वेबडेस्क। अक्षय वह है जिसका कभी क्षय नहीं होता, जो कभी भी नष्ट नहीं होता। संसार में ऐसी सिर्फ तीन चीजें हैं जिनका क्षय नहीं होता
- काल
- कर्म (यज्ञ)
- आत्मा (ब्रह्म)
श्रीमद्भागवत्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए कहा हैं -
अहमेवाक्षयः कालो धाताऽहं विश्वतोमुखः।।
- श्रीमद्भागवत्गीता ।। १०.३३।।
अक्षयकाल (जिसका कभी क्षय नहीं होता) अर्थात् काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला धाता भी मैं हूँ। कई (अनन्त) कालों का संग्रह ही महाकाल है। इसी का संक्षिप्त और समय-सीमा में संकुचित रूप इतिहास है। इतिहास अपने आप में घटित घटनाओं अर्थात् किये गये कर्म को ही तो दर्शाता है। इस तरह व्यक्ति के कर्म भी अक्षय हैं। कर्म के तीन अवयव हैं - भाव, अक्षर के रूप में ध्वनि (और अक्षरों का समूह शब्द) एवं क्रिया। इसे ही मन-वचन-कर्म कहा गया है। ईश्वर ने मनुष्य को कर्म का चयन और कर्म करने की स्वतंत्रता दी है, किन्तु सकामी को कर्मानुसार फल की निश्चितता उसे कर्मफल भोगने की बाध्यता है। यही उसका प्रारब्ध है जिसे भोगते हुए वह पुन: (पुनर्जन्म के रूप में) अपने कर्मों को सुधारने का प्रयत्न कर सकता है जिसे पुरुषार्थ कहा गया है। सिर्फ ईश्वरार्पित और नि:ष्काम कर्म का ही अच्छा अथवा बुरा फल नहीं भोगना होता, क्योंकि वे वास्तव में कर्म हैं ही नहीं। इस पूरी प्रक्रिया में जो सदैव स्थिर स्थित रहता है वह व्यक्ति का आत्मतत्व (ब्रह्म) है। जिसका संसार में अस्तित्व हमें सृष्टि के रूप में भासता है। यही अपने रूप बदल-बदल कर हमारे अस्तित्व की स्वयं एवं जगत को अनुभूति कराता रहता है।
सृष्टि में सात लोगों को चिरंजीवी माना गया है -
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषण।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥
अर्थात् : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं।
यह सातों लोग प्रतीक हैं -
- अश्वत्थामा, अन्याय का साथ और प्रतिशोध
- बलि, सर्वश्व दान
- व्यास, समाज को मार्गदर्शन करना
- हनुमान, ईश्वर की इच्छा को ही सब कुछ मानना, उसी अनुसार कार्य करना
- विभीषण, भग्वत्कृपा से प्राप्त ऐश्वर्य को भोगना
- कृपाचार्य, ऋषि कुल में जन्म लेने और कुलगुरु होने के बाद भी अनीति का साथ देना
- परशुराम, अन्यायी और अत्याचारियों का सतत उन्मूलन करना
इन सातों के कार्य युग-युगान्तरों तक बने रहते हैं और स्मरण किये जाते हैं। इनमें सत, रज, तम तीनों श्रेणियों से लोगों का चयन किया गया है।सतोगुणी को शान्ति और आनन्द, रजोगुणी को सुख और प्रसन्नता तथा तमोगुणी को अशान्ति, भटकाव और उद्विग्नता ही हाथ लगती है। प्रतिशोध, दान, सामाजिक कार्य, ईश्वर की भक्ति, ईश्वर को अर्पित भोग, अपयश और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष कभी मरते नहीं हैं। ये सातों चिरंजीवी हैं, कभी धूमिल नहीं होते।इन्हीं में से एक भगवान परशुराम का आज प्राकट्य दिवस है। आप सभी को अक्षय-तृतीया की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।