Moidams UNESCO World Heritage : विश्व धरोहर सूची में शामिल मोइदम, जानिए अहोम राजवंश से इसका कनेक्‍शन

Moidams UNESCO World Heritage : अहोम राजवंश ने असम और उत्तर पूर्व के हिस्सों में 1228 से 1826 ई. तक शासन किया था।

Update: 2024-07-26 10:21 GMT

Moidams UNESCO World Heritage

Moidams UNESCO World Heritage : नई दिल्ली। यूनेस्को विश्व धरोहर (UNESCO World Heritage) की सूची में असम के मोइदम्स (Moidams) को शामिल कर लिया गया है। यह भारत के लिए गर्व की बात है। असम के मुख्यमंत्री समेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे लेकर खुशी व्यक्त की है। मोइदम, अहोम राजवंश की कब्रगाह है। इसे स्थानीय लोग काफी पवित्र मानते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

अहोम राजवंश ने असम और उत्तर पूर्व के हिस्सों में 1228 से 1826 ई. तक शासन किया था। इस राजवंश की असम की संस्कृति में विशेष छाप है। असम ईस्ट के शिवसागर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर चराइदेव (Charaideo) है। यहां बने ये टीले स्थानीय लोगों के लिए विशेष महत्त्व के हैं। स्थानीय लोग इसे काफी पवित्र मानते हैं। दूर - दूर ट्रेवलर्स इन टीलों को देखने आते हैं।

मोइदम क्या हैं?

आसान भाषा में समझें तो मोइदम, कब्र के ऊपर बना एक विशेष टीला है। इस टीले राजघरानों और अभिजात वर्ग के लोगों की कब्रगाह है। चराइदेव (Charaideo) की बात की जाए तो यहां अहोम राजघराने के प्रमुख शासकों की कब्र है। अन्य मोइदम पूर्वी असम में, जोरहाट और डिब्रूगढ़ के शहरों के बीच के क्षेत्र में बिखरे हुए हैं। 600 वर्षों तक, ताई-अहोम ने पहाड़ियों, जंगलों और पानी की प्राकृतिक स्थलाकृति को उभारने के लिए मोइदम (दफ़न टीले) बनाए, इस प्रकार एक पवित्र भूगोल का निर्माण किया गया।

हिन्दुओं के विपरीत दफनाने की प्रथा :

आमतौर पर हिन्दु धर्म में मृत्यू के बाद शव को जलाकर अंतिम संस्कार करते हैं लेकिन अहोम इसके विपरीत दफनाकर अंतिम संस्कार करते हैं। यह अलग परंपरा ताई लोगों से उत्पन्न हुई। ऐसा माना जाता है कि, जो टीला जितना ऊंचा, उसमें दफनाए गए व्यक्ति का कद उतना ही ऊंचा होता था। इस तरह टीले की ऊंचाई दंफनाये गए व्यक्ति की शक्ति और कद बताती है। अब तक दो मोइदम की पहचान की गई है। इनमें से एक गधाधर सिंह और दूसरी रुद्र सिंह की है। बाकि, मोइदम अज्ञात हैं।

मोइदम के अंदर होता क्या है ?

अलग - अलग आकार के मोइदम यहां पाए गए हैं। इनमें ईंट, पत्थर या मिट्टी से बने खोखले तहखाने पाए गए हैं। इनमें राजाओं और राजघरानों के अन्य लोगों के अवशेष हैं। कब्र के अंदर भोजन, घोड़े और हाथी समेत शासक की पत्नी और यहाँ तक की नौकर भी दफनाए जाते थे। इन टीलों के ऊपर एक मंडप होता है, जिसे चाउ चाली के नाम से जाना जाता है। वहीं कुछ टीले के चारों ओर एक छोटी अष्टकोणीय दीवार भी है, जिसमें एक प्रवेश द्वार है। चराईदेव मोइदम को "असम के पिरामिड" भी कहा जाता है।

चराईदेव मोइदम खास क्यों हैं ?

चराईदेव (Charaideo) बेहद ख़ास हैं। पहले चराईदेव शब्द का मतलब समझिए। चराईदेव शब्द तीन ताई अहोम शब्दों से मिलकर बना है। ये शब्द हैं चे-राय-दोई। "चे" का मतलब है शहर, राय का मतलब है 'चमकना' वहीं दोई का मतलब होता है पहाड़ी। इस तरह चराईदेव का मतलब हुआ पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक चमकता हुआ शहर। अहोम राजवंश ने चराईदेव को अपनी पहली राजधानी बनाई थी।

अहोम राजवंश के राजा सुकफा ने 1253 ई. में चराईदेव की स्थापना की थी। उन्हें यहीं चराईदेव में दफनाया गया था। यही कारण है कि बाद के शासकों को भी यहीं दफनाया गया।

अहोम कौन थे ?

बता दें कि अहोम भारत के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक थे। अपने चरम पर, उनका साम्राज्य आज के बांग्लादेश से लेकर बर्मा यानी म्‍यांमार के अंदरूनी इलाकों तक फैला हुआ था। अहोम शासक न केवल बहादुर बल्कि समझदार शासक माने जाते थे। यही कारण है कि असम की संस्कृति में आज भी उनकी छाप बनी हुई है।

पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट किया, 'भारत के लिए यह बहुत खुशी और गर्व की बात है! चराईदेव में मोइदम गौरवशाली अहोम संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें पूर्वजों के प्रति अत्यधिक श्रद्धा होती है। मुझे उम्मीद है कि अधिक लोग महान अहोम शासन और संस्कृति के बारे में जानेंगे। मुझे खुशी है कि मोइदम विश्वविरासत सूची में शामिल हो गए हैं।'

असम मुख्यमंत्री ने एक्स पर पोस्ट किया, 'चराइदेओ मोइडम(चराइडो\\ Moidam) को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध करने के हमारे प्रयास में आपके अथक मार्गदर्शन के लिए माननीय प्रधानमंत्री का धन्यवाद। यह, अन्य प्रयासों के साथ-साथ गौरवशाली अहोम युग में जान फूंकेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि आने वाली पीढ़ियाँ असम की समृद्ध विरासत से अवगत हों।'

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