इन्द्र देव के अधिकार को पुन:स्थापित करवाने हेतु वामन अवतार

वामन जयंती पर विशेष

Update: 2023-09-25 20:57 GMT

मुकेष ऋषि

वामन जयंती भगवान विष्णु के वामन रूप में अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में मनायी जाती है। वामन जयंती भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 26 सितंबर मंगलवार को है। भागवत पुराण के अनुसार वामन भगवान विष्णु के दशावतार में से पांचवे अवतार थे व त्रेता युग में पहले अवतार थे। भगवान विष्णु के पहले चार अवतार पशु रूप में थे, जो कि क्रमश: मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वाराह अवतार और नरसिंह अवतार थे। इसके पश्चात् वामन मनुष्य रूप में पहले अवतार थे। वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में जब श्रवण नक्षत्र प्रचलित था, माता अदिति व कष्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोक पर इंद्र देव के अधिकार को पुन:स्थापित करवाने के लिए वामन अवतार लिया था। भगवान विष्णु के परम भक्त व अत्यंत बलशाली दैत्य राजा बलि ने इंद्र को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। भगवान विष्णु के परम भक्त और दानवीर राजा होने के बावजूद बलि एक क्रूर और अभिमानी असुर था। बलि अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर देवताओं और ब्राह्मणों को डराया व धमकाया करता था। अत्यंत पराक्रमी व अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक तथा पाताल लोक का स्वामी बन बैठा था तथा समस्त ब्रह्मांड का शासक बनने हेतु 100 वें यज्ञ को पूर्ण करने में लगा था। स्वर्ग से अपना अधिकार छिन जाने पर इंद्र देव अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचे और अपनी पीड़ा बताते हुए सहायता की विनती की। भगवान विष्णु ने इंद्र देव को आश्वासन दिया कि वे तीनों लोकों को बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने हेतु माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार के रूप में जन्म लेंगे। भगवान विष्णु इंद्र से किये अपने वचन को पूरा करने के लिए वामन रूप धारण कर उस सभा में पहुंचे, जहां राजा बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। वामन देव ने भिक्षा के रूप में बलि से तीन पग धरती की याचना की। बलि जो कि एक दानवीर राजा थे, सहर्ष रूप से वामन देव की इच्छा पूर्ति के लिये सहमत हो गये। तत्पश्चात वामन देव ने अत्यंत विशाल रूप धारण कर अपने पहले पग से ही समस्त भूलोक को नाप लिया। दूसरे पग से उन्होंने स्वर्ग लोक को नाप लिया। अंतत: जब वामन देव अपना तीसरा पग उठाने को हुये तब राजा बलि को यह ज्ञात हुआ कि यह भिक्षुक कोई साधारण ब्राह्मण नहीं अपितु स्वयं भगवान विष्णु हैं। अत: बलि ने तीसरे पग के लिये अपना सिर वामन देव के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। तब भगवान विष्णु ने बलि की उदारता का सम्मान करते हुए उसका वध करने के बजाय उसे पाताल लोक में भेज दिया। भगवान विष्णु ने साथ ही बलि को यह वरदान भी दिया कि वह वर्ष में एक बार अपनी प्रजा के समक्ष धरती पर उपस्थित हो सकता है। राजा बलि की धरती पर वार्षिक यात्रा को केरल में ओणम तथा अन्य भारतीय राज्यों में बलि-प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है। वामन जयंती के दिन भगवान विष्णु को उनके वामन रूप में पूजा जाता है। इस दिन प्रात: काल वामन देव की स्वर्ण या मिट्टी की प्रतिमा की पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजा की जाती है। वामन जयंती के दिन व्रत भी रखा जाता है। संध्याकाल की पूजा के पश्चात् वामन जयंती का व्रत कथा पढ़ी या सुनी जाती है। इसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। इस दिन चावल, दही और मिश्री का भी दान दिया जाता है। यदि वामन जयंती श्रवण नक्षत्र के दिन आती है तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। 

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