न्यायालय की हर ईंट पैसा मांगती है: जज की नियुक्ति के लिए इंडियन जूडिशल सर्विस लागू करने की जरूरत – जस्टिस एस एन ढींगरा

Update: 2025-03-29 06:40 GMT
जज की नियुक्ति के लिए इंडियन जूडिशल सर्विस लागू करने की जरूरत – जस्टिस एस एन ढींगरा
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अनीता चौधरी, नई दिल्‍ली: दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा का तबादला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के साथ ही अब आधिकारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट हो गया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को सख्त निर्देश दिए हैं कि उन्हे किसी भी जूडिशल कारवाई की जिम्मेदारी अभी नहीं सौंपी जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को कार्यभार संभालने के बाद फिलहाल कोई न्यायिक कार्य न सौंपने को कहा है।‘

वहीं केंद्र सरकार ने 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रपति जी के हताक्षर के साथ जस्टिस यशवंत वर्मा को दिल्ली से इलाहाबाद हाई कोर्ट वापस भेजने की अधिसूचना भी जारी कर दी है।

केंद्र की ओर से जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर का यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन सहित देश के 22 बार एसोसियशन के विरोध के बावजूद आया है। बता दें कि जस्टिस वर्मा अपने आधिकारिक परिसर से कैश मिलने के आरोप पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की ओर से बनाई गई तीन जजों की कमिटी की जांच का सामना कर रहे हैं।

ये जांच न्यायमूर्ति वर्मा के घर से होली की रात आग लगने की घटना के बाद सामने आया था। यह जांच भी कैश मिलने के मामले को लेकर हो रही है । केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी.डी. सिंह को भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया है।

इस पूरे मामले पर स्वदेश ने देश के पूर्व जज जस्टिस एस. एन ढींगरा से न्यायपालिका पर उठ रहे सवालों को लेकर विशेष बात-चीत की ।

न्याय व्यवस्था की कटु सच्चाई पर पूर्व जस्टिस ढींगरा की खुली बातचीत के कुछ अंश :-

देश की न्याय व्यवस्था पर हमारे हर सवाल पर पूर्व जस्टिस ढींगरा के जवाब देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहे थे और उसकी खोखली जड़ों की कटु सच्चाई बयान कर रहे थे । जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से नोटों की बोरियों की बरामदगी कोई छतों मोती घटना नहीं थी बल्कि ये आघात था न्यायपालिका पर इस देश की आम जनमानस के साथ हुए विश्वासघात का । आज हालत ये हैं कि सुप्रीम कोर्ट की इस मामले को लेकर थुल मूल रवैया और एफआईआर दर्ज कर आपराधिक जांच और बर्खास्त करने के बजाए जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला, सब कुछ सवालों के घेरे में है । हालांकि इलाहाबाद बार काउंसिल ने इसका तीखा विरोध किया, और देश भर के 22 बार काउंसिल सुप्रीम कोर्ट इसके विरोध में अपनी फ़रियाद लेकर पहुंचे मगर सवाल ये भी है कि अगर कोई जज कोई रिश्वत लेता है तो क्या ये किसी वकील की मिलीभगत के बिना संभव है ?

इस सवाल का जवाब देते हुए पूर्व जस्टिस ढींगरा ने बेबाकी से कहा, जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला जब सामने आया तो नये व्यवस्था में भ्रष्टाचार पर चर्चा हो रही है मगर सच्चाई ये है कि भ्रष्टाचार न्यायपालिका के कार्यशैली का का अभिन्न यंग बन चुका है । “साफ कहूं तो आज जनता का न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है। कागजों में भले लिखा हो कि लोग न्याय व्यवस्था पर विश्वास करते हैं । मगर कोर्ट , वकील और जज ये आम जनमानस के लिए मजबूरी हैं आखिर अपनी बात लेकर वो जाएं तो कहाँ जाएं किसी भी मामले में आम लोगों के पास दो ही विकल्प है या तो वो खुद ही फैसला कर लें जो कि समाज के लिए घटक है गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी या वो कानून का रास्ता अपनाते हुए न्यायालय जाएँ । इक्का दुक्का छोड़ दें तो भारत की शांति प्रिय जनता कानून का रास्ता ही अपनाती है। कोर्ट में अक्सर केसों की बढ़ती संख्या को गिनाया जाता है, लेकिन हकीकत इससे उलट है उन्होंने कहा कि जनता के पास विकल्प ही क्या है? “अगर लोग कोर्ट में केस न करें, तो या तो खुद लड़ें या चुप रहें। अपराध तो कोई करेगा नहीं, इसलिए मजबूरी में कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।”

भ्रष्टाचार की जड़ें: नई नहीं, पुरानी हैं

पूर्व जस्टिस ढींगरा ने जोर देकर कहा कि न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। “यह बहुत पुराना है, लेकिन इसे खत्म करने की कोई कोशिश नहीं हुई।” उन्होंने संविधान सभा के दिनों की ओर इशारा किया, जब आजादी के बाद देश को नई शुरुआत का मौका मिला था। “उस वक्त संविधान सभा में कई लोगों ने कहा कि हमारी न्याय व्यवस्था गरीबों के लिए नहीं है, यह महंगी और पहुंच से बाहर है। लेकिन क्या हुआ? एक ऐसी व्यवस्था बनाने की बात तो दूर, इस पर चर्चा तक नहीं हुई।” ढींगरा ने 1947 की आजादी के बाद संविधान बनाने कि परकीय के संविधान सभा का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान सभा में ज्यादातर वकील थे—के एल मुंशी ,अंबेडकर से लेकर नेहरू और तमाम संविधान सभा समिति के लोग हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट या प्रिवी काउंसिल में प्रैक्टिस करने वाले लोग थे।

“इनका आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं था। इसीलिए भारत के परिवेश के अनुसार आम गरीबों लोगों के लिए कोई नई व्यवस्था बनाने की जरूरत ही नहीं इन्होंने समझी।”यहाँ तक कि संविधान सभा में संविधान पर कोई चर्चा नहीं हुई । वही ब्रिटिश काल के संवधिनिक और कानूनी व्यवस्था को अपनाया गया और कुछ इधर ईंट और उधर की ईंट लेकर अंग्रेजों और दूसरे देशों के कानून के आधार पर भानुमती के पिटारा के जैसा भारत का कानून बना दिया गया ।

जस्टिस ढींगरा ने एक कड़वा सच उजागर करते हुए कहा कि “हमने अपनी कोई न्याय व्यवस्था बनाई ही नहीं। अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था को जस का तस आज तक ढोया जा रहा है।” “गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 का 75 फीसदी हिस्सा हमने उधार लिया है । उन्होंने कहा कि संविधान सभा के नोटफकैशन और बहस जब आप पढ़ेंगे तो अंबेडकर ने खुद कहा था कि हमने संविधान बनाया नहीं, जो था उसे मोड़-तोड़ कर अपना लिया हैं।”

हमने पूछा कि जब उधार के संविधान से देश चल रहा है, तो क्या इसमें यह प्रावधान नहीं कि जस्टिस के घर नोटों की बोरियां मिलें तो कारवाई हो? बात बात में स्वतः संज्ञान लेनी वाला सुप्रीम कोर्ट इस मामले ढुल-मूल रवैया अपनाते हुए चुप क्यों है ?” जस्टिस ढींगरा ने जवाब में बार काउंसिल को भी कठघरे में खड़ा किया और कहा कि दरअसल “बार काउंसिल की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं। जज वकीलों के जरिए ही रिश्वत लेते हैं, क्योंकि आम आदमी से सीधे पैसे लेना जोखिम भरा है। वकील और जज का रिश्ता ऐसा है कि मामला दब जाता है। इस हमाम में सबके हाथ गंदे हैं । जस्टिस ढींगरा ने न्यायपालिका की सच्चाई पर कहा कि, “न्यायालय की एक-एक ईंट पैसा मांगती है। निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं।” उन्होंने दावा किया कि इसे खत्म करना आसान नहीं, क्योंकि संसद भी इस सिस्टम को बदल नहीं पा रही है।

इस सिस्टम को बदलने का अधिकार संसद के पास है मगर शायद अभी तक मंशा नहीं हो पाया है। जस्टिस ढींगरा ने कहा, “पहले नोटों की बोरियां नेताओं के घर में मिलती थीं, अब जजों के घर में मिल रही हैं और सभी एक दूसरे के पूरक हैं। पुलिस को FIR दर्ज करनी चाहिए थी, लेकिन दबाव में एस कुछ नहीं हुआ।”क्योंकि आए दिन जज साहब पुलिस को डराए रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट को भी चाहिए था कि पुलिस को एफआईआर डर करने के निर्देश दे और आपराधिक धाराओं के अंतर्गत जांच के आदेश दे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तबादला कर के अपना पीछा भी छुड़ाया और पल भी झाड लिया।

बातचीत में जस्टिस ढींगरा ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया, इलाहाबाद कोर्ट के उस फैसले पर जिसमें कहा गया कि “पीड़िता के स्तनों को छूना या कपड़े उतारने की कोशिश दुष्कर्म नहीं, सिर्फ यौन उत्पीड़न है इस पर जस्टिस एस एन ढींगरा ने कहा कि , “हमारे यहां अनपढ़ जजों की भर्ती हो गई है। इन्हें कानून की ABC तक नहीं पता। यह ‘अटेंप्ट टू रेप’ का मामला था, लेकिन या तो जज को जानकारी नहीं, या वह पूरी तरह वो बेईमान थे ।” जजों की नयुक्ति को लेकर जस्टिस ढींगरा ने कहा, “इंडियन ज्यूडिशियल सर्विस जैसी व्यवस्था का प्रावधान संविधान में है, पर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, वकील और राज्य सरकारें इसके विरोध में हैं। सब अपने पसंद के लोग चाहते हैं।” उन्होंने कहा कि आज न्याय का स्तर गिरता जा रहा है।“ सभी प्रोफेशनल क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं आँख का डॉक्टर हार्ट नहीं देख सकता लेकिन कोर्ट में हर जज हर तरह के केस सुनता है, जबकि यहाँ भी विशेषज्ञता की जरूरत।

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