तीसरा विश्व युद्ध होने से बचाना है तो जल संरक्षण की दिशा में समाज को आगे बढ़ना होगा : पद्मश्री उमाशंकर पांडे
'खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़' का मंत्र पूरे देश को देने वाले पद्मश्री उमाशंकर पांडे स्वदेश से बोले तीसरा विश्व युद्ध होने से बचाना है तो जल संरक्षण की दिशा में समाज को आगे बढ़ना होगा
ग्वालियर। तीसरा विश्व युद्ध होने से बचाना है तो जल संरक्षण की दिशा में समाज को आगे बढ़ना होगा। पानी बचाने की मुहिम जल आंदोलन को जन आंदोलन बनाना चाहिए। पानी की जरूरत सबको है। सब लोगों को इसके बारे में विचार करने की जरुरत है। ये बातें जल संरक्षण के लिए खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ का मंत्र पूरे देश को देने वाले पद्मश्री उमा शंकर पांडे ने कहीं। वे दो दिवसीय राष्ट्रीय जल सम्मेलन में सम्मिलित होने ग्वालियर आए हुए है।
स्वदेश से चर्चा में बताया -
मेरी मां मेरी गुरु है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पानी बचाने का विचार दिया था। उनके विचार पर संघर्ष करना शुरू किया, तो भारत रत्न नानाजी देशमुख और आचार्य विनोबा भावे से प्रेरणा लेते हुए 20 साल की उम्र से यह काम कर रहा हूँ। साथ ही कहा की वह संघर्ष के शुरुआती दिनों में साइकिल में माइक लगाकर पानी बचाने का संदेश देते थे। पानी कैसे बचाया जाए, इसका सुझाव भी किसानों को देते थे । सबसे पहले जखनी गांव के किसानों को साथ मिला। जखनी गांव में प्रयास रंग लाया, तो प्रशासन के अधिकारियों ने साथ दिया।
आगे चर्चा में बताते हैं की देश भर के लाखों किसान आज मेरे संपर्क में है। मेरे प्रयासों का सबसे ज्यादा असर छत्तीसगढ़ में दिखा है। खेतों में पानी बचाने के लिए छत्तीसगढ़ के किसानों ने मेडों के निर्माण पर बड़ा काम किया है। इसके लिए छत्तीसगढ़ के किसानों को बधाई। सरकार के साथ आम लोगों को भी पानी बचाने के बारे में सोचना चाहिए। बारिश का पानी जहां-जहां गिर रहा है। उन सभी जगहों पर उसे संरक्षित करने का काम करना चाहिए।
वह कहते हैं कि मेरे घर में आज भी बिजली नहीं है, पंखा नहीं है, कूलर, फ्रिज, टीवी कुछ भी नहीं है। ये इसलिए क्योंकि मेरी मां ने कहा था, जब तक गांव के अंतिम व्यक्ति का घर रोशन नहीं हो जाता, हमारा घर अंधेरे में रहेगा। जिस गांव में मेरा जन्म हुआ, वहां बिजली, पानी, सड़क, स्कूल नहीं था । मैंने नेहरू युवा केंद्र से अपना अध्ययन शुरू किया। वहीं सीखते- सीखते पानी के परोपकार को जाना। मेरा नारा है, खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़। पूरे देश में मेड़ बंदी विधि मेरे नाम से जानी जाती है, लेकिन ये विधि मेरी नहीं पुरखों की है। पुरखों के जल जोड़ने के जो बेजोड़ तरीके थे, वो आज भी कामयाब है।
समाज को बचाना है पानी -
पानी बचाना सरकार के बस काम नहीं, समाज का काम है। मेरे घर में कितना पानी यूज हो रहा है, वो सरकार, नहीं जानती । ये हमको पता है और इसलिए ही पानी हमको बचाना है। मैं चाहता हूं कि प्राइमरी में पानी का पाठ्यक्रम शामिल किया जाए। अब तक देशभर के दस हजार गांव में गया हूं। मेरा मानना है कि बारिश का पानी बाहर नहीं जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को 2 लाख 58 हजार प्रधानों को पत्र लिखकर मेरे मॉडल के बारे में बताया और मेड़बंदी परंपरा से पानी रोकने की अपील की।
वर्षा 120 दिन से घटकर 41 दिन की हो गई है-
उमाशंकर पांडेय ने कहा कि अब नदियां सूख रही हैं। वर्षा औसतन 120 दिन से घटकर 41 दिन की हो गई है। पानी हमारे पास दो पसेंट है, उसमें से एक पसेंट पानी प्रदूषित हो गया है। सृष्टि का सृजन पानी से हुआ है । वृद्धि, समृद्धि और प्रसिद्धि का रास्ता पानी से होकर जाता है। हमारे देवता भी जल में समाए हुए हैं। दुनिया का कोई भी वैज्ञानिक बादल नहीं ला सकता, ना बना सकता, न फाड़ सकता, लेकिन ये विधियां हमारे पुरखों के पास थीं।
जल संरक्षण पर कई पुरस्कार-
पद्मश्री उमाशंकर पांडेय उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के जखनी गांव के निवासी हैं। उन्होंने सामुदायिक सहभागिता से उन्होंने जल संरक्षण की दिशा में अनेक कार्य किए। जखनी को देश का पहला जलग्राम बनाने वाले पांडे को कई पुरस्कार मिले हैं। वे जलयोद्धा नाम से भी जाने जाते हैं। उमाशंकर कहते हैं, जब तक स्वास्थ्य ठीक है, तब तक वर्षा जल संरक्षण की दिशा में काम करते रहेंगे। पौधरोपण करके भूजल संरक्षण का प्रयास जारी रहेगा।