Somvati Amavasya 2024: कल है साल की आखिरी अमावस्या, जानिए इस पर्व का महत्व, शुभ मुहूर्त और मानने का कारण

सोमवती अमावस्या के दिन भगवान विष्णु के साथ साथ शिव भगवान की भी पूजा की जाएगी। इसे दर्श अमावस्या भी कहा जाता है।

Update: 2024-12-29 05:36 GMT

सनातन धर्म में हर महीने अमावस्या का पर्व मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार इस साल यानी 2024 की आखिरी अमावस्या सोमवार को पड़ रही है। ऐसे में इसे सोमवती अमावस्या कहेंगे जिसे शास्त्रों में दर्श अमावस्या भी कहा गया है। सोमवती अमावस्या के दिन भगवान विष्णु के साथ साथ शिव भगवान की भी पूजा की जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने के अलावा स्नान और दान करना बेहद फलदायी होता है। इस दिन महिलाएं तुलसी की पूजा भी करती हैं। आइए अब जानते हैं कि सोमवती अमावस्या कब है, क्यों मनाई जाती है जैसे प्रश्नों के जवाब...

कब है सोमवती अमावस्या?

पौष माह की अमावस्या तिथि 30 दिसंबर की सुबह 4 बजकर दो मिनट से शुरू हो जायेगी। जो कि अगले दिन 31 दिसंबर की सुबह 3 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। इस दिन स्नान करने का शुभ मुहूर्त 30 नवंबर की प्रातः 5.24 से लेकर 6.19 तक रहेगा। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद शुभ होता है।

सोमवती अमावस्या के शुभ मुहूर्त 

ब्रह्म मुहूर्त - 30 दिसंबर की सुबह 05 बजकर 24 मिनट से 06 बजकर 19 मिनट तक

विजय मुहूर्त - 30 दिसंबर के दिन दोपहर 02 बजकर 07 मिनट से दोपहर 02 बजकर 49 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त - 30 दिसंबर को शाम 05 बजकर 32 मिनट से शुरू होगा और 05 बजकर 59 मिनट पर खत्म हो जाएगा।

सोमवती अमावस्या का महत्व 

सोमवती अमावस्या का व्रत पूरे विधि विधान करने से घर में सुख शांति आती है। इस दिन पूजा पाठ करने से पितृ दोष और ग्रहों से संबंधित समस्या दूर हो जाती है। श्रीहरी और महादेव की कृपा से वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं और विवाह में आ रही अड़चन भी दूर होती है।

क्यों मनाई जाती है सोमवती अमावस्या?

पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण की पुत्री का विवाह नहीं हो रहा था जिससे वह परेशान होकर साधु के पास पहुंचा और उपाय पूछा। साधु ने कहा कि गांव के पास में एक धोबिन परिवार के साथ रहती है, वह धोबिन का सिंदूर अगर आपके कन्या को मिल जाए तो विवाह हो जाएगा। ऐसे में ब्राह्मण की कन्या रोज सुबह जाकर उस धोबिन का सारा काम बिना किसी को बताए कर देती थी। रोज सारा काम हो जाने से धोबिन भी चकित थी। एक दिन उसने कन्या को पकड़ लिया और इसका कारण पूछा, तब कन्या ने धोबिन को साधु की बताई पूरी बात बता दी।

धोबिन ने अपने मांग का सिंदूर कन्या को दे दिया लेकिन उसी समय उसके पति की मौत हो गई। इससे कन्या परेशान होकर पीपल के पेड़ के नीचे जाकर 108 ईट लेकर नदी में फेकने लगी, इससे धोबिन का पति जीवित हो गया और कुछ समय बाद कन्या का विवाह भी हो गया। तब से यह सोमवती अमावस्या मनाई जाने लगी।

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