ग्वालियर। स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है। यह भी कहा जाता है कि धन संपदा चली गई, तो कुछ नहीं गया और स्वास्थ्य चला गया, तो सब कुछ लुट गया। यही कारण है कि तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर लोगो में जागरूकता बढ़ाने और बीमारियों से बचाव को लेकर उन्हें शिक्षित करने के उद्देश्य से हर साल सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस साल विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य स्वास्थ्य दिवस की थीम मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार तय की है। लेकिन हकीकत हो यह है कि शासन स्तर पर भले ही अस्पतालों में मरीजों को बेहतर उपचार उपलब्ध कराने के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है, उसके बाद भी जिम्मेदारों की अंदेखी के कारण मरीजों को उपचार से लेकर जांचों तक के लिए भटकना पड़ता है।
केन्द्र सरकार की आयुष्मान योजना की बात ही करें तो इसमें भी कई विसंगतियां हैं और उक्त योजना में सुधार की आवश्यकता भी है।
निजी अस्पताल संचालकों का कहना है कि सरकार इस योजना के तहत इलाज के लिए काफी कम पैसा दे रही है। दूसरा सरकार की तरफ से मिलने वाला पैसा समय पर नहीं मिलता। यही वजह है कि शहर के कई अस्पतालों में आयुष्मान के मरीजों का उपचार कराने से ही इंकार कर दिया जाता है। इतना ही नहीं कई निजी अस्पताल ऐसे भी हैं, जहां आयुष्मान कार्ड के मरीजों से पैसे भी वसूल कर लिए जाते हैं। इतना ही नहीं अस्पतालों में मरीजों की मदद के लिए आयुष्मान मित्र भी तैनात किए गए हैं, लेकिन फिर भी लोगों को मुफ्त उपचार की सुविधा नहीं मिल पा रही है। व्यवस्था ऐसी है कि मरीजों को दवा से लेकर जांच तक सब बाहर से करानी पड़ती है। नतीजा, बहुत से मरीज पैसों के अभाव में बीच में ही उपचार बंद कर वापस घर चले जाते हैं। जिसकी कई शिकायतें भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के पास भी पहुंचती हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ती करते हुए मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
65 अस्पतालों से है अनुबंध
आयुष्मान योजना के तहत जिले में करीब 65 अस्पतालों का अनुबंध है। लेकिन अधिकांश अस्पताल आयुष्मान योजना के नियमों का पालन ही नहीं करते। इतना ही नहीं कई अस्पताल तो मरीजों को भर्ती करने तक से इंकार कर देते हैं। जबकि नियम अनुसार अनुबंधित अस्पताल मरीज को भर्ती करने से इंकार नहीं कर सकते।
76.84 प्रतिशत ही लक्ष्य हो सका पूरा
शासन द्वारा जिले में आयुष्मान कार्ड की पात्रता रखने वाले 11 लाख 1 हजार 874 लोगों के आयुष्मान कार्ड बनाए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन अभी तक सिर्फ 8 लाख 46 हजार 774 लोगों के आयुष्मान कार्ड ही बन सके हैं। इस हिसाब से अधिकारी लक्ष्य का 76.84 प्रतिशत ही पूरा कर सके हैं।
महज 2 लाख 20 हजार 737 लोगों ने लिया लाभ
केन्द्र सरकार की आयुष्मान योजना जिले में वर्ष 2018 में लागू की गई थी। योजना लागू होने के बाद से आज दिन तक महज 2 लाख 20 हजार 737 लोगों ने ही उक्त योजना का लाभ उठाया है। इतना ही नहीं उक्त लोगों में से अधिकांश मरीजों का उपचार शासकीय अस्पतालों में हुआ है।
शासकीय अस्पतालों में भी होते हैं परेशान
जिन अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त न होने के कारण मरीजों को उपचार के लिए परेशान होना पड़ता था, वहां आज बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। उसके बाद भी मरीजों को सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता। सिविल अस्पताल हजीरा की ही बात करें तो यहां 100 पलंग का दो मंजिला अस्पताल बनाया गया है। उक्त अस्पताल में गम्भीर मरीजों के लिए आईसीयू भी तैयार किया गया है। साथ ही आईसीयू में करीब 12 वेन्टीलेटर भी उपलब्ध हैं। लेकिन आज आईसीयू बने दो साल से अधिक समय होने के बाद भी चालू नहीं किया गया। जिस कारण मरीजों को जयारोग्य के भरोसे ही रहना पड़ता है।
जिला अस्पताल को नहीं मिला 300 पलंग का दर्जा
मुरार जिला अस्पताल में मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 200 पलंग की जगह 300 का कर दिया गया है। उक्त 300 पलंग का उद्घाटन भी केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा सात माह पूर्व किया जा चुका है। लेकिन अस्पताल कागजों में अभी तक सिर्फ 200 पलंग का ही संचालित हो रहा है। ऐसे में बिस्तर संख्या अधिक हो जाने के कारण स्वास्थ्य सेवाएं सुचारू रूप से देने में अस्पताल प्रबंधन भी हाथ खड़े कर रहा है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि अस्पतालों में भले ही पलंग बढ़ा दिए गए हैं, लेकिन स्टाफ 200 पलंग के हिसाब से ही है। जिस कारण अस्पताल को पूरी तरह संचालित करने में परेशानी हो रही है।
जिले के जो अस्पताल आयुष्मान से अनुबंधित है, उन्हें समय पर भुगतान हो रहा है। सिविल अस्पताल का आईसीयू स्टाफ न मिलने के कारण चालू नहीं किया जा सकता। जिला अस्पताल में भी 300 पलंग के हिसाब से चिकित्सक व स्टाफ स्वीकृत करने के लिए पत्र लिखा गया है। जल्द ही स्टाफ की कमी दूर हो जाएगी।
डॉ. आर.के. राजोरिया
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी