने मित्रों एवं कनिष्ठों को कोई कड़ी सलाह दे। किंतु इसके विपरीत अटल बिहारी बाजपेयी जी में सच कहने का साहस था । वह अपने -पराए का भेदभाव भूलकर सलाह दिया करते थे। गुजरात दंगों के समय अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्होंने कहा कि ---'राजधर्म का पालन होना चाहिए'. इसी तरह रामरथ लेकर निकले अपने राजनीतिक मित्र लालकृष्ण आडवाणी को सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि-- 'आडवाणी जी ,आप अयोध्या जा रहे हैं, लंका नहीं'.
13 मई ,सन 1996 को सबसे बड़े दल के नेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेई जी को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने आमंत्रित किया. लेकिन यह सरकार मात्र 13 दिन ही चल पाई .इसके बाद हुए चुनावों में 13 माह के लिए 'राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन' की सरकार बनी. इस सरकार को परमाणु परीक्षण करने और विश्व में भारत की धाक जमाने वाली सरकार के रूप में जाना जाएगा. अटल बिहारी वाजपेई ने अपने प्रधानमंत्री काल में सदैव विश्व में भारत को मजबूती दिलाने का प्रयास किया.
पड़ोसी देश पाकिस्तान से तनाव समाप्त करने के लिए उन्होंने लाहौर तक बस यात्रा की. किंतु पाकिस्तान द्वारा करगिल युद्ध थोपने पर भारत ने पाकिस्तान को हराकर ही दम लिया । यद्यपि इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने अटल जी से युद्ध रोकने की अपील करते हुए कहा था कि--' यदि युद्ध नहीं रोका गया, तो पाकिस्तान परमाणु हमला कर सकता है' । इस पर अटल जी ने जवाब दिया कि --'यदि पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो, संसार के भूगोल से पाकिस्तान का नामोनिशान सदैव के लिए मिट जाएगा' .
अटल इरादे वाले अटल बिहारी बाजपेई ने गठबंधन सरकार चलाई किंतु डॉ. मनमोहन सिंह की तरह के सहयोगी दलों के दबाव में नहीं आए बल्कि उन्होंने क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय विचारधारा में लाने का प्रयास किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध करने वालों के प्रति उन्होंने स्पष्टता से कहा ----'मैं विरोधियों को कहना चाहूंगा कि, संघ का विरोध केवल विरोध के लिए ना करें. विरोध करने की मनाही नहीं है, परंतु संघ का राजनैतिक मूल्यांकन न करें. इसके बदले सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यांकन करें। ईमानदारी से विरोध करें ।यदि क्षमता है तो -संघ से बड़ा शक्तिशाली और प्रभावशाली संगठन खड़ा करके दिखाएं।'
संघ के विरोधियों को कड़ी चुनौती देने के बाद उन्होंने विरोधियों से निपटने के लिए संघ को भी सलाह देते हुए कहा कि--- 'संघ का विरोध करने वालों को दो तरह से चुनौती दी जा सकती है. एक-संगठन की ताकत बढ़ा कर. दो-- अपना बौद्धिक पक्ष मजबूती से रख कर. इसके साथ ही संघ की विचारधारा को समाज में ले जाने वाले लेखकों और बुद्धिजीवियों को भी आगे लाना होगा.'
सन 1996 में लोकसभा में विश्वास मत हासिल ना कर पाने के कारण हार के बावजूद सन 1997 के दिसंबर में भाजपा की भुवनेश्वर में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने अध्यक्षीय भाषण में लालकृष्ण आडवाणी ने कहा ----'आज जब हमारी विरोधी पार्टियों का नेतृत्व बाैने लोग कर रहे हैं और वे प्रधानमंत्री पद के लिए अपना कोई उम्मीदवार प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं है .तब भारत की जनता द्वारा अटल जी के नेतृत्व की स्वीकृति पूर्व निर्धारित निष्कर्ष है.'
अटल जी के राजनीतिक जीवन में 13 अंक का विशेष योगदान माना जा सकता है. बाजपेई जी की पहली सरकार 13 दिन चली. दूसरी बार 13 पार्टियों के साथ 13 महीने उन्होंने सरकार चलाया. 13वीं लोकसभा में 13 अक्टूबर को बाजपेई जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. भारतीय राजनीति में वंशवादी तथा एक परिवार तक सीमित रहने वाले पार्टी के विपरीत अटल जी ने लोकतंत्र को एक सशक्त राजनीतिक विकल्प दिया। मित्रता में विनम्र, किन्तु इरादों में अटल रहने वाले अटल जी का विरोधियों में भी काफी सम्मान रहा। उनका किसी से भी राजनीतिक विद्वेष कभी नहीं रहा।
कहा जा सकता है कि -जैसे आधुनिक भारत की नींव नेहरू ने डाली थी ,तो अटल बिहारी बाजपेई ने पोखरण विस्फोट कर भारत को एक मजबूत राष्ट्र का दर्जा दिलाया ।पाेखरण में हुए परमाणु परिछण विस्फोट को लेकर बुद्ध भी मुस्कुराए होंगे . भाजपा परिवार से लेकर संपूर्ण राष्ट्र में यह आवाज गूंज उठा था.