विदेश में भी दिवाली की धूम: भारत से दूर बसे भारतीय कैसे मनाते अपना पर्व दीपावली…
विवेक शुक्ला: कैरिबियाई टापू देश त्रिनिडाड-टोबेगे के प्रधानमंत्री रहे वासुदेव पांडे एक बार राजधानी में बता रहे थे कि उनके देश में दिवाली से पहले गणेश पूजा,पितृपक्ष,नवरात्रि और रामलीला भी बहुत उत्साह से मनाई जाती है। वासुदेव पांडे को अपनी पहली भारत यात्रा के दौरान यहां पर दिवाली की रात का मंजर देखकर हैरानी हुई थी। कारण यह था कि इधर लोग घरों के बाहर आलोक सज्जा बिजली के बल्बों से कर रहे थे,जबकि उनके देश में दिवाली पर अब भी मिट्टी के दीयों में तेल डालकर आलोक सज्जा करने की परम्परा खूब है।
मारीशस, सूरीनाम कैरिबियाई टापू देश त्रिनिडाड-टोबैगो, गुयाना और फीजी को आप चाहें तो लघु भारत कह सकते हैं। इनमें भी आज दिवाली की मनाई जायेगी। इन सब देशों में भारतवंशी खासी तादाद में हैं। इन सब देशों में भारतीय गिरमिटिया योजना के तहत लेकर जाये गये थे।
निश्चित रूप से, इन सब देशों में भारतवंशियों द्वारा मनाया जाने वाला दिवाली त्योहार, अपनी भव्यता और आनंद के लिए जाना जाता है। यह प्रकाश की जीत अंधकार पर, अच्छाई की बुराई पर, और ज्ञान की अज्ञानता पर मनाया जाता है। मारीशस की राजधानी दिल्ली स्थित एंबेसी में दिवाली की हलचल को प्रकाश पर्व से कई दिन पहले ही महसूस किया जा सकता है। इधर दिवाली से एक दिन पहले पूजन होता है। यहां से प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ की तरफ से राजधानी के एक मल्होत्रा परिवार को दिवाली पर मिठाई के डिब्बे और लक्ष्मी पूजा की सामग्री भी पहुंचाई जाती है। दरअसल प्रविंद जगन्नाथ की बड़ी बहन शालिनी जगन्नाथ मल्होत्रा का विवाह करोल बाग में रहने वाले मल्होत्रा परिवार के सुपुत्र डॉ.कृष्ण मल्होत्रा से 1983 में विवाह हुआ था। तब ही से मारीशस एंबेसी का मल्होत्रा परिवार से संबंध बन गया था। उधर, मॉरीशस में दिवाली को एक सार्वजनिक छुट्टी के रूप में मनाया जाता है। पूरे देश में रंग-बिरंगी रोशनी, आतिशबाजी, और समृद्धि की प्रतीक दीये देखने को मिलते हैं। लोग अपने घरों को रोशन करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, और मीठे व्यंजन बनाते हैं। लोकप्रिय व्यंजनों में मिठाई, जैसे लड्डू और गुलाब जामुन, शामिल हैं। मॉरीशस में दिवाली का जश्न, हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है। यह मॉरीशस की विविध संस्कृति का प्रमाण है। मॉरीशस में गिरमिटिया योजना 1834 से 1920 तक चली। इस दौरान लगभग 450,000 भारतीय मॉरीशस गए थे।
प्रकाश पर्व त्रिनिडाड-टोबैगो में
त्रिनिदाद और टोबैगो में भी गिरमिटिया योजना बड़े पैमाने पर लागू की गई थी। 1845 से 1917 तक लगभग 145,000 भारतीय इधर पहुंचे थे। यहां दिवाली एक बड़ा त्योहार है जो पूरे देश में मनाया जाता है। वासुदेव पांडे ने सन 2003 में राजधानी में इस लेखक को बताया था कि उनके देश में लोग दिवाली पर अपने घरों को दीयों,रंगोली और फूलों से सजाते हैं। खास तौर पर "दियारा" नामक एक रस्म निभाई जाती है जिसमें लोग दीये जलाते हैं और उन्हें पानी में प्रवाहित करते हैं। त्रिनिडाड में, दिवाली को पारंपरिक व्यंजनों, जैसे समोसा और हलवा के साथ मनाया जाता है। साथ ही, भारतवंशियों द्वारा आयोजित पार्टियों और संगीत कार्यक्रमों में भी खुशियाँ मनाई जाती हैं। राजधानी के वसंत विहार में स्थित त्रिनिडाड और टोबैगो हाई कमीशन की बिल्डिंग में हर बार तरह इस बार भी दिवाली परम्परागत और उत्साह से मनाई जाएगी।
कन्हाई-कालीचरण के देश में दिवाली
अब बात उस गुयाना की जहां से भारत के मूल के महान क्रिकेटर जैसे रोहन कन्हाई, एल्विन कालीचरण और शिवनारायण चंद्रपाल खेले। यहां दिवाली का त्योहार पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गुयाना में, दिवाली को 5 दिनों तक मनाया जाता है, जो "छोटी दिवाली" से शुरू होकर "बड़ी दिवाली" तक चलता है। गुयाना में, दिवाली का जश्न, रंग-बिरंगी रोशनी, आतिशबाजी, और पारंपरिक व्यंजनों के साथ मनाया जाता है। खास तौर पर "पराजय" नामक एक रस्म, जिसमें बुरी शक्तियों का प्रतीक एक पुतला जलाया जाता है। गयाना हाई कमिशन भी साउथ दिल्ली के वसंत विहार के एक बंगले से चलता है। इधर दिवाली पर हाई कमिशन को रोशन कर दिया जाता है।इधर जब भारतवंशी हाई कमिशनर होता है, तो दिवाली के आयोजन का स्तर काफी बड़ा हो जाता है। जब गैर- भारतवंशी होता है तब दिवाली सांकेतिक रूप से ही मना ली जाती है। गोरे गयाना में भी भारतवंशियों को गिरमिटिया समझौता के तहत गन्ने के खेतों में काम करवाने के लिए लेकर गए थे।
वहां के पहले राष्ट्रपति छेदी जगन भारतीय मूल के ही थे। भारत की मौजूदा पीढ़ी को संभव है कि छेदी जगन के बारे में पर्याप्त जानकारी ना हो। वे सन 1961 में सुदूर कैरिबियाई टापू देश गुयाना के प्रधानमंत्री बन गए थे।
सूरीनाम में दिवाली
सूरीनाम में, दिवाली के दिन लोग अपने घरों को दीयों और रंगोली से सजाते हैं। "दीया बाजार" में लोग दीये, मालाएँ, और अन्य सजावटी सामान खरीदते हैं। सूरीनाम में कुछ समय पहले भारतवंशी चंद्रिका प्रसाद संतोखी राष्ट्रपति चुने गये हैं। इनके साउथ दिल्ली स्थित हाई कमीशन में भी दिवाली और नया साल बड़े ही उत्साहपूर्वक तरीके से मनाया जाता रहा है। इधर कुछ भोजपुरी भाषी मुलाजिम हैं। दिवाली पर हाई कमिशन की इमारत को सजाया भी जाता है। सूरीनाम में 1873 से 1916 तक गिरमिटिया योजना लागू की गई थी। इस दौरान लगभग 34,000 भारतीय सूरीनाम में गए थे।
इस बीच, फीजी के सबसे बड़ा त्योहारों में से एक है दिवाली। यहां दीपक जलाना दिवाली का सबसे प्रमुख हिस्सा है। लोग अपने घरों, मंदिरों और सड़कों पर दीपक जलाते हैं। सुबह के समय लोग लक्ष्मी और गणेश की पूजा करते हैं। यह पूजा धन, समृद्धि, और सफलता की कामना करने के लिए होती है। यह त्यौहार मिठाई और विभिन्न प्रकार के पकवानों के लिए भी प्रसिद्ध है। लोग अपने घरों में पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं और उन्हें अपने पड़ोसियों और दोस्तों के साथ साझा करते हैं। दिवाली का त्यौहार परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का एक शानदार अवसर होता है। लोग एक दूसरे के घरों पर जाते हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं, और साथ में मस्ती करते हैं। फीजी सरकार दिवाली को सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित करती है।
फीजी में दिवाली का त्यौहार न केवल हिंदू समुदाय के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक खुशी और उत्साह का समय होता है।
ईस्ट अफ्रीकी देश युगांडा में कुछ साल पहले तक जी.एस.ढिल्लो नाम के एक सिख सज्जन हाई कमिश्नर थे। वे लगभग पांच वर्षों तक अपने पद पर बने रहे। उस दौरान युगांडा हाई कमिशन में दीपोत्सव और दिवाली डिनर आयोजित होते रहे। युगांडा और केन्या के उच्चायोगों में कुछ भारतीय मूल के राजनयिक हमेशा रहे हैं। ये अधिकतर पंजाबी या गुजराती मूल के होते हैं। सरदार ढिल्लो रिटायर होने के बाद भारत में ही बस गए थे। इन दोनों देशों में भारतीय 1890 से 1920 तक गए थे। इन्होंने वहां पर रेलवे लाइनों को बिछाने में बहुत अहम रोल अदा किया था।
तो कह सकते हैं कि अपने वतन से हजारों किलोमीटर दूर बसने के बाद भी भारतीय दिवाली को बड़े ही उत्साह और प्रेम के साथ मनाते हैं।