ग्वालियर में नियमों को ताक पर रख अस्पतालों के आस-पास खोली अवैध क्लीनिकें
मामला मुरार जिला अस्पताल का, अधिकारियों के पास नहीं लगाम कसने की फुरसत
ग्वालियर। सरकारी चिकित्सक नियमों को ताक पर रखकर शासकीय अस्पतालों के आस-पास खुलेआम प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। हालात यह हैं कि अस्पतालों की जगह इन चिकित्सकों की क्लीनिकों पर मरीजों की भीड़ लगी रहती है। इतना ही नहीं मेडिकल स्टोरों व पैथोलॉजी पर बैठकर चिकित्सक मरीजों से चार से पांच सौ रुपये फीस लेकर उनका इलाज करते हैं। यह पूरा खेल खुलेआम स्वास्थ्य अधिकारियों के नाक के नीचे चल रहा है। उसके बाद भी जिम्मेदार संबंधित पर कार्रवाई करना तो दूर निरीक्षण करना भी जरूरी नहीं समझते।
मुरार जिला अस्पताल व इससे जुड़े जच्चा खाने की बात करें तो यहां के अधिकांश शासकीय चिकित्सकों द्वारा बिना पंजीयन कराए क्लीनिकों का संचालन किया जा रहा है। इतना ही नहीं अधिकांश चिकित्सक अस्पताल के सामने ही संचालित मेडिकल स्टोर या पैथोलॉजी पर बैठकर खुलेआम मरीजों को लूटने में लगे हुए हैं।
जिला अस्पताल के सामने संचालित शर्मा मेडिकल स्टोर की बात करें तो यहां आर्थोपेडिक डॉ. जितेन्द्र त्रिपाठी एवं सर्जरी के डॉ. प्रणय दीक्षित बिना पंजीयन के अवैध रूप से अपनी क्लीनिक संचालित कर रहे हैं। इसी तरह जैन अल्ट्रासाउण्ड सेन्टर के पास में ही हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. रवि वर्मा व सर्जरी के डॉ. नीरज बंसल अपनी क्लीनिक संचालित कर रहे हैं।
जबकि प्रदेश के नर्सिंग होम, हॉस्पिटल, क्लीनिक, पैथोलॉजी लैब को एक कानून के दायरे में लाने के लिए सरकार ने नर्सिंग होम एक्ट बनाया है। स्थिति यह है कि कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी रखने वाला स्वास्थ्य विभाग ही इस काम में लापरवाही बरत रहा है। लेकिन नियम विरुद्ध प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले इन चिकितसकों पर लगाम कसने की फुरसत स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को नहीं है।
जच्चा खाने के चिकित्सकों का भी यही हाल
जिला अस्पताल से जुड़े जच्चा खाने में पदस्थ अधिकांश महिला रोग विशेषज्ञों ने भी जच्चा खाने के सामने स्थित एक मल्टी में अपनी क्लीनिकें खोल रखी हैं। इसमें डॉ. गरिमा यादव की क्लीनिक बिना पंजीयन के ही संचालित हो रही है। इतना ही नहीं डॉ. गरिमा जिस क्लीनिक पर बैठ रही हैं, उस पर उनका नाम भी नहीं लिखा हुआ है। इतना ही नहीं एक महिला रोग विशेषज्ञ के पति का अल्ट्रासाउण्ड सेन्टर भी उनकी क्लीनिक के पास ही है। ऐसे में शासकीय अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों की अल्ट्रासाउण्ड की जांच निजी सेन्टर पर ही कराई जाती है। इसके अलावा अन्य चिकित्सकों की भी क्लीनिकें इसी मल्टी में संचालित हो रही हैं।
निजी अस्पताल में किया जाता है रैफर
बिना क्लीनिकों पर प्रेक्टिस करने के अलावा कुछ चिकित्सक तो खुलेआम निजी अस्पतालों में भी बैठ रहे हैं। जच्चा खाने में पदस्थ एक महिला रोग विशेषज्ञ तो पास में ही बने एक अस्पताल में मरीजों को देखती हैं। इतना ही नहीं कई मरीजों को वे जच्चा खाने की जगह अपनी अस्पताल में ही भर्ती कर लेती हैं।
पीडी समय में भी रहते हैं गायब
जिला अस्पताल व जच्चा खाने के अधिकांश चिकित्सक ओपीडी समय पर मौजूद नहीं रहते। इतना ही नहीं कई चिकित्सक को ओपीडी समय से पहले उठ जाते हैं और अपनी क्लीनिकों पर मरीजों को देखते हैं। जिसकी कई शिकायतें भी सिविल सर्जन से लेकर सीएमएचओ के पास पहुंच चुकी हैं, उसके बाद भी चिकित्सकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
पर्ची देकर बुलाते ही क्लीनिक पर
जिला अस्पताल व जच्चा खाने में पदस्थ कई चिकित्सक ऐसे हैं जो मरीजों को शासकीय अस्पताल से अपनी निजी क्लीनिक पर दिखाने के लिए बाध्य करते हैं। जिसकी पूर्व में शिकायतें भी सामने आ चुकी हैं, उसके बाद भी जिम्मेदार कार्रवाई करना तो दूर जांच कराना भी उचित नहीं सकते और शिकायतों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
अटैचमेंट वाले चिकित्सकों ने भी खोली क्लीनिकें
मुरार जिला अस्पताल व जच्चा खाने में पदस्थ चिकित्सकों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों से अटैचमेंट पर आए चिकित्सकों ने भी अपनी क्लीनिकें खोली हुई है। इसमें डबरा अस्पताल में पदस्थ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. गरिमा यादव व हड्डी रोग विशेष डॉ. रवि वर्मा प्रमुख हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर में पदस्थ मेडिसिन रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकेश तोमर द्वारा भी क्लीनिक संचालित की जा रही है। इससे स्पष्ट है कि उक्त चिकित्सकों ने सिर्फ अपनी क्लीनिकों पर मरीजों को लूटने के लिए भी ग्रामीण क्षेत्रों से शहर में अटैचमेंट कराया है।
शासन को हो रही राजस्व की हानी
शासन के नियम अनुसार अगर कोई चिकित्सक अपनी क्लीनिक का पंजीयन कराता है तो उसे करीब 3 हजार 100 रुपए का शुल्क चुकाना होता है। यह शुल्क हर तीन वर्ष में चुकाना पड़ता है। लेकिन बिना पंजीयन के संचालित क्लीनिकों के कारण राजस्व को भी हानी पहुंच रही है।
दूसरे मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलती दवाएं
चिकित्सकों द्वारा सिर्फ अवैध क्लीनिकों का संचालन ही नहीं किया जा रहा है। वल्कि जिस मेडिकल स्टोर पर चिकित्सक बैठते हैं, वहीं की सेटिंग वाली दवा लिखते हैं। मरीजों को किसी दूसरे मेडिकल स्टोर पर चिकित्सक की दवा नहीं मिल पाती है।
इनका कहना
चिकित्सकों को अपने निवास पर प्रेक्टिस करने की अनुमति है। अगर नियम विरूद्ध तरीके से क्लीनिकों का संचालन किया जा रहा है तो संबंधित पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. आर.के. राजोरिया
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी