विंध्याचल की उतंग पहाड़ियों में बरसते मेघ और कमल की मानिंद

Update: 2021-07-30 09:26 GMT

नरसिंहगढ़/श्याम चोरसिया। विंध्याचल की उतंग पहाड़ियों को बरसते मेघों ने कमल की मानिंद खिला दिया। जेठ आषाढ़ में तंदूर हो चुके पहाड़ो को इंद्र ने शीतल ओर तृप्त कर दिया।और सैलानी खुद को पहाड़ो की सैर करने से रोक नही पाए। बरसते पानी को धत्ता बता चल दिये, सपरिवार,मित्रों के संग संगीत सुनाते झरनों की धुन पर नाचने। नहाने। भींगने। नरसिंहगढ़ को यू ही मालवा ए कश्मीर के खिताब से नही नवाजा गया। कुछ तो खास है। तभी लोग चुम्बुक की तरह खिंचे चले आते है।

एक नही बल्कि दर्जनो झरने। बहते बरसाती नाले। जिनमे लीग घण्टो नहाते रहते। बच्चों का आनंद तो मानो सारी सीमाएं लांघ जाता। नही सुनते पालकों की। तन मन जो तरंगित हो उठता।प्रतिदिन सेकड़ो सैलानी कोदू पानी, आदि दर्जनो देव स्थानों के दर्शन करते है। सबसे बड़ी बात। सैलानी घर की बजाय झरनों के असपास ही भोजन करते है। कुंडों का स्वस्थ6 वर्धक जल पीते है। बोतल या केन में भर कर घर ले जाते है। जल निरोगी काया के लिए अमृत तुल्य सा है।

सावन से लेकर अगहन तक तो कुंड तृप्त करते रहते है। भादो तक झरने किलकारियां मार रिझाते रहेंगे। प्रकृति की गोद मे आते ही उम्र का बंधन विन्धयाचल की पहाड़ियां हर कर बूढ़े को भी बच्चा बनने के लिए मजबूर कर देती है।


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