टैगोर का बंगाल, मेरा रोम-रोम रो रहा है

  • अपर्णा विष्णु तिवारी

Update: 2021-05-06 10:17 GMT

मैं बंगाल हूं... टैगोर का बंगाल... पावन गंगा का बंगाल... साहित्य का बंगाल... काली पीठ का बंगाल... आज मेरा रोम-रोम रो रहा है। जिसका अंदेशा था वही हो रहा है। धू धू जलते कार्यालय, घर, सडक़ पर लहूलुहान लाशें, सरेआम अराजकता। ये तृणमूल की कैसी विजय है या लोकतंत्र की अधजली लाश का गंगासागर में तिरोहन है। सहर रहा हूं, धिकार रहा हूं अपने आपको कि मेरे भारत में यह सब कुछ मेरे जीवन काल में ही हो रहा है। सारे छद्म धर्मनिरपेक्ष दल, मोमबाी गैंग, पुरस्कार वापसी गैंग, जेएनयू गैंग, खान मार्केट मीडिया एकदम मौन है और टीवी पर आकर सब कुछ देखकर भी बकवास बोल रहे हैं। तृणमूल के गुंडे सडक़ों पर अराजकता, खून, लूट, आगजनी, दुष्कर्म का तांडव कर रहे हैं और ममता बानो कह रही हैं कि पुराने वीडियो दिखाए जा रहे हैं, भाजपा वाले खुद कर रहे हैं। सारे मीडिया और पत्रकारों को झूठा बता रहे हैं। कभी साहित्य के लिए नॉबेल सम्मान पाने वाले टैगोर ने लिखा था कि आमार शोनार बांग्ला, आमि तोमाए भालोबाशी... चिरोदिन तोमार आकाश, तोमार बाताश, आमार प्राने बजाए बाशी... हिंदी में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का ये गीत कुछ इस तरह से है, मेरा प्रिय बंगाल, मेरा सोने जैसा बंगाल, मैं तुमसे प्यार करता हूं.. सदैव तुम्हारा आकाश, तुम्हारी वायु, मेरे प्राणों में बांसुरी सी बजाती है... लेकिन आज के लोकतंत्र के हालात देखकर खुद टैगोर की आत्मा रो रही होगी। आज बांसुरी नहीं बज रही, क्रंदन हो रहा है। पश्चिम बंगाल में 'डेमोक्रेसी' और 'सेयुलरिज्म' की जीत के बाद टीएमसी के लोग राजनीतिक जश्न मना रहे हैं। जाहिर है उसमें 'आतिशबाजी' भी होगी। लोग 'होली' भी खेलेंगे। इसमें कुछ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की जान चली जाती है, कुछ घायल हो जाते हैं या किसी की संपाि का नुकसान होता है, या थोड़ी लूटपाट हो जाती है तो इसमें भला भद्रलोक की या गलती है।

इस खबर के लिखे जाने तक भाजपा के 11 कार्यकर्ताओं की हत्या की खबर है, जबकि कई महिला कार्यकर्ताओं के दुष्कर्म और सैकड़ों कार्यकर्ताओं के घर लूटने और जलाने की खबर है। पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम आने के 24 घंटे के भीतर जिस तरह टीएमसी के गुंडों ने आतंक का नाच किया वो किसी भी सय समाज के लिए शर्म की बात है। भद्रलोक के प्रिय अंग्रेजी दैनिक द टेलिग्राफ के पहले पन्ने पर इस हिंसा की चर्चा तक नहीं है मानो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ हिंसा सहज स्वीकार्य दिनचर्या का हिस्सा हो।

इनके पाजामों में नाड़ा ही नहीं : कई नामी गिरामी पत्रकार जो भाजपा शासित राज्यों में गैर राजनीतिक हिंसा को भी भाजपा के मत्थे मढऩे से बाज नहीं आते, उन्हें टीएमसी कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी में मानो गुदगुदी का आनंद मिलता है। भला आनंद आये भी कैसे नहीं, ये हिंसा तो 'सेक्युलर' हिंसा है... और इसे 'सांप्रदायिक शक्तियों' के मत्थे मढ़ा भी नहीं जा सकता, तो बेहतर यही होगा कि जश्न को जारी रहने दिया जाए। ऐसी दोगली पत्रकारिता ने ही चौथे खंभे की साख को बट्टा लगाया है। 'सेयुलर' दलों के बारे में किसी तरह की टीका-टिपप्णी करना उचित नहीं होगा, क्योंकि उनसे बहुत कुछ अपेक्षा की वजह रह नहीं गई है। जहां तक ज्ञानियों, बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्टों की बात है तो उनमें से अधिकांश बिन नाड़ा का पाजामा पहने घूम रहे हैं। मजे की बात है कि इनमें से ज्यादातर को इसका इल्म भी नहीं है।

मोदी के विरुद्ध ये लड़ाई राजनीतिक तो कतई नहीं : जब से मोदी सरकार आयी है, तब से अलग तरह की गुटबाजी देखने को मिल रही है। इस गुट को राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। यूं ही नहीं कहती हूं कि प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध लड़ी जा रही लड़ाई राजनीतिक है ही नहीं। प्रधानमंत्री मोदी से इनको हो रहा भयंकर पीड़ादायी कष्ट कुछ और ही है। यही कारण है कि पिछली बार 44 सीटें पाने वाले राहुल गांधी इस बार वो सभी 44 सीटें बुरी तरह हार कर गंवा देने के बाद शून्य सीटों के आंकड़े पर खड़े होकर इसलिए खुशी से नाच रहे हैं, बधाइयां बांट रहे हैं, योंकि 3 सीटों से 25 गुना बढक़र 77 पर पहुंची भाजपा बंगाल में सरकार नहीं बना पाई। संयम का हर बांध बुरी तरह तोड़ा जा रहा है। इसलिए यह याद रहे कि गोधरा का जवाब किसी सरकार ने नहीं, पूरे गुजरात ने दिया था। बंगाल का जवाब भी किसी सरकार को नहीं, पूरे देश को पूरे देश में देना होगा...

उफ ये कैसी नफरत : अंतरराष्ट्रीय याति वाले अत्यन्त शालीन पत्रकार स्वप्नदास गुप्त इस बार बंगाल के चुनाव में तारकेश्वर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। भयंकर तनातनी और तनाव के वातावरण में हुए चुनाव के दौरान भी स्वप्नदास गुप्त के धैर्य और संयम का बांध नहीं टूटा था। उनका पूरा चुनाव अभियान ममता बनर्जी की राजनीतिक प्रशासनिक विफलताओं, असफलताओं पर ही केंद्रित रहा था, लेकिन लगभग 90 हजार वोट पाकर भी स्वप्न दा 7484 वोट से चुनाव हार गए। उनकी इस हार में उन लगभग 10 प्रतिशत कट्टर धर्मांध अनपढ़ों, जाहिलों, गंवारों ने मुय भूमिका निभायी, जो 21वीं सदी के आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी इस गंवारपन पर मजबूती से अड़े-डटे हैं कि धरती गोल नहीं चपटी है, तेज हवा में वो कहीं उड़ ना जाएं इसलिए पेपरवेट की तरह उस पर पहाड़ रख दिए गए हैं। जाहिर है कि ऐसे अजब गजब कट्टर धर्मांध अनपढ़ों, जाहिलों, गंवारों को पहले दिन से ही स्वप्नदास गुप्त सरीखे विद्वान विचारक में अपना सबसे बड़ा दुश्मन दिखाई देने लगा था। इसके बावजूद स्वप्नदास गुप्त ने अपनी चुनावी हार को भी बहुत गरिमा के साथ स्वीकार किया था। लेकिन 2 मई को आए चुनाव परिणाम के हालातों के बाद स्वप्नदास गुप्त के धैर्य और संयम का बांध बुरी तरह टूट गया। उन्होंने रात 9:34 पर गृहमंत्री को संबोधित कर बहुत साफ शदों में ट्वीट किया कि... बंगाल में स्थिति बहुत खतरनाक/चिंताजनक हो गयी है। बीरभूम जिले के नानूर इलाके में एक हजार से अधिक हिन्दू परिवार लुटेरों की भीड़ से बचने के लिए भाग कर खेतों में इकठ्ठा हो गए हैं। औरतों के साथ अभद्रता और उससे भी बहुत बदतर हमले की खबरें आ रही हैं। परसों रात के बाद से वो लगातार ट्वीट कर के बंगाल में शुरू हो चुके कट्टर धर्मांध मजहबी रावण राज का सच देश और दुनिया को बता रहे हैं। ध्यान रहे कि स्वप्नदास गुप्त ने बहुत संयमित भाषा में अपनी बात कहने की कोशिश की है, लेकिन उनके संयम का बांध इसके बावजूद टूट गया। उनके ट्वीट में लिखा गया हिन्दू परिवार शद शत प्रतिशत स्पष्ट कर रहा है कि हमलावर लुटेरों का मजहब या है।

पांच साल भुगतेंगे : अब बात मुद्दे की है कि बंगाल में परिणाम के दिन दोपहर तक एक भी सीट का परिणाम नहीं आया था, पर जीत तय लगने लगी थी। लेकिन केवल इतना संकेत मात्र मिलते ही जीत के जश्न की शुरुआत सबसे पहले सरेआम भरे बाजार दुकानों को लूटने के साथ शुरू की गई थी। दुकानें किसकी लूटी गयीं और किन लोगों ने लूटीं, इसे आप लुटेरों के कपड़े और भाषा देख सुनकर बहुत आराम से पहचान लेंगे। कोई मेहनत आपको नहीं करनी पड़ेगी। लुटेरों की पहचान होते ही आपको यह समझने में एक क्षण भी नहीं लगेगा कि लुटेरों ने मुबारक महीने में किन काफिरों की दुकानों को लूटा। शाम होते होते भयंकर लूटपाट का यह सिलसिला और अधिक भयानक तथा राक्षसी हो गया। परिणामस्वरूप भाजपा कार्यालयों को आग के हवाले करने और सुवेन्दु अधिकारी सरीखे दिग्गज भाजपा नेता से लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमलों तक पहुंच गया। चुनाव परिणामों की हल्की सी पहली महक मिलते ही शुरू हुआ यह खतरनाक और खूनी सिलसिला। अब अगले 5 साल तक बेखौफ, बेलगाम चलना है। जो धर्म के नाम पर सत्ता की भूख और लालच में 30 प्रतिशत को अपनी जेब में मानकर देश विभाजन लिए अवैध बंगलादेशी मुसलमानों और रोहिंग्याओं को बंगाल में बसाकर, नकली आधार और वोटर कार्ड बनाकर अपना वोट बैंक बढ़ाकर अत्याचार का तांडव कर रहे हैं, उस पर ये सारे मोदी विरोधी एक होकर एक देशभक्त प्रधानमंत्री को हटाने की साजिश कर रहे हैं। कहां हैं राहुल, प्रियंका, सोनिया, अखिलेश, तेजस्वी, केजरीवाल, शरद पवार, उद्धव जो ममता को बधाई दे रहे थे और लोकतंत्र को लुटता देख रहे हैं। यदि छद्म और धोखे से तुम जीत भी गए तो हिंदुस्तान हार जाएगा और लाशें खाते गिद्धों पर तुम राज करना। ऐसा चलता रहा तो हिंदुस्तान नहीं बचेगा।

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