ग्वालियर। रेडियोलाजी विभाग का नाम सुनते ही एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन इत्यादि जांच की छवि दिमाग में आने लगती है। लेकिन इलाज में सुपर स्पेशियलिटी के बढ़ते प्रभाव से रेडियोलाजी के चिकित्सकों की भूमिका अब सिर्फ जांच तक सीमित नहीं रही है। नसों में ब्लाकेज, शरीर के किसी हिस्से में नसों से आंतरिक रक्त स्राव व खून थक्का जैसी बीमारियों के साथ पहुंचने वाले मरीजों की जिंदगी बचाने में अब इंटरवेंशनल रेडियोलाजी की तकनीक अहम साबित होने लगी है। इसी के चलते अब जयारोग्य के रेडियोलॉजी विभाग में पहली बार कैथिटर गाइडेड थ्रोम्बोलायसिस इन डीप वीन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) तकनीक का तकनीक का उपयोग कर एक 18 वर्षीय बच्चे के पैर को ठीक किया गया।
दरअसल जयारोग्य चिकित्सालय के सर्जरी विभाग में एक 18 वर्षीय बच्चा पैर की नस में खून जम जाने की शिकायत लेकर पहुंचा था। बच्चे की स्थिति देखते हुए चिकित्सक ने उसे भर्ती कर उपचार शुरू किया। सर्जरी विभाग में पन्द्रह दिन भर्ती रहने के दौरान भी बच्चे को जब आराम नहीं मिला तो बच्चे को रेडियोलॉजी विभाग में जांच के लिए भेजा गया। रेडियोलॉजी में डॉ. राजेश बघेल ने बच्चे की जांच की तो पता चला कि पैर की नसे में थक्का जमा हुआ है, जिस कारण बच्चा चलने-फिरने में भी परेशान हो रहा था। डॉ. बघेल ने कैथिटर गाइडेड थ्रोम्बोलायसिस इन डीप वीन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) तकनीक का उपयोग कर नस में जमे थक्के को ठीक करने का निर्णय लिया। डॉ. बघेल बताते हैं कि डीप वेन थ्रोम्बोसिस के माध्यम से बच्चे को पांच दिन तक नसे में ट्यूब डाल कर दवा डाली गई। जिसके बाद बच्चा की नशे का धक्का खत्म हो गया और अब वह स्वस्थ्य है। उन्होंने बताया कि यह पहली बार है जब जयारोग्य में इस तरह डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) तकनीक का उपयोग कर नसे में जमे धक्के को ठीक किया गया है।
निजी अस्पताल में खर्च होते हैं 50 हजार तक
डॉ. बघेल का कहना है कि कैथिटर गाइडेड थ्रोम्बोलायसिस इन डीप वीन थ्रोम्बोसिस तकनीक का उपयोग कर दवा डालकर खून के थक्के को खत्म करने की प्रक्रिया में निजी अस्पताल में मरीज को 50 हजार तक खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन जयारोग्य के रेडियोलॉजी में उक्त तकनीक का उपयोग कर बच्चे का उपचार आयुष्मान योजना के तहत पूरी तरह नि:शुल्क किया गया है।