उत्तराखंड में गंगा समेत 23 नदियों के किनारे अवैध रूप से बने 10 लाख घर, लगभग 90 फीसदी मुस्लिम आबादी
तेजी से बदल रही उत्तराखंड की डेमोग्राफी;
देहरादून/वेबडेस्क। उत्तराखंड में अवैध रूप से मजार बनाकर जमीन पर कब्ज़ा करने के खेल की आड़ में चल रहे खेल का खुलासा हो गया है। प्रदेश के गठन के बाद अप्रत्याशित ढंग से यहां मुस्लिम आबादी बढ़ी है। ये आबादी आखिर कैसे बढ़ रही है इसे लेकर एक सर्वे रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है की राज्य के किन इलाकों में मुस्लिम आबादी को अवैध रूप से बसाया गया। इस रिपोर्ट में कुल 10 अवैध कब्जाधारी स्थानों को चिन्हित किया गया है।जहां 90 फीसदी गैर हिंदू आबादी को दूसरे राज्यों से लाकर बसाया गया है। इसका उद्देश्य देवभूमि का इस्लामीकरण करना है।
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, कुमायूं मंडल क्षेत्र के वन प्रभाग से गुजरने वाली नदियों में शारदा, नंधौर, दाबका, कोसी, गौला, कैलाश आदि 23 नदियों के किनारे पर अवैध कब्ज़ा कर लोगों को बसाया गया है। सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा कर लोगों को बसाने का ये खेल पिछले 15 सालों से जारी है। इसमें स्थानीय नेताओं की बड़ी भूमिका है। सबसे ज्यादा कब्जे पिछली सरकारों के समय में हुए है। वोट बैंक बढ़ाने की चाहत में नेताओं ने दूसरे राज्यों से मुसलमानों को लाकर नदी के किनारे बसाया है। अब उनके वोटर-आधार-राशन-मूल निवासी देकर स्थानीय नागरिक बनाने का काम चल रहा है।
मजदूर बनकर आए और हमेशा के लिए बस गए -
वहीँ गढ़वाल की बात करें तो यहां हालात कुमायूं से भी ज्यादा बदतर है। इस जिले में कालसी, जमुना, टोंस, शीतला, सुखरो, आसन, रिस्पना, पौंनधई, स्वर्णा, चोरखाला, जाखन, मालदेवता का बरसाती नाला, सहस्रधारा काली राव, आसन नदी के किनारे करीब 6 लाख लोगों ने अवैध रोप्प से बस्तियां बनाकर रह रहे है। इनमे अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुज्जफरनगर, पीलीभीत, मुरादाबाद आदि जिलों से काम की तलाश में आए मुसलमान है बता दें की इस क्षेत्र में मुख्य रूप से खनन का काम होता है। जिसके लिए आसपास के राज्यों से मजदूर को बुलाया जाता है। यहीं मजदूर यहां बस्तियां बनाकर स्थाई रूप से बस गए है। कई जगहों पर स्थानीय नेताओं के सहयोग से सरपंच-पंच जैसे पदों पर निर्वाचित हो गए है।
कांग्रेस की कमजोर नीति का परिणाम -
गढ़वाल और कुमायूं जैसा ही हाल हिंदूओं के पवित्र शहर हरिद्वार का है। यहां पुण्य पावनी माने जानी वाली गंगा नदी के किनारे मुस्लिम समुदाय ने मस्जिदें और मजारें तक बना डाली है। इसके अलावा हल्द्वानी, रुद्रपुर किच्छा में नदियों के किनारे बिहार से आए मुस्लिम भी बहुत ज्यादा संख्या में अवैध रूप से बस गए हैं, जिनका पेशा राज मिस्त्री, मजदूरी, प्लंबर गिरी करना है। ये लोग स्थाई रूप से कैसे यहां बसते चले गए ये बड़ा सवाल है। ख़ास बात ये है कि यह सभी कब्जे कांग्रेस की सरकार के समय में हुए है। ये वो बस्तियां हैं, जिन्हें हरीश रावत कांग्रेस सरकार रेगुलराइज करना चाहती थी। उन्हीं की सरकार ने यहां उनके वोट भी बनवाए। पछुवा देहरादून नेपाली फार्म में राष्ट्रीय राजमार्ग किनारे बड़ी संख्या में मुस्लिम कबाड़ी भी आ आए हैं, जिनकी संख्या हजारों में हो चुकी है। मुस्लिम समुदाय द्वारा हिंदूओं के आस्था के केंद्र माने जाने वाले शहरों और स्थानों पर कब्ज़ा बड़ी साजिश नजर आती है।
वन विभाग की बड़ी जमीन पर कब्ज़ा -
वनविभाग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तरखंड में कुल 65 फीसदी जमीन पर जंगल है। जिसमे से 11861 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जे की भेंट चढ़ चुकी है। इसका मुख्य कारण पिछली कांग्रेस सरकारों की नाकामी है, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए इन अवैध कब्जों की तरफ ध्यान नहीं दिया और अपनी आंखें बंद रखीं। उन्होंने इसे लेकर कोई नीति नहीं बनाई।
एक्शन मोड में मुख्यमंत्री धामी
उत्तराखंड में जनसंख्या असंतुलन से निपटने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर धामी एक्शन मोड में नजर आ रहे हैं। उन्होंने ने तेज तर्रार आईएफएस अधिकारी डॉ पराग मधुकर धकाते की नियुक्ति की है। उनके नेतृत्व में वन भूमि पर अवैध मजारें तोड़कर उक्त स्थान को अतिक्रमण मुक्त कराने का अभियान शुरू हो चुका है। साथ ही भू- कानून में भी बदलाव के संकेत सरकार की तरफ से दिए जा रहे हैं।