देसी तौर-तरीकों से बयां कर रहे क्षय रोग से बचाव की बारीकियां... जागरूकता फैलाने में जुटे यूपी के TB चैम्पियन

स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाते आगरा के टीबी चैंपियन नरेंद्र सिंह सिकरवार

Update: 2024-08-26 04:25 GMT

जागरूकता फैलाने में जुटे TB चैम्पियन

(अतुल मोहन सिंह ) लखनऊ। संवाद के देसी अर्थात परंपरागत तरीकों से टीबी चैम्पियन भी देश को वर्ष-2025 तक टीबी मुक्त बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प को साकार करने के लिए जन-जन को तपेदिक से जागरूक कर रहे हैं। इन गैर-पारंपरिक तरीकों के इस्तेमाल से जागरूकता संदेश को सहजता के साथ आमजन के बीच पहुंचाया जा रहा है। समुदाय से भेदभाव और भ्रांतियों को दूर करने के लिए टीबी चैंपियन गीत गायन, कविता पाठ, चित्रकारी, पेंटिंग जैसे लोकप्रिय माध्यमों का भी सहारा ले रहे हैं। यह सहज और सरल तरीके लोगों को लुभा भी रहे हैं। साथ ही, खेल-खेल में ही बचाव के तरीके सिखा भी रहे हैं। ऐसे प्रयासों को और आगे बढ़ाने की भी जरूरत है।

नुक्कड़ और चौराहों पर गाकर लोगों को करते हैं जागरूक :

मिसाल के तौर पर बरेली के अशफाक को ही ले लीजिए। उन्हें टीबी हुई। बीमारी के बारे में कुछ नहीं पता था। समय से जांच और दवा का पूरा कोर्स करने से स्वस्थ हुए तो दूसरों को जागरूक करने का प्रण लिया। तरीका खोजा गाना गाकर समझाने का। बहेड़ी क्षेत्र के देवरनिया निवासी अशफाक (52) खुद गाना लिखते हैं। नुक्कड़ और चौराहों पर गाकर लोगों को जागरूक करते हैं। वह आधी आबादी के लिए खास तौर पर संवेदनशील हैं। टीबी के लक्षण वाली कोई युवती या महिला दिखती है तो उसे सामाजिक भेदभाव से बचाने का भरसक प्रयास करते हैं। अब तक 325 टीबी मरीजों की मदद कर चुके हैं। इनमें 60 से अधिक बेटियां एवं महिलाएं शामिल हैं।

टीबी मरीजों से भेदभाव न करें :

अशफाक की तरह आगरा की टीबी चैंपियन पूनम कुमारी भी कविता के माध्यम से लोगों के बीच जागरूकता फैलाती हैं। छीपीटोला की रहने वाली पूनम बताती हैं कि उनकी कविता टीबी मरीजों से भेदभाव न करने के लिए है। टीबी मरीजों को प्यार और साथ देने के लिए है। उनका सहारा बनने के लिए है। वह जिले की मलिन बस्तियों और घनी आबादी में जाकर 50 लोगों को एकत्र कर सामुदायिक बैठक करती हैं और कविता के माध्यम से जागरूक करती हैं। उनका कहना है कि उनकी कविता और दो पक्षीय बातचीत से इन बस्तियों के लोग भी रुचि लेते हैं और उनमें जानकारी भी आ रही है। कविता संवाद का सहज माध्यम है, सीधे दिल तक उतरती है।

पेंटिंग बनाकर लोगों को क्षय रोग के बारे में समझाते हैं :

आगरा के ही टीबी चैंपियन नरेंद्र सिंह सिकरवार पेंटिंग बनाकर लोगों को क्षय रोग के बारे में समझाते हैं। ताजगंज स्थित पुरानी मंडी में रहने वाले नरेंद्र का लक्ष्य कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं। वह चित्रों के माध्यम से लोगों को टीबी के लक्षण, फैलने के तरीके, रोग छिपाने के नुकसान और सरकारी अस्पतालों में मौजूद जांच एवं इलाज की व्यवस्था के बारे में विस्तार से समझाते हैं। सामुदायिक बैठकों के दौरान यू-आकार में प्रतिभागियों को बैठाया जाता है, जिससे पेंटिंग में बने चित्रों के साथ लोगों का आई कांटेक्ट बना रहे। नरेंद्र सिंह सिकरवार बताते हैं कि चित्रों के जरिए टीबी मरीजों के साथ ही उनके परिजनों तक बारीक जानकारियां भी आसानी से पहुंच रही हैं।

समाज के अंदर टीबी रोगियों के प्रति हुए भेदभाव :

पीलीभीत के प्रधान भगवान दास ग्राम समाज की बैठक को टीबी के लिए जागरूकता प्लेटफार्म के रूप में इस्तेमाल करते हैं। वह ग्रामीणों को टीबी के लक्षण, जांच, इलाज और बचाव के बारे में बताते हैं। मरौरी ब्लॉक के पिपरिया अगरू गांव के प्रधान भगवान दास को कोरोनाकाल में टीबी हुई थी। उस वक्त लोगों और रिश्तेदारों ने उनसे मुंह मोड़ लिया था। ठीक होने के बाद वह अपना फर्ज समझते हैं कि क्षेत्र के अन्य टीबी रोगियों को भी जागरूक करें। इसलिए, समाज के अंदर टीबी रोगियों के प्रति हुए भेदभाव को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। अब तक गांव के आठ मरीजों को जिला क्षय रोग केंद्र भेज चुके हैं। यह मरीज डॉट सेंटर जाने से डर रहे थे।

प्रदेश में इस समय कुल 2,355 टीबी चैम्पियन :

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबंधक (राष्ट्रीय कार्यक्रम) डॉ.लक्ष्मण सिंह ने ऐसी सभी पहल की तारीफ करते हुए कहा कि पूरा प्रदेश क्षय रोग को 2025 तक खत्म करने में जुटा है। विभाग होर्डिंग, वॉल पेंटिंग, अखबारों में आदि में विज्ञापन समेत अन्य माध्यमों से जन-जागरूकता फैला रहा है। टीबी चैंपियन की लोगों को जागरूक करने के लिए गैर-पारंपरिक तरीके इस्तेमाल करने की पहल शानदार है। उत्तर प्रदेश में अन्य प्रतिभावान टीबी चैंपियन को भी जागरूकता के लिए नए तरीके इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। प्रदेश में इस समय कुल 2,355 टीबी चैम्पियन हैं, जो अपने-अपने तरीके से लोगों को टीबी की चुनौतियों के प्रति जागरूक कर रहे हैं।

डॉट सेंटर दवा लेने जाता था तो वहां गांव की कई लड़कियां भी आती थीं। उनके साथ जिस तरह का भेदभाव होता था वह मन को कचोटता था। लोग कहते थे कि अब इनके साथ कौन शादी करेगा। बस मन ने ठान लिया कि जिस दिन ठीक हो जाऊंगा तो टीबी चैंपियन बनूंगा। लोगों को इस बीमारी के प्रति खासकर आधी आबादी को जागरूक करूंगा। - अशफाक, टीबी चैंपियन, बरेली

एमडीआर टीबी का मैं मरीज था। डॉक्टर ने मुझे बच्चों से भी मिलने-जुलने से मना किया था। मैं बच्चों को बहुत चाहता था, पर उन्हें साल भर तक गले नहीं लगा पाया। यह बात मुझे मन ही मन में घर कर गई। मैंने प्रण लिया कि ठीक होने पर टीबी चैंपियन बनूंगा। लोगों को जागरूक करूंगा ताकि किसी बाप के सामने यह स्थिति न आने पाए। - नरेंद्र सिंह सिकरवार, टीबी चैंपियन, आगरा

By - अतुल मोहन सिंह

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