भगवा ध्वज : मेरे गुरु, हिन्दू संस्कृति और धर्म का शाश्वत प्रतीक

नीरज माहेश्वरी

Update: 2021-07-23 13:56 GMT

भगवा ध्वज हिन्दू संस्कृति और धर्म का शाश्वत प्रतीक है। यह हिन्दू धर्म के प्रत्येक आश्रम, मन्दिर पर फहराया जाता है। यही श्रीराम, श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथों पर फहराया जाता था और छत्रपति शिवाजी सहित सभी मराठों की सेनाओं का भी यही ध्वज था। यह धर्म, समृद्धि, विकास, अस्मिता, ज्ञान और विशिष्टता का प्रतीक है। इन अनेक गुणों या वस्तुओं का सम्मिलित द्योतक है अपना यह भगवा ध्वज।

भगवा ध्वज का रंग केसरिया है। यह उगते हुए सूर्य का रंग है। इसका रंग अधर्म के अंधकार को दूर करके धर्म का प्रकाश फैलाने का संदेश देता है। यह हमें आलस्य और निद्रा को त्यागकर उठ खड़े होने और अपने कर्तव्य में लग जाने की भी प्रेरणा देता है। यह हमें यह भी सिखाता है कि जिस प्रकार सूर्य स्वयं दिनभर जलकर सबको प्रकाश देता है, इसी प्रकार हम भी निस्वार्थ भाव से सभी प्राणियों की नित्य और अखंड सेवा करें।

यह यज्ञ की ज्वाला का भी रंग है। यज्ञ सभी कर्मों में श्रेष्ठतम कर्म बताया गया है। यह आन्तरिक और बाह्य पवित्रता, त्याग, वीरता, बलिदान और समस्त मानवीय मूल्यों का प्रतीक है, जो कि हिन्दू धर्म के आधार हैं। यह केसरिया रंग हमें यह भी याद दिलाता है कि केसर की तरह ही हम इस संसार को महकायें। भगवा ध्वज में दो त्रिभुज हैं, जो यज्ञ की ज्वालाओं के प्रतीक हैं। ऊपर वाला त्रिभुज नीचे वाले त्रिभुज से कुछ छोटा है। ये त्रिभुज संसार में विविधता, सहिष्णुता, भिन्नता, असमानता और सांमजस्य के प्रतीक हैं। ये हमें सिखाते हैं कि संसार में शान्ति बनाये रखने के लिए एक दूसरे के प्रति सांमजस्य, सहअस्तित्व, सहकार, सद्भाव और सहयोग भावना होना आवश्यक है।

भगवा ध्वज दीर्घकाल से हमारे इतिहास का मूक साक्षी रहा है। इसमें हमारे पूर्वजों, ऋषियों और माताओं के तप की कहानियां छिपी हुई हैं। यही हमारा सबसे बड़ा गुरु, मार्गदर्शक और प्रेरक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किसी व्यक्ति विशेष को अपना गुरु नहीं माना है, बल्कि अपने परम पवित्र भगवा ध्वज को ही गुरु के रूप में स्वीकार और अंगीकार किया है। साल में एक बार हम सभी स्वयंसेवक अपने गुरु भगवा ध्वज के सामने ही अपनी गुरु दक्षिणा समर्पित करते हैं।



Tags:    

Similar News