ग्वालियर में गिरता भूजल स्तर चिंता का विषय, सूखती जा रही है धरती मां की कोख

ग्वालियर के भू जल स्तर घटता जा रहा है, तिघरा में जलस्तर घटा, बारिश नहीं हुई तो सप्लाई में होगी कटौती|

Update: 2023-07-27 08:52 GMT

ग्वालियर,न.सं.। विकास के नाम पर कंक्रीट में बदलता जा रहा शहर और तेजी से गिरता भूजल स्तर अब चिंता का सबब बनता जा रहा है। शहर के नदी नालों और अन्य भूजल स्रोतों की बेकद्री और बोरिंग खनन कर जमीन से खींचे जा रहे पानी के कारण अब धरती की कोख सूखने के कारण शहर में भी पेयजल संकट गहराता जा रहा है। हालत यह है कि दो दशक पहले महानगर के जिन इलाकों में बोरिंग करने पर 100 फीट की गहराई पर पानी निकल आता था, आज हालत यह है कि 400 फीट की बोरिंग करने के बाद भी पानी की बूंद नहीं निकल रही है। यह एक चिंता का विषय है। शहर के बीचो-बीच होकर गुजरने वाला स्वर्णरेखा नाले का कंक्रीटीकरण किए जाने के बाद से तो भूजल स्तर और नीचे चला गया है। इसके अलावा शहर के मध्य बने तालाबों को भूमाफिया निगल गए हैं। वही पुरानी बावड़ी और कुओं का रखरखाव न होने के कारण उनके कंठ सूखते जा रहे हैं।

उधर शहर की प्यास बुझाने वाला तिघरा बांध भी अब खुद प्यासा नजर आ रहा है। हालत यह है कि बांध का जलस्तर तेजी से घट रहा है। वहीं जल संसाधन विभाग अच्छी बारिश का इंतजार कर रहा है। बांध का वर्तमान में जलस्तर 728 पर जा पहुंचा है।

सूत्रों का कहना है कि यदि अपर ककैटो व ककैटो बांध फुल नहीं हुए तो जलसंकट खड़ा हो जाएगा। क्योंकि शहरवासियों की प्यास बुझाने के लिए निगम के पास कोई अन्य स्रोत नहीं हैं।

वर्ष 2018-19 में इस तारीख को खुले गेट-

तिघरा बांध के भर जाने के बाद सितंबर माह में तिघरा बांध के 9 बार गेट खोले गए थे इसमें वर्ष 2018 में 1 सितंबर को तीन गेट खोले गए। 3 सितंबर को दो बार 3-3 गेट खोले गए। इसी प्रकार 6 सितंबर को तीन गेट खोले गए, जबकि वर्ष 2019 में 22 सितंबर को 3 गेट खोले गए इसी प्रकार 23 सितंबर को 2 बार 3-3 गेट खोले गए। इसी प्रकार 25 सितंबर को 3 गेट व 29 सितंबर को 3 गेट खोले गए थे। लेकिन उसके बाद भी बांध लबालब नहीं हो पाया।

सन कितनी बार खुले गेट एमसीएफटी-

-2008 4 बार 110

-2010 1 बार 20

-2011 6 बार 140

-2012 14 बार 300

-2013 4 बार 100

-2018 5 बार 80

-2019 4 बार 70

-2022 5 बार --

वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नहीं-

पानी के अंधाधुंध दोहन के कारण भू-जल स्तर और गिरता जा रहा है। वर्षा के जल को संरक्षित करने के लिए शहर में वाटर हार्वेस्टिंग जैसी कोई तैयारी फिलहाल नहीं है। शहर में एक लाख से अधिक मकान व बहुमंजिला भवन हैं, लेकिन इनमें से पांच फीसदी में भी रूफ वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नहीं की गई है।जिला प्रशासन, नगर निगम, जिला पंचायत, लोक निर्माण विभाग सहित अन्य सभी सरकारी महकमों के बड़े-बड़े भवनों पर वाटर हार्वेस्टिंग की योजना कागजों में तैयार हो चुकी है लेकिन उसका क्रियान्वयन अभी पूरी तरह नहीं हो पाया है।

बारिश का साफ पानी बहेगा नालियों में-

वाटर हार्वेस्टिंग के अभाव में बरसात का साफ पानी शहर के गंदे नाले-नालियों में बहकर बेकार हो जाएगा। ग्वालियर की औसत बरसात 750 मिलीमीटर है। यदि इस बरसात का पानी बांध को भरने के अलावा भू-जल भरण में उपयोग हो तो इस पानी से शहर की पांच साल तक प्यास बुझाई जा सकती है। शहर में पक्की सडक़ें, पक्के मकान व अन्य पक्के निर्माण होने के कारण बरसात का पानी जमीन के अंदर नहीं पहुंच पाता है। शहर में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए बरसात का पानी जमीन के अंदर पहुंचाया जा सकता है।

सिटी सेंटर, मुरार, थाटीपुर की बोरिंग सूखी-

-दर्पण कॉलोनी, सचिन तेंदुलकर, बलबंत नगर, अर्जुन नगर मार्ग के पास लगी बोरिंग अब दम तोड़ती नजर आ रही है। इतना ही नहीं यहां के कुछ लोग बोरिंग की चाबी भी अपने पास रखते है और अपनी सुविधा के अनुसार बंद-चालू करते हैं।

-होटल सिल्वर ओक के सामने अनुपम नगर की बोरिंग भी कम पानी फैंक रही है।

-मुरार, मीरा नगर, कोतवाली संतर, नदी पार टाल आदि में भी पानी की कमी है।



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