किसी के लिए वह नीब करौरी तो किसी के लिए तलैया बाबा हैं। किसी के लिए वह नीम करौली, किसी के लिए बाबा लक्ष्मण दास तो किसी के लिए महाराज जी हैं। अचरज कि सारे भक्त उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते हैं। अति सामान्य वेशभूषा किंतु तेजोमय मुख मंडल, तिस पर छाई मनहर मुस्कान। मोटा कंबल, साधु सरीखा रहन-सहन। ऐसे थे बाबा नीब करौरी।
लोगों ने बाबा जी की अपार शक्तियों का अनुभव किया। उनके अनुसार, बाबा जी लिफाफा खोले बिना ही बता देते थे कि उसके अंदर क्या है। वह दूर बैठे-बैठे भक्त की विपदा टाल देते, लोगों को कष्ट से मुक्ति दिला देते। उनके एक ही समय में कई स्थानों पर उपस्थित होने की बात भी लोग करते हैं।
बाबा की व्यापक-विस्तृत क्षमता की कथाओं, दृष्टांतों का जो मूल तत्व है, वह उनकी जन-जन के प्रति करुणा, दया, कृपा, भक्त वत्सलता, धर्म एवं मर्यादा की रक्षा आदि की भावनाओं का ही प्रतिबिंब है। महाराज जी हर भक्त, हर शरणागत के साथ रहे। आश्चर्य की बात है कि देश और विश्व के कोने-कोने से उनके भक्त बिना किसी प्रचार के केवल उनकी प्रेरणा से आते गए। बाबा जी ने जिस एक परिवार का निर्माण किया, आज उसमें सभी वर्ग तथा धर्म के लोग शामिल हैं। बाबा जी कहते थे कि संत दूसरों की भलाई के लिए दुख सहते हैं, जबकि दुर्जन दूसरों को दुख देने के लिए स्वयं कष्ट सहते हैं। संत जन भोजपत्र के समान हैं, जो दूसरों के कल्याण के लिए नित्य विपत्ति सहते हैं और दुष्टजन परायी संपत्ति नाश करने के लिए स्वयं नष्ट हो जाते हैं, जैसे ओले खेतों को नाश करके स्वयं नष्ट हो जाते हैं।
महाराज जी की कृपा दु:ख के सागर में डूबे हुए लोगों पर या धर्म से भटके हुए लोगों पर भी होती थी। जब कोई कहता कि वह व्यक्ति तो ऐसा है तो महाराज जी कहते कि क्या करें, हमें दया आ जाती है। महाराज जी की दृष्टि में ना कोई अमीर था ना ही गरीब, ना कोई धर्म विशेष का अनुयायी। उनकी दृष्टि में सृष्टि की रचना करने वाले की सब संतान हैं। यही वजह थी कि महाराज जी सब पर दया, करुणा की समान रूप से वर्षा करते थे, बिना पात्र- कुपात्र, संत-असंत, भक्त-अभक्त का भेद किए। बस वह हर कृपापात्र से एक ही अपेक्षा रखते थे कि वह अपने धर्म में अडिग रहकर भक्ति करे, धर्म व जाति की आड़ में मानव में भेद ना करे, मानव सेवा को धर्म समझे।
एक बार नीब करौरी जी प्रयाग में गंगा के किनारे बसे प्रसिद्ध ज्ञानी प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी से मिलने गये। ब्रह्मचारी जी वासुदेव श्रीकृष्ण के परमनिष्ठ पुजारी थे। वे बाबा जी को देखकर दौड़ते हुए उनके पास आये। वे उनके श्रीचरणों को प्रणाम करने की जगह ऊं नमो भगवते वासुदेवाय कहते हुए लिपट गए। उनकी आंखें नम थीं। बाबा नीब करौरी जी में उन्हें साक्षात वासुदेव कृष्ण दिख रहे थे। तुम्हरो रूप लोग नहिं जानें। जापर कृपा करहु सोईं भानें।