प्रदेश की 30 से अधिक नदियों पर सूखने का खतरा: 3.8 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में बहने वालीं इन नदियों से हो रहा अत्यधिक जल दोहन और अवैध रेत उत्खनन…

प्रदेश के 63.24 प्रतिशत स्थानों पर गिरा भूमिगत जल स्तर;

Update: 2025-04-11 06:41 GMT
3.8 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में बहने वालीं इन नदियों से हो रहा अत्यधिक जल दोहन और अवैध रेत उत्खनन…
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धर्मेन्द्र त्रिवेदी, भोपाल: मध्यप्रदेश में 30 से अधिक नदियों पर सूखने का खतरा मंडरा रहा है। 3 लाख 8 हजार 245 वर्ग किमी क्षेत्र में बहने वालीं नर्मदा, बेतवा, सोन, ताप्ती, चंबल, सिंध, माही, पार्वती, धसान, केन, कूनो, क्षिप्रा जैसी नदियों से अत्यधिक जल दोहन और अवैध रेत उत्खनन के कारण यह खतरा पैदा हुआ है। जबकि, शहरी नदियां जमीन के लालच में अतिक्रमण का शिकार हो चुकी हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन से भी नदियों का प्रवाह लगातार घट रहा है। अभी अप्रैल माह में ही सूखने का संकट है तो आने वाले दिनों में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

प्रदेश की सात प्रमुख नदियों की 150 से अधिक सहायक नदियों की धारा फरवरी-मार्च में ही टूट गई थी। गुणवत्तायुक्त रेत की वजह से बेतवा, नर्मदा, सोन, सिंध, पार्वती और चंबल पर रेत माफिया का कब्जा है। कड़े नियम न होने और अवैध उत्खनन पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होने से रेत माफियाओं के हौंसले बुलंद हैं। उल्टे, प्रदेश के मंत्री खुद रेत माफिया को 'पेट माफिया’ की संज्ञा दे चुके हैं।

जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के 317 विकासखंडों में से 26 को जल-शोषण की दृष्टि से 'अत्यधिक’ श्रेणी में रखा गया है। 2020-21 की ग्राउंड वाटर ईयरबुक के मुताबिक, प्रदेश में 63.24 प्रतिशत स्थानों पर भूमिगत जल स्तर गिरा है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के चार प्राध्यापकों के संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि भूजल दोहन हर साल 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। कुल जल दोहन 62 प्रतिशत तक हो गया है। 2030 तक जलस्तर को 3.9 से 8.8 मीटर तक गिर सकता है।

वहीं, उज्जैन की क्षिप्रा नदी को शुद्ध करने के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी है लेकिन अभी भी सुधार उतना नहीं है, जितना होना चाहिए। इंदौर की कान्ह, ग्वालियर की स्वर्णरेखा और मुरार, जबलपुर की बंजर, होशंगाबाद की तवा, पलकमती, देनवा, रायसेन की तेंदुबी, बुंदी, सीहोर की ऊंटी, हथनी जैसी नदियां भी सूखने की कगार पर हैं।

नदियों की लंबाई और वर्तमान स्थिति

चंबल : महू-इंदौर से इटावा तक 843 किमी, मुरैना के पास धारा कमजोर।

पार्वती : आष्टा-सीहोर से पाली-श्योपुर तक 383 किमी, श्योपुर के पास धारा कम।

क्वारी : बेवलपुर-शिवपुरी से अंबाह-मुरैना तक 200 किमी, मुरैना में बहाव घटा।

सिंध : सिरोंज से जालौन तक 470 किमी, धारा टूटने लगी।

बावनथड़ी : सिवनी से निकली, दम तोड़ रही है।

तमस : मैहर और सतना से निकलकर सूखने की कगार पर।

कान्ह : इंदौर की, अब नाला बन गई, शिप्रा तक नहीं पहुंचता जल।

नर्मदा : अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक 1312 किमी, रेत माफिया के शिकंजे में।

ताप्ती : मुलताई से खंभात की खाड़ी तक 724 किमी, जल विद्युत परियोजनाओं पर निर्भर।

चंबल (चर्मावती) : जानापाव (महू) से यमुना संगम तक 965 किमी, संरक्षित लेकिन संकटग्रस्त।

बेतवा (वेत्रवती) : रायसेन से निकली, यूपी-एमपी में कुल 590 किमी बहती है।

माही : मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात में 580 किमी बहकर अरब सागर में मिलती है।

सोन : अमरकंटक से गंगा तक 724 किमी, अवैध उत्खनन की शिकार है।

स्वर्णरेखा व मुरार (ग्वालियर) : ऐतिहासिक नदियां, अब केवल कागजों में हैं। 

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